स्कूली शिक्षा एवं साक्षरता विभाग द्वारा एक रिपोर्ट तैयार की गई जिसके अनुसार राज्य के प्लस टू स्कूलों में छात्र संख्या और शिक्षकों के पदस्थापन में भारी अंतर पाया गया है। इस रिपोर्ट के आधार पर यह बात सामने आई है कि जिन विभिन्न स्कूलों में जिस विषय के विद्यार्थी अधिक है, उनमें शिक्षकों के पद अब तक सृजित नहीं हुए हैं। वहीं जिस विषय के विद्यार्थी हैं ही नहीं, उस विषय के शिक्षकों की संख्या काफी अधिक है।
रिपोर्ट के अनुसार राज्य में कुल 510 प्लस टू स्कूल हैं जिनमें से मात्र 190 स्कूल में ही कॉमर्स के विद्यार्थी हैं, जबकि 320 स्कूलों में कॉमर्स के एक भी विद्यार्थी नहीं है। वहीं, 226 स्कूलों में इस विषय के शिक्षक नियुक्त कर दिये गये हैं। इसका मतलब है कि 36 स्कूलों में बिना विद्यार्थियों के ही शिक्षक कार्यरत हैं। राज्य में कई ऐसे स्कूल भी हैं, जहां संस्कृत और जीव विज्ञान के एक भी विद्यार्थी नहीं है, लेकिन विद्यालय में इस विषय के शिक्षक हैं। वहीं जहां इन्हीं स्कूलों में हर साल राजनीति शास्त्र में करीब 36 हजार और समाजशास्त्र में करीब 24 हजार विद्यार्थी नामांकन लेते हैं, लेकिन इन विषयों के शिक्षकों की नियुक्ति के लिए पद सृजन ही नहीं किया गया है। वहीं, इन स्कूलों में जनजातीय और क्षेत्रीय भाषा की पढ़ाई तो होती है, पर इनके शिक्षकों का एक भी पद सृजित नहीं है।
राज्य सरकार इस अनियमितता को दूर करने की योजना तैयार कर चुकी है और जल्द ही इस संदर्भ में नई नियमावली लाएगी। जिसके अनुसार संबंधित विषय के विद्यार्थियों की संख्या के आधार पर शिक्षकों का पद सृजित और पदस्थापन किया जायेगा। इसके लिए विभाग ने राज्य भर के हाइस्कूलों और प्लस टू स्कूलों में विषयवार मैट्रिक व इंटर की परीक्षा में शामिल होनेवाले विद्यार्थियों की संख्या का अध्ययन किया है। जहां आज के समय में विद्यार्थियों के बीच विषय चयन करने का ट्रेंड बदलता जा रहा है ऐसे में कंप्युटर साइंस के विद्यार्थी तो है पर इसके शिक्षक में भारी कमी है जनजातीय, क्षेत्रीय भाषा और कंप्यूटर साइंस जैसे विषयों के लिए भी शिक्षकों के पद सृजन की तैयारी है।
आपको बता दें पिछली सरकार के कार्यकाल में वर्ष 2016 में राज्य भर में लगभग 280 प्लस टू स्कूल खोले गये थे। साथ ही वर्ष 2016-17 में पहले के आधार पर ही इन स्कूलों में शिक्षकों की नियुक्ति कर दी गई थी। लेकिन, पद सृजन से पहले संकाय के आधार पर नामांकन लेनेवाले विद्यार्थियों की कोई रिपोर्ट तैयार नहीं की गयी थी।
राज्य के स्कूलों में इस स्थिति के उत्पन्न होने का मुख्य कारण यह है कि हाईस्कूलों में 1976 में चिह्नित विषय और प्लस टू विद्यालयों में 1992 में चिह्नित विषय के आधार पर शिक्षकों की नियुक्ति होती है। राज्य के हाईस्कूलों और प्लस टू स्कूलों में शिक्षकों के पद सृजन के विषय एकीकृत बिहार के समय से ही तय हैं।
माध्यमिक शिक्षा के निदेशक जटाशंकर चौधरी का कहना है कि अब तक हाई स्कूल और प्लस टू स्कूलों में शिक्षकों के पदस्थापन के दौरान विद्यार्थियों की संख्या नहीं देखी जाती थी। लेकिन अब शिक्षकों का पदस्थापन विद्यार्थियों की संख्या के आधार पर होगा। जिस विषय में वर्षों से एक भी विद्यार्थी नामांकन नहीं ले रहे हैं, उनके शिक्षकों के पद सरेंडर कर जरूरत के अनुसार पद सृजित किए जाएंगे। मांग के अनुरूप कंप्यूटर साइंस समेत अन्य विषयों के शिक्षकों के भी पद सृजित होंगे।
इन समस्या को दूर करने कर लिए हेमंत सरकार ने पहल की है और जल्द ही इस समस्या को दूर किया जाएगा।