3 अगस्त को रक्षाबंधन, जानिए क्या है शुभ मुहूर्त और कैसे फलदायी है वैदिक रक्षासूत्र..

भाई-बहनों के बीच स्नेह का पर्व रक्षाबंधन 3 अगस्त को है। सावन के पूर्णिमा को मनाया जाने वालाइस त्योहार में अब बस कुछ ही समय रह गया है|इसी को देखते हुए बहने अभी जोर-शोर से रक्षा बंधन की तैयारी में जुट गई हैं। कोरोना काल के बीच त्योहार को यादगार बनाने के लिए अपने स्तर पर तैयारियां कर रही है। भाईयों के लिए स्पेशल राखी की खरीददारी की जा रही है।

हालांकि राखी बांधना सिर्फ प्रतीकात्मक नहीं है इसका वैदिक महत्व भी है। बताया जाता है कि अगर शास्त्र सम्मत रक्षाबंधन मनाने से इसका सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। हालांकि, बाजार में मिलने वाले डिजाइनरराखियों के प्रभाव ने वैदिक महत्व को पीछे छोड़ दिया है। आज के समय में बहुत कम ही ऐसे लोग बचे हैं जो रक्षाबंधन के दिन वैदिक रक्षासूत्र धारण करते हैं| जबकि वैदिक रक्षासूत्र बनाना काफी आसान है तथाइसे कोई भीअपने घर में तैयार कर सकता है।
रांची विश्वविद्यालय के ज्योतिष विभाग के लेक्चरर डॉ धीरेंद्र दुबे बताते हैं कि बाजार में मिलने वाले राखी का महत्व केवल प्रतीकात्मक है। शास्त्रों के अनुसार रक्षाबंधन के दिन भाईयों की कलाई पर बाजार से खरीदे राखी के बजाय रक्षासूत्र बांधना श्रेयकर होगा। हालांकि, ये फलदायी तभी होता है जब इसे सही विधि से बनायी जाया।

ऐसे बनाएं वैदिक रक्षासूत्र..
वैदिक रक्षासूत्र के लिए आपको दूब, अक्षत, चंदन, सरसो, केसर और रेशम या पीले रंग का साफ सूती कपड़े की आवश्यक्ता होती है। दूब, अक्षत, केसर, चंदन, सरसो को गंगाजल से शुद्ध कर रेशम या पीले रंग के सूती कपड़े में बांध लें। सुविधा और पंडित की सलाह अनुसार पांच चीज के अलावा रक्षासूत्र में हल्दी, कौड़ी, एवं गोमती चक्र भी डाल सकते हैं। इन सब को कपड़े बांध कर सिल दें और बस वैदिक रक्षासूत्र तैयार।

डॉ धीरेंद्र दुबे के अनुसार कलाई पर वैदिक रक्षासूत्रबांधने से नकारात्मक भौतिक व दैविक दुष्प्रभाव से छुटकारा मिलता है। इसके साथ ही, रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ती है। दरअसल, दूब तेजी से आसपास में फैल जाता है साथ ही इसे महादेव का प्रिय है। मान्यता है कि जबबहने अपने भाई की कलाई पर रक्षासूत्र बांधती हैं तो भगवान से ये कमाना करती हैंकि दूब की तरह उनका वंश खूब फले। इसी तरह अक्षत देवताओं पर चढ़ाये जाते हैं।

रक्षाबंधन का शुभमुहूर्त..
वहीं बात करें रक्षाबंधन के शुभमुहूर्त की तो पंडितों के अनुसार अनुष्ठान का समय सुबह 09.28 से रात 9.14 बजे तक है|दिन के समय शुभमुहूर्त दोपहर 1.46 से शाम 4.26 बजे तक है| वहीं प्रदोष काल मुहूर्त शाम 7.06 से रात 9.14 बजे तक है| पूर्णिमा तिथि का आरंभ 2 अगस्त की रात 9.28 बजे से है तथा पूर्णिमा तिथि समाप्त 3 अगस्त को रात 9.27 बजे होगा|