रांची के झिरी में कचरे की पहाड़ की जगह बनेगा पार्क, सरकार की योजना को केंद्र ने दी सहमति..

रांची का झिरी इलाका कचरा डंप करने वाली जगह के रूप में अपनी पहचान रखता है। शहर का सारा कचड़ा इस जगह डंप होता है अब सरकार इस जगह की पहचान बदलने की रणनीति पर काम कर रही है। झिरी में 40 एकड़ जमीन पर पिछले दो दशक से कचरा डंप किया जा रहा है। अब इस जगह कचड़े के पहाड़ की जगह हरियाली होगी। राज्य सरकार ने इसके लिए केंद्र को योजना भेजी थी जिस पर सहमति दे दी गयी है। जुडको ने 18 महीनों में झिरी से कूडे के पहाड़ को हटा कर वहां एक पार्क विकसित करने की योजना बनायी है। वर्ष 2024 की बरसात के पहले ही इस योजना को खत्म करने का लक्ष्य भी तय कर लिया है। नगर विकास विभाग ने कंपनी के चयन के लिए रांची नगर निगम को टेंडर निकालने का आदेश दिया है।

योजना में खर्च होंगे 136 करोड़ रुपये..
कचरा हटाने का काम निजी कंपनी को सौंपा जायेगा। चयनित कंपनी बायोरेमेडिएशन या बायो माइनिंग तरीके से कचरे को हटाने का काम करेगी। लगभग 136 करोड़ रुपये खर्च होगा। कंपनी को कचरे के निष्पादन के लिए झिरी में ही प्लांट लगाना होगा और योरेमेडिएशन या बायो माइनिंग तकनीक से कचरे के पहाड़ का 80 प्रतिशत हिस्सा खत्म करना होगा।

झिरी इलाके में रहने वाले को नहीं मिलती साफ हवा और पानी..
20 प्रतिशत कचरे का इस्तेमाल खाली जगहों की लैंडफील करने के काम आयेगा। शहर के लगभग 600 टन कचरा से यहां पहाड़ बन गया है। करीब 30 प्रतिशत कचरा मेडिकल वेस्ट है। आसपास रहने वाले लोगों का जीवन भी इस कचरे की वजह से प्रभावित हुआ है। पीने का साफ पानी और हवा दोनों यहां रहने वाले लोगों को मिलना मुश्किल हो गया है। बदबू के अलावा इलाके में मक्खी-मच्छर भरे पड़े हैं जिससे बीमारी का खतरा भी बढ़ रहा है।

पहले भी कचरे से बिजली और टाइल्स बनाने की योजना बनी थी..
यह पहली बार नहीं है जब इस तरह की कोशिश की जा रही है। इससे पहले भी पिछले 10 वर्षों से इस तरह की योजना बन रही है। साल 2010-11 में एटूजेड कंपनी ने कचरे को डिस्पोज कर उससे टाइल्स बनाने की योजना बतायी थी। 2014-15 में एसेल इंफ्रा ने कूड़े से बिजली बनाने की योजना बनायी थी। अब इस पर एक बार फिर रणनीति तैयार हुई है।

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