झारखंड में अनुसूचित जाति पर सियासत गरम, गठबंधन के लिए नया सियासी मौका…..

झारखंड की राजनीति में अनुसूचित जाति (एससी) समुदाय को लेकर एक नई बहस ने जोर पकड़ लिया है. राज्य के वित्त मंत्री राधाकृष्ण किशोर की हालिया मांग ने राजनीतिक गलियारों में हलचल मचा दी है. उन्होंने झारखंड में अनुसूचित जाति राज्य आयोग और अनुसूचित जाति परामर्शदात्री परिषद (SC Advisory Council) के गठन की पुरजोर मांग की है. इस मांग के साथ ही उन्होंने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) पर आरोप लगाया कि वह वर्षों से अनुसूचित जाति समुदाय के हितों की अनदेखी करती आ रही है.

क्यों गरमाया है मामला?

राधाकृष्ण किशोर ने 2008 में राजभवन द्वारा जारी एक आदेश का हवाला दिया, जिसमें अनुसूचित जातियों के कल्याण के लिए आयोग और परामर्शदात्री परिषद के गठन की बात कही गई थी. लेकिन उस समय भाजपा सत्ता में थी और कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया. मंत्री का आरोप है कि भाजपा की निष्क्रियता की वजह से अनुसूचित जाति समुदाय का सामाजिक और आर्थिक विकास रुक गया. उन्होंने यह भी कहा कि झारखंड जैसे राज्य में, जहां अनुसूचित जाति की समस्याएं जटिल और बहुआयामी हैं, वहां एक विशेष मंच की आवश्यकता है, जो सिर्फ इसी समुदाय की समस्याएं सुने और समाधान सुझाए. उन्होंने इस मंच को सामाजिक न्याय की दिशा में एक ठोस पहल बताया.

सत्तारूढ़ गठबंधन को मिला मौका

राधाकृष्ण किशोर की यह पहल झारखंड में झामुमो-कांग्रेस-राजद गठबंधन के लिए एक सुनहरा अवसर बनकर सामने आई है. दरअसल, राज्य की 81 विधानसभा सीटों में से 9 सीटें अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हैं, जिनमें छत्तरपुर, कांके, जमुआ, चतरा, देवघर, सिमरिया, जुगसलाई, लातेहार और चंदनक्यारी प्रमुख हैं. इन सीटों पर राजनीतिक पकड़ बनाने से किसी भी दल की सियासी दिशा तय हो सकती है. पिछले विधानसभा चुनाव में इन अधिकतर सीटों पर भाजपा को पीछे हटना पड़ा था. ऐसे में यदि सत्तारूढ़ गठबंधन अनुसूचित जाति आयोग और परामर्शदात्री परिषद के गठन को लेकर आगे बढ़ता है, तो यह इन क्षेत्रों में उसकी पकड़ और मजबूत कर सकता है. इससे गठबंधन की छवि एक ‘समाज के सभी वर्गों की चिंता करने वाले’ नेतृत्व की बन सकती है.

भाजपा पर सियासी प्रहार

मंत्री किशोर ने सीधे तौर पर भाजपा को निशाने पर लेते हुए कहा कि उसने वर्षों तक सिर्फ घोषणाएं कीं लेकिन कभी भी अनुसूचित जाति समुदाय के लिए कोई ठोस नीतिगत पहल नहीं की. उन्होंने यह भी कहा कि भाजपा सिर्फ वोट लेने के समय इस समुदाय को याद करती है, लेकिन सत्ता में आने के बाद उनकी समस्याओं की अनदेखी करती है. इस सियासी हमले से भाजपा के लिए दबाव की स्थिति पैदा हो गई है. अब भाजपा को यह साबित करना होगा कि उसने भी एससी समुदाय के लिए काम किया है, वरना यह मुद्दा चुनावी रणनीति में उसके लिए नुकसानदेह साबित हो सकता है.

हेमंत सरकार का जवाबी कदम

वर्तमान में हेमंत सोरेन की सरकार ने अनुसूचित जनजाति परामर्शदात्री परिषद की तर्ज पर अनुसूचित जाति परामर्शदात्री परिषद के गठन का प्रस्ताव भी सार्वजनिक रूप से रखा है. अगर यह प्रस्ताव धरातल पर उतरता है तो यह न सिर्फ गठबंधन की राजनीतिक रणनीति को बल देगा, बल्कि झारखंड की सामाजिक संरचना में भी एक नई दिशा देगा. राधाकृष्ण किशोर की पहल न केवल राजनीतिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है, बल्कि यह सामाजिक न्याय और समानता के सिद्धांतों की पुनर्स्थापना का भी प्रयास है. अगर झारखंड सरकार इस दिशा में ठोस कदम उठाती है तो यह पूरे राज्य के लिए एक ऐतिहासिक निर्णय साबित हो सकता है.

क्या हैं भविष्य की संभावनाएं?

अनुसूचित जाति समुदाय झारखंड की राजनीति में निर्णायक भूमिका निभा सकता है. ऐसे में यदि यह आयोग और परिषद गठित होते हैं, तो इससे समुदाय के भीतर सत्तारूढ़ गठबंधन के प्रति विश्वास बढ़ेगा. यह सामाजिक बदलाव की दिशा में एक सकारात्मक पहल होगी. हालांकि, सिर्फ घोषणा करने से बात नहीं बनेगी. इसके लिए नीति, बजट और क्रियान्वयन की मजबूत योजना तैयार करनी होगी. अगर सरकार इस दिशा में गंभीरता दिखाती है, तो आने वाले विधानसभा चुनावों में यह एक बड़ा सियासी फैक्टर बन सकता है.

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