राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू गुरुवार, शाम को रांची पहुंचेंगी, जहां वह राष्ट्रीय कृषि उच्चतर प्रसंस्करण संस्थान (आईसीएआर) के 100 साल पूरे होने के अवसर पर आयोजित शताब्दी समारोह में भाग लेंगी. यह समारोह नामकुम स्थित आईसीएआर संस्थान में आयोजित किया जा रहा है. इस ऐतिहासिक अवसर पर राज्यपाल संतोष कुमार गंगवार, मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन, केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान, केंद्रीय राज्य मंत्री भागीरथ चौधरी और रक्षा राज्य मंत्री संजय सेठ भी उपस्थित रहेंगे. राष्ट्रपति इस समारोह की मुख्य अतिथि होंगी.
शताब्दी समारोह में राष्ट्रपति का विशेष योगदान
समारोह की शुरुआत 21 सितंबर की सुबह 11 बजे होगी, जहां राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू सबसे पहले “एक पेड़ मां के नाम” अभियान के तहत पौधारोपण करेंगी. यह अभियान पर्यावरण संरक्षण और संवर्धन के प्रति जागरूकता फैलाने के उद्देश्य से चलाया जा रहा है. इसके बाद राष्ट्रपति संस्थान के पूर्व और वर्तमान वैज्ञानिकों के साथ मुलाकात करेंगी और संस्थान के इतिहास, उपलब्धियों और नवाचारों पर चर्चा करेंगी.
लाह उत्पादन में झारखंड का महत्वपूर्ण योगदान
आईसीएआर के निदेशक अभिजित कर ने बताया कि संस्थान ने अब तक देशभर में लाह उत्पादन में स्थिरता और नवाचारों के माध्यम से 100 करोड़ रुपये की अतिरिक्त वार्षिक आय अर्जित की है. भारत सालाना लगभग 20 हजार टन लाह का उत्पादन करता है, जिसमें से 55% उत्पादन झारखंड का होता है. भारत में लाह का उत्पादन न केवल घरेलू उद्योगों के लिए आवश्यक है, बल्कि इसका लगभग 70% हिस्सा 70 देशों में निर्यात भी किया जाता है.
संस्थान की 100 साल की यात्रा
आईसीएआर संस्थान की स्थापना 20 सितंबर 1924 को की गई थी, और तब से यह देश के लाह उत्पादन और प्रसंस्करण के क्षेत्र में अग्रणी रहा है. संस्थान ने कई महत्वपूर्ण उपलब्धियों को हासिल किया है, जिनमें लाह उद्योग को उन्नत करने के लिए किए गए शोध और नवाचार शामिल हैं. हालांकि, भारतीय लाह उद्योग को वर्तमान में थाइलैंड और इंडोनेशिया जैसे देशों से कड़ी प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ रहा है. इन देशों की आर्थिक नीतियां और व्यापारिक रणनीतियां भारत के लिए चुनौतियां पैदा कर रही हैं.
लाह का बहुआयामी उपयोग
लाह का उपयोग पहले कपड़ों की रंगाई, आभूषण निर्माण, मोम सीलिंग, और लकड़ी की सजावट जैसे कार्यों में किया जाता था. लेकिन आज के समय में इसका उपयोग बढ़कर फूड पैकेजिंग, औषधि, सौंदर्य प्रसाधन और पोषण उत्पादों में होने लगा है. लाह प्लास्टिक का एक बेहतरीन विकल्प बनता जा रहा है, और इसका उपयोग विशेष रूप से पर्यावरण-संवेदनशील उद्योगों में हो रहा है. हालांकि, बढ़ती मांग के बावजूद, भारत का लाह उत्पादन अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुसार अभी भी मात्रा और गुणवत्ता दोनों में सुधार की आवश्यकता महसूस करता है.
संस्थान के प्रमुख सुधार और चुनौतियां
आईसीएआर संस्थान तीन महत्वपूर्ण विकास प्रस्तावों पर जोर दे रहा है, जो लाह उद्योग को बढ़ावा देने में सहायक होंगे. सबसे पहले, लाह को राष्ट्रीय स्तर पर कृषि उपज का दर्जा देना आवश्यक है, जिससे इसे कानूनी और आर्थिक संरक्षण मिल सके. दूसरा, लाह उद्योग में स्थिरता और नवाचार को बढ़ावा देने के लिए उन्नत सुविधाओं के साथ प्रशिक्षण केंद्रों की स्थापना करना अनिवार्य है. इसके साथ ही, लाह के व्यावसायिक उत्पादन को और अधिक सशक्त बनाने के लिए एक रेफरल प्रयोगशाला की भी स्थापना की जा रही है. हालांकि, संस्थान की मेहनत और नवाचार के बावजूद, थाइलैंड और इंडोनेशिया जैसे देशों से आने वाली चुनौतियां भारत के लिए प्रमुख समस्या बनी हुई हैं. इन देशों की आर्थिक नीतियां और व्यापारिक रणनीतियां अधिक कुशल और सस्ती हैं, जिससे वे अंतरराष्ट्रीय बाजार में भारत के मुकाबले अधिक प्रतिस्पर्धात्मक बने हुए हैं.
झारखंड के लिए गौरव का पल
राष्ट्रपति मुर्मू के इस समारोह में शामिल होने से झारखंड और यहां के लाह उद्योग को एक नया प्रोत्साहन मिलेगा. झारखंड का लाह उत्पादन देशभर में सबसे प्रमुख है और इसका अंतरराष्ट्रीय बाजार में भी विशेष महत्व है. इस अवसर पर राष्ट्रपति का आना राज्य के लिए एक सम्मानजनक क्षण है और इससे राज्य के कृषि और लाह उद्योग के विकास को नई दिशा मिलेगी.
संस्थान का भविष्य और संभावनाएं
आईसीएआर संस्थान का लक्ष्य है कि आने वाले समय में वह लाह उद्योग में और अधिक नवाचार करे और इसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर और अधिक प्रतिस्पर्धात्मक बनाए. इसके लिए संस्थान लगातार नए शोध और प्रयोग कर रहा है, जिससे लाह की गुणवत्ता और उत्पादन में सुधार हो सके. संस्थान का मानना है कि अगर सरकार और उद्योग जगत से उचित सहयोग मिले, तो भारत आने वाले कुछ वर्षों में लाह उत्पादन और निर्यात में विश्व की अग्रणी शक्ति बन सकता है.
लाह की बढ़ती मांग और उपयोगिता
लाह के विभिन्न उद्योगों में उपयोग की बढ़ती मांग को देखते हुए, संस्थान ने इसे और भी ज्यादा व्यावसायिक रूप देने के लिए कई कदम उठाए हैं. फूड पैकेजिंग, औषधि, सौंदर्य प्रसाधन, और पोषण उत्पाद जैसे क्षेत्रों में लाह का उपयोग तेजी से बढ़ा है, जिससे इसके उत्पादन की आवश्यकता भी बढ़ गई है. लाह का उपयोग पर्यावरण अनुकूलता के कारण विशेष रूप से प्रासंगिक हो गया है, और इसके उत्पादन में वृद्धि से न केवल घरेलू बाजार बल्कि अंतरराष्ट्रीय बाजार भी लाभान्वित हो सकते हैं.