प्रकृति पर्व करम: भाईयों की सुख-समृद्धि के लिए बहनों का उपवास….

प्रकृति पर्व करम का उत्सव आज पूरे धूमधाम से मनाया जा रहा है. रांची शहर और इसके आस-पास के इलाकों में हजारों अखरों में इस पर्व की पूजा-अर्चना की जाएगी. इसके लिए अखरों की विशेष साज-सजावट की गई है. करम की डालियों की पूजा की जाएगी, जिसमें कुंवारी बहनें उपवास रखकर अपने भाईयों की सुख-समृद्धि की कामना करेंगी. पूरे दिन उपवास करने के बाद, वे रात में पूजा संपन्न होने पर जल ग्रहण कर उपवास तोड़ेंगी. इस पर्व में पूजन के बाद ढोल-मांदर की थाप पर लोग करम गीत गाते हुए नृत्य करेंगे. शहर के प्रमुख इलाकों जैसे हरमू, सिरमटोली, कांटाटोली, कर्मटोली, और चडरी में अखरों को विशेष रूप से सजाया गया है. राजी पड़ा सरना प्रार्थना सभा के प्रदेश अध्यक्ष रवि तिग्गा ने बताया कि हरमू अखरा में आज रात नौ बजे करम देव की पूजा होगी. इसके पहले युवा दिन में करम की डाली काटकर लाएंगे, और युवतियां उनका स्वागत करेंगी. डाली को अखरा में स्थापित किया जाएगा, जहां आसपास के हर घर से एकत्रित किए गए तेल से दीये जलाए जाएंगे. मुख्य पाहन के साथ गांववासी अखरा में प्रवेश करेंगे और पूजा की शुरुआत होगी. पूजा के बाद पाहून पवित्र जावा के फूल पुरुषों के कान में और महिलाओं के जूड़े में सजाएंगे.

प्रकृति पर्व का महत्व

हातमा सरना टोली के मुख्य पाहन जगलाल पाहन ने इस अवसर पर बताया कि करम आदिवासी और मूलवासी समाज का सबसे महत्वपूर्ण और प्रमुख त्योहार है. यह पर्व भाई-बहन के अटूट प्रेम का प्रतीक है, जो भाद्र एकादशी शुक्ल पक्ष के दिन मनाया जाता है. यह पर्व कृषि से भी जुड़ा हुआ है, जो खेती के काम खत्म होने के बाद खुशियां मनाने के उद्देश्य से मनाया जाता है. कुंवारी कन्याएं इस दिन उपवास रखती हैं और रात में अपने परिवार के साथ अखरा जाकर करम देव की पूजा करती हैं. वे पूरी श्रद्धा और आस्था से अपने भाइयों की लंबी उम्र और सुख-समृद्धि की कामना करती हैं. करम पूजा के बाद ग्राम के पाहन द्वारा करम की पौराणिक कथा सुनाई जाती है. यह कथा जीवन के सही मार्ग पर चलने और अच्छे कर्म करने की प्रेरणा देती है. इस कथा के माध्यम से आदिवासी समाज अपनी सांस्कृतिक धरोहर और मूल्यों को संरक्षित रखता है.

रांची में निर्बाध बिजली आपूर्ति की मांग

अखिल भारतीय आदिवासी विकास परिषद के प्रवीण कच्छप, राज कच्छप और पवन तिर्की ने शुक्रवार को रांची विद्युत एरिया बोर्ड के जीएम से मुलाकात कर करम पर्व के दौरान शहर में निर्बाध बिजली आपूर्ति की मांग की. उन्होंने कहा कि 14 और 15 सितंबर को शहर में बिजली कटौती न हो, ताकि पूजा-पाठ और सांस्कृतिक कार्यक्रमों में कोई बाधा न आए. साथ ही उन्होंने सब-स्टेशनों और बिजली कार्यालयों में तकनीकी टीम की तैनाती की भी मांग की, ताकि किसी भी आकस्मिक समस्या का त्वरित समाधान किया जा सके. इसके साथ ही, पर्व के लिए एक हेल्पलाइन नंबर जारी करने की भी मांग की गई, ताकि किसी भी बिजली संबंधी समस्या का तुरंत समाधान हो सके.

कृषि और धार्मिक महत्व

बीआईटी मेसरा के प्रबंधन विभाग के प्रोफेसर और विनोबा भावे विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति डॉ. रविंद्रनाथ भगत ने करम पर्व के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि करम झारखंड का सबसे महत्वपूर्ण त्योहार है, जिसका गहरा धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व है. यह पर्व कृषि के समापन के बाद मनाया जाता है, जो समाज में ईश्वर के प्रति आस्था और धन्यवाद ज्ञापन का प्रतीक है. इस पर्व में बहनें अपने भाइयों की सुख-समृद्धि के लिए पूजा करती हैं, और पूजा के बाद लोग नृत्य और संगीत के साथ खुशियां मनाते हैं. करम पर्व भाई-बहन के प्रेम के साथ-साथ जीवन में अच्छे कर्मों और धर्म के पालन का संदेश देता है. इस पर्व के माध्यम से लोग अपने जीवन में सही रास्ते पर चलने और सदैव धर्म और सच्चाई की राह पर बने रहने की प्रेरणा लेते हैं. करम गीतों और लोककथाओं के माध्यम से आदिवासी समाज अपने पूर्वजों की परंपराओं और मान्यताओं को जीवित रखता है.

समाज और संस्कृति में करम का महत्व

करम पर्व न केवल आदिवासी समाज की सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक है, बल्कि यह समाज के हर व्यक्ति को नैतिक और धार्मिक रूप से सशक्त बनाने का कार्य करता है. इस पर्व के माध्यम से समाज में भाई-बहन के रिश्ते को और भी मजबूत किया जाता है, जहां बहनें अपने भाइयों की सुरक्षा और खुशहाली की कामना करती हैं. समारोह के दौरान सभी गांववासी और समाज के प्रमुख सदस्य अखरा में एकत्रित होते हैं, जहां सामूहिक पूजा-अर्चना होती है. इसके बाद करम गीतों के साथ नृत्य और संगीत का आयोजन किया जाता है, जिसमें हर व्यक्ति उत्साह के साथ भाग लेता है. यह पर्व न केवल कृषि से जुड़ा है, बल्कि समाज की एकता, भाईचारे और संस्कृति को भी प्रकट करता है.

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