झारखंड सरकार और संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) में इन दिनों तनातनी चल रही है। एक तरफ सियासी तंत्र तथा दूसरी ओर प्रशासनिक तंत्र, दोनों एक-दूसरे को कायदे-कानून बताने में लगे हुए हैं। इस भिड़ंत की वजह है राज्य के डीजीपी पद से कमल नयन चौबे को हटाना। दरअसल सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार किसी भी राज्य में डीजीपी की नियुक्ति दो साल के लिए होनी है|इसके बावजूद केएन चौबे को राज्य सरकार ने महज नौ महीने में हटा दिया।
इतना ही नहीं, उनकी जगह एमवी राव को प्रभारी डीजीपी नियुक्त कर दिया गया| लेकिन नियम के मुताबिक डीजीपी पद को प्रभार में नहीं रखा जा सकता|
इसी मुद्दे को लेकर झारखंड सरकार और यूपीएससी में ठन गई है जिसके बाद ये विवाद अब देश की सर्वोच्च अदालत में पहुंच गया है। याचिकाकर्ता प्रह्लाद नारायण सिंह ने केएन चौबे को पद से हटाने और प्रभारी डीजीपी नियुक्त करने को गलत ठहराते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है।
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में केंद्र व राज्य सरकार, यूपीएससी और एमवी राव से उनका पक्ष रखने को कहा है। इस मामले की सुनवाई बुधवार को होनी है। वहीं मामला कोर्ट में पहुंचने से किस कदर अफरातफरी मची है इसका अंदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं कि सुनवाई के दो दिन पूर्व ही एमवी राव दिल्ली पहुंच चुके हैं। वहां वो अपने वकील से सलाह व परामर्श में लगे हैं।
राज्य सरकार ने प्रभारी डीजीपी एमवी राव को स्थायी करने के लिए पांच आइपीएस अधिकारियों का पैनल यूपीएससी को भेजा था। हालांकि यूपीएससी ने पैनल को वापस कर दिया कि ये कह कर कि राज्य की ओर से पूर्व में भेजे गए पैनल के आधार पर राज्य ने कमल नयन चौबे को नियमत: दो साल के लिए नियुक्त किया था|लेकिन उन्हें नौ महीने में ही हटा दिया। ये सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइंस का उल्लंघन है, इसलिए नए पैनल पर विचार नहीं किया जा सकता है।
गौरतलब है कि जिस पैनल के आधार पर कमल नयन चौबे का चयन किया गया था उसमें एमवी राव का नाम कहीं भी नहीं था। नियम के अनुसार डीजीपी पद के लिएयूपीएसी पैनल में तीन नामों को प्रस्तावित करती है| उनमें से किसी एक को चुनने का अधिकार राज्य का होता है। पैनल से हटकर किसी और अधिकारी को डीजीपी नियुक्त करने का मतलब यूपीएससी और सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइंस का खुलेआम उल्लंघन करना है।
उधर इस मसले पर राज्य सरकार ने यूपीएससी को दिए गये जवाब में बताया है कि नई सरकार गठित होने के बाद कमल नयन चौबे को तीन महीने का पर्याप्त समय दिया गया था ताकि वो विधि-व्यवस्था संभाल लें|लेकिन वो इस कार्य में विफल रहे और यही कारण है कि उन्हें डीजीपी के पद से हटाया गया। इसके साथ ही झारखंड सरकार ने यूपीएससी के अधिकार क्षेत्र पर सवाल उठाते हुए कहा है कि डीजीपी कौन रहेगा, ये राज्य सरकार तय करती है न कि यूपीएससी।
उल्लेखनीय है कि राज्य सरकार के उक्त तर्क पर पुलिस महकमे द्वारा सवाल उठाया जा रहा है। जानकारी के मुताबिक कमल नयन चौबे के कार्यकाल में पांच चरणों में शांतिपूर्ण ढंग से विधानसभा चुनाव संपन्न हुए| जिसके लिए झारखंड पुलिस को भारत निर्वाचन आयोग की ओर से प्रशस्ति पत्र मिला। रांची में लॉ कॉलेज की छात्रा से सामूहिक दुष्कर्म में कुछ घंटों के भीतर ही सभी आरोपितों को गिरफ्तार करने, तीन महीने में ट्रायल पूरा कर उन्हें सजा दिलाने के लिए बेहतर अनुसंधान का गृह मंत्री पदक मिला।
इस सब के अलावा दुमका में हुए गैंगरेप में भी त्वरित ढंग से अनुसंधान कर दोषियों को सजा दिलाने का मामला राष्ट्रीय पुलिस अकाडमी में केस स्टडी के रूप में पढ़ाया जा रहा है। पुलिस के आला अफसर यह भी कहने से गुरेज नहीं कर रहे हैं कि केएन चौबे के कार्यकाल में कोयला के अवैध खनन पर काफी हद तक अंकुश था|साथ ही नक्सली घटनाओं पर रोक लगाने में भी पुलिस कामयाब हो रही थी।
पुलिस महकमे के अफसर, केएन चौबे को हटाए जाने और एमवी राव को प्रभारी डीजीपी बनाने के पीछे, राजनीतिक कारण मान रहे हैं| अफसरों के मुताबिक पुलिसिंग कोई मुद्दा था ही नहीं। साथ ही ये भी कहा जा रहा है कि यदि केएन चौबे को हटाने का यही आधार था तो कोविड-19 में लॉकडाउन के बावजूद प्रदेश में नक्सली घटनाओं में काफी वृद्धि हुई है। इसके अलावा अन्य आपराधिक घटनाएं भी लगातार हो ही रही है।
क्या है सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइंस..
देखा जाए तो प्रभारी डीजीपी का कोई प्रावधान नहीं है। किसी डीजीपी की सेवानिवृत्ति के तीन महीने पहले ही राज्य सरकार को नए डीजीपी के लिए नाम, पद आदि की सूची यूपीएससी को भेजनी होगी। उनमें से तीन नाम को यूपीएससी छांटकर वापस राज्य सरकार को भेजेगी, जिसमें से राज्य सरकार किसी एक को डीजीपी बनाएगी। डीजीपी का कार्यकाल कम से कम दो वर्षों का होगा ऐसे में बिना किसी ठोस कारण के राज्य सरकार डीजीपी को उनके पद से नहीं हटा सकेगी।