रांची: झारखंड में पेसा (PESA) नियमावली को लागू करने से पहले सरकार ने व्यापक विचार-विमर्श की प्रक्रिया तेज कर दी है। राजधानी रांची में आयोजित विचार गोष्ठी सह कार्यशाला के समापन अवसर पर राज्य सरकार के चार मंत्रियों ने पेसा कानून को लेकर सरकार की प्रतिबद्धता दोहराई और आश्वस्त किया कि नियमावली पूरी तरह से दुरुस्त, पारदर्शी और आदिवासी हितों के अनुरूप होगी।
ग्रामीण विकास मंत्री दीपिका पांडेय सिंह ने कहा कि भले ही राज्य में पेसा नियमावली लागू करने में देर हुई हो, लेकिन जब यह लागू होगी तो पूरी तरह दुरुस्त होगी। उन्होंने कहा, “1996 के पेसा कानून की मूल भावना का पूरी तरह ध्यान रखा जाएगा। यह नियमावली राज्य की पीढ़ियों को लाभ देगी।” उन्होंने यह भी कहा कि कार्यशाला में आए सुझावों को गंभीरता से नियमावली में शामिल किया जाएगा।
भू-राजस्व एवं परिवहन मंत्री दीपक बिरुआ ने भरोसा दिलाया कि नियमावली न केवल दुरुस्त बल्कि “तंदुरुस्त” भी होगी। उन्होंने कहा, “जनता की भावनाओं का पूरा ख्याल रखा जाएगा और नियमावली में सुझावों की झलक साफ़ दिखेगी।”
स्कूली शिक्षा मंत्री रामदास सोरेन ने भी आश्वस्त किया कि पेसा नियमावली आम सहमति से लागू की जाएगी। उन्होंने कहा कि सरकार सभी स्टेकहोल्डरों के सुझावों को गंभीरता से लेकर सामूहिक निर्णय की दिशा में आगे बढ़ेगी।
वहीं, कृषि पशुपालन एवं सहकारिता मंत्री शिल्पी नेहा तिर्की ने पेसा कानून को आदिवासी संरक्षण और विकास का प्रमुख माध्यम बताया। उन्होंने कहा, “जब आदिवासी बचेंगे, तभी गांवों में अन्य वर्गों का भी भला होगा।” उन्होंने नियमावली तैयार करने से पहले दिलीप सिंह भूरिया कमेटी की सिफारिशों का अध्ययन करने की भी वकालत की। इसके साथ ही उन्होंने ग्रामीण योजनाओं में व्याप्त भ्रष्टाचार पर चिंता जताते हुए कहा, “पेंशन स्वीकृति में ₹500 और अबुआ आवास योजना में ₹20,000 तक खुलेआम कमीशन लिया जा रहा है। पेसा नियमावली से ऐसे भ्रष्टाचार पर अंकुश लगेगा।”
कार्यशाला में कई अन्य बुद्धिजीवियों और सामाजिक संगठनों के प्रतिनिधियों ने भी अपने विचार रखे। नेशनल एडवाइजरी काउंसिल के सदस्य के. राजू, विधायक राजेश कच्छप, एक्टिविस्ट दयामनी बारला, सुधीर पाल, शिशिर कुमार और ग्लैक्शन टुडू समेत कई वक्ताओं ने सुझाव दिए और कुछ महत्वपूर्ण सवाल भी उठाए। दयामनी बारला ने ड्राफ्ट की प्रति न मिलने और लैंड बैंक की जमीन की वापसी न होने पर चिंता जताई।
इससे पहले पंचायती राज सचिव विनय कुमार चौबे ने पेसा नियमावली के ड्राफ्ट की प्रक्रिया और उसकी पृष्ठभूमि को विस्तार से प्रस्तुत किया। उन्होंने बताया कि सरकार कैसे विभिन्न सुझावों के आधार पर नियमावली तैयार कर रही है और इसे लागू करने की रूपरेखा क्या होगी।
कार्यशाला में बड़ी संख्या में सामाजिक संगठनों, जनप्रतिनिधियों और बुद्धिजीवियों की भागीदारी देखी गई। यह स्पष्ट संकेत है कि झारखंड सरकार पेसा कानून को धरातल पर उतारने से पहले व्यापक जनसहमति और भागीदारी सुनिश्चित करना चाहती है।