रांची: राजधानी रांची के विभिन्न इलाकों में खुले नाले इस मानसून में बड़ी मुसीबत बनकर उभरे हैं। डोरंडा, हरमू, बरियातू, चुटिया और मोरहाबादी जैसे घनी आबादी वाले क्षेत्रों में खुले और टूटे स्लैब हादसों को न्यौता दे रहे हैं। बारिश के पानी से नाले ढक जाते हैं और लोगों के लिए पहचानना मुश्किल हो जाता है कि कहां सुरक्षित रास्ता है।
नगर निगम ने हाल ही में सर्वे कर 773 ऐसे स्थान चिन्हित किए हैं जहां तुरंत स्लैब लगाने की आवश्यकता है। नगर निगम के उप नगर आयुक्त रविंद्र कुमार ने बताया कि सबसे अधिक प्राथमिकता स्कूलों, अस्पतालों, बाजारों और मुख्य सड़कों को दी जाएगी ताकि बच्चों और बुजुर्गों की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके।
स्थानीय लोगों में नाराजगी
हरमू रोड के निवासी विनोद पासवान कहते हैं, “हर दिन डर लगता है कि ऑफिस जाते वक्त कहीं पैर फिसलकर नाले में न गिर जाएं।” डोरंडा की रीता देवी ने कहा, “कई बार शिकायत की, लेकिन कार्रवाई नहीं हुई। अब जब नगर निगम ने योजना बनाई है, तो उम्मीद है सुधार होगा।”
व्यापारियों ने बनाए जुगाड़ू इंतजाम
कोकर रोड के दुकानदार लकड़ी की पटिया और पत्थर रखकर नालों को अस्थायी रूप से ढक देते हैं। दुकानदार संजय साहू बताते हैं, “यहां रोज ग्राहक आते हैं। कई बार लोग गिरते-गिरते बचे हैं। यह समाधान टिकाऊ नहीं है।”
नगर निगम की योजना
✅ 773 स्थानों पर आरसीसी स्लैब लगेंगे
✅ पहले चरण में स्कूल, अस्पताल और बाजारों को प्राथमिकता
✅ ठेकेदारों की जवाबदेही तय होगी
✅ काम की निगरानी के लिए टीम बनेगी
सामाजिक संगठनों की चेतावनी
सामाजिक कार्यकर्ता मनीषा कश्यप कहती हैं, “हर साल निगम मानसून से पहले योजना बनाता है लेकिन आधा-अधूरा काम कर रुक जाता है। इस बार निगरानी और जवाबदेही दोनों जरूरी हैं।”
खुले नाले बने मौत के गड्ढे
रांची के खुले नाले केवल गंदगी या जलजमाव का कारण नहीं हैं, बल्कि यह अब जानलेवा खतरे में बदल गए हैं। निगम की सक्रियता सराहनीय है, लेकिन लोगों का कहना है कि उन्हें अब केवल घोषणाएं नहीं बल्कि जमीनी कार्रवाई चाहिए।