रांची – बीआईटी मेसरा संस्थान के रिमोट सेसिंग विभाग में एक समूह चंद्रमा पर रिसर्च कर रही है। ज्ञात जानकारी के अनुसार रिसर्च टीम चंद्रयान-2 के डीएफएसएआर (DFSAR) सेंसर के जरिए पता लगाना चाहती है कि चंद्रमा का क्रेटर कहां है, कितना पुराना है, यह रिसर्च चंद्रमा के दक्षिण पोल में किया जा रहा है। ऐसा कहा जा रहा है कि वहां हमेशा अंधेरा रहता है। गौरतलब है की क्रेटर किसी खगोलीय वस्तु पर एक गोल या लगभग गोल आकार के गड्ढे को कहते हैं जो किसी विस्फोटक ढंग से बना होता है। किसी चट्टान अथवा उल्कापिंड के चंद्रमा से टकराकर जो गहरा छिद्र (गड्ढा) और निशान बनता है उसे क्रेटर कह जाता है।
दक्षिणी ध्रुव में 158 क्रेटरों का पता लगाया जा चुका है..
रिपोर्ट्स के अनुसार अब तक टीम ने परमानेंट शेडो रीजन में कुल 158 क्रेटरों का पता लगाया है। सभी चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर हैं। विभाग की डॉ. मिली घोष ने साझा किया कि चंद्रयान-1 के एम-क्यूब सेंसर से यह पता लगाया जा चुका है कि यहां वाटर आईस है। अब चंद्रयान-2 के सेंसर आईआईआरएस (IIRS) से पता चला रहा है कि यहां पानी का कोई और रूप जैसे लिक्विड, सॉलिड या वेपर है या नहीं। टीम, साथ ही खनिज संसाधनों का भी पता लगाने का प्रयास कर रही है।
इसरो को देनी है रिपोर्ट..
बीआईटी मेसरा का यह समूह रिसर्च पूरा करने के बाद अपनी रिपोर्ट इसरो को सौंप देगी। इस रिसर्च समूह एमएम में विभाग के डॉ. वीएस राठौर, डॉ. एपी कृष्णा, डॉ. मिली घोष, पीएचडी स्कॉलर राजा बिस्वास, शुभोधिती बोस, एमएससी स्टूडेंट दामिनी, अन्नु, नीतिश और डॉ. स्वागत पायरा शामिल हैं। डॉ. मिली घोष ने बताया कि इसरो के मिशन चंद्रयान- 3 के डाटा सर्वेक्षण ट्रेनिंग के लिए भी बीआईटी मेसरा के रिमोट सेंसिंग विभाग को ही चुना गया है।
68 अन्य शोध भी होंगे बीआईटी मेसरा में..
बीआईटी मेसरा में प्रत्येक वर्ष विभिन्न विषयों पर रिसर्च किए जाते हैं। इनमें सरकार के विभिन्न विभागों से अनुदान भी मिलता है। संस्थान के कई रिसर्च को पेटेंट भी मिल चुका है। वित्तीय वर्ष 2022-23 में संस्थान को कुल 68 रिसर्च ग्रांट मिल चुके हैं। इनसे 27 करोड़ 58 लाख रुपए की अनुदान राशि प्राप्त हुई है। वहीं, 20 फैलोशिप व वर्कशॉप प्रोजेक्ट प्राप्त हुए हैं। इसके लिए 1 करोड़ 68 लाख रुपए राशि का अनुदान दिया गया है। बीआईटी मेसरा के डीन रिसर्च एंड डेवलपमेंट डॉ. सी जगन्नाथन ने बताया कि किसी भी संस्थान में रिसर्च एक महत्वपूर्ण विभाग होता है। जिससे इनोवेशन को बढ़ावा मिलता है। एक रिसर्च में प्रोफेसरों व स्टूडेंट्स की पूरी टीम लगी होती है, जो समाज हित के लिए कुछ खोज करने का प्रयास करती है। इसमें एक प्रिंसिपल इन्वेस्टीगेटर के साथ कुछ प्रोजेक्ट स्कॉलर जुड़े होते हैं।