Jharkhand: संताल परगना के विभिन्न क्षेत्रों में निवास करने वाली पहाड़िया जनजाति आमतौर पर शांत और जंगली क्षेत्र में निवास करने वाली एक प्रजाति है। 1872 की जनगणना के अनुसार, इस क्षेत्र में पहाड़िया जनजाति के बसोबास पहाड़िया,सौरिया पहाड़िया,माल पहाड़िया बसे हुए है। जिसमे 86 हजार से अधिक बसोबास पहाड़िया, 68 हजार से अधिक सौरिया पहाड़िया व 18 हजार माल पहाड़िया थे। वहीं 2011 की जनगणना के अनुसार 140 साल बाद इस जनजाति की संख्या कोई विकास नहीं हुआ। यहां तक कि जनजाति की संख्या दोगुनी भी नहीं हो सकीं जबकि इतने ही साल में दूसरी जातियों की संख्या 10 गुणी तक बढ़ी।
ह्यूमन ट्रैफिकिंग व शोषण से घटती गयी इनकी संख्या ….
पहाडी जनजातियों का रहन-सहन व व्यवहार जंगलों में रहना, खेती कर, लकड़ियां जमा कर, आखेटन कर शांत भाव से जीवन यापन करना है। लेकिन, पिछले एक दशक से पहाड़ी जनजाति कई प्रकार के संक्रमण से ग्रसित हो रही है। साथ ही बाहरी लोग भूमि पर धीरे-धीरे कब्जा करते जा रहा है, आर्थिक शोषण बढ़ गया है। जनजातियों की भूमि पर उत्खनन से लोग करोड़ों-अरबों कमा रहे हैं, दूसरी तरफ इनकी हालत अत्यंत दयनीय बनी हुई है। शैक्षणिकता का विकास नहीं होने के कारण लोग अशिक्षित रह गए हैं। पहाड़ के सुदूरवर्तीक्षेत्र में रहने के कारण स्वास्थ्य सुविधाओं के लाभ से भी पीछे चल रहे हैं। पेयजल की समस्या भी इनके बीच एक मुख्य मुद्दा बना हुआ है। सरकार की तरफ से इनके लिए करोड़ों खर्च किए जा रहे हैं लेकिन इनकी स्थिति बत से बदतर नजर आ रही है। सबसे बड़ी समस्या पहाड़िया जनजाति के लड़के और लड़कियों की ट्रैफिकिंग की है। हजारों की संख्या में युवक व युवती देश के विभिन्न क्षेत्रों में ट्रैफिकिंग के माध्यम से ले जाये गये है। महानगरों में काम पर लगा दिये गये। इन्हें इन्हीं के बीच के लोग बरगला कर महानगरों में ले जाते हैं और काम पर लगा देते है।
मानव तस्करी से बचाई गई 111 लड़कियों….
अभी हाल ही में राज्य सरकार की पहल से साहिबगंज- पाकुड़ की 111 लड़कियों को बेंगलुरु से हवाई जहाज के माध्यम से वापस लाया गया। इनके साथ काउंसलिंग से यह बात स्पष्ट हुई कि इनके बीच का रहने वाला ही इन्हें वहां काम पर लगाने के लिए ले गया था। स्थिति इतनी भयावह है कि इन 11 बच्चियों को कोलकाता से बेंगलुरु ले जाते समय एक बोतल पानी और एक बार नाश्ता दिया गया। दुखद पहलू यह है कि मानव तस्करी में जो लोग शामिल हैं, उनका नाम आने के बाद भी किसी प्रकार की कार्रवाई नहीं हुई। सौरिया पहाड़िया साहिबगंज और गोड्डा जिले में
बहुतायत है।
इनके जीवनस्तर सुधारने के लिए करनी होगी इमानदार पहल….
इनके बचाने के लिए सबसे प्रमुख उपाय है कि इनके बीच शिक्षा का ज्योति जले। इनके 70 फीसदी बच्चों तक ही शिक्षा पहुंच पायी है। पहाड़िया बच्चों के लिए विद्यालय खोले गये हैं, लेकिन गुणवत्ता काफी निम्न है। यहां तक की बहुत सारे शिक्षक विद्यालयों में पढ़ा ही नहीं चाहते हैं जिसके कारण इन्हें उच्चस्तरीय शिक्षा इन तक नहीं पहुंच पाती हैं। अच्छी गुणवत्ता के शिक्षा प्रदान कर इन्हें अधिकारों के प्रति जागरूक करना होगा। कानून लाकर जो इनका जमीन का अधिग्रहण कर वारे-न्यारे हो रहे हैं, उसे रोकना होगा। इनके बीच पूरी इमानदारी से जनकल्याणकारी योजनाओं को लागू करनी होगी।
पहाड़ी क्षेत्रों मे नहीं पहुंच पा रहीं सुविधाए….
जनजातीय लोगों के पास रहने के लिए घर भी उपलब्ध नहीं है कैसे-कैसे वह मिट्टी लड़कियों का घर बनाकर अपना गुजारा कर रहे हैं एक समस्या यह है कि मैदानी क्षेत्र में जो भवन की लागत है वही पहाड़ों पर भी दी जा रही है। पहाड़ों पर कैरेज कॉस्ट बहुत अधिक है। इस कारण निर्माण कार्य अच्छा नहीं हो पाता है। इनके बीच स्वास्थ्य सुविधाओं को उपलब्ध कराना जरूरी है। वहीं सवाल यह है कि हमारे क्षेत्र में जब मैदानी क्षेत्रों में सुविधाएं नहीं है, तो हम पहाड़ी क्षेत्रों में कैसे दे सकते है। उत्तम स्वास्थ्य व्यवस्था इन तक पहुंचे इनका टीकाकरण 100% हो, इनके बच्चों और महिलाओं की स्वास्थ्य जांच मिशन मोड में की जाये तो ही हम इनका संरक्षण कर सकते है।
पहाड़िया जनजाति का सर्वे जरूरी….
इन्हें बताना होगा कि आपको अपने अधिकारों के प्रति जागरूक रहना है, शिक्षित होना है। पूरे संताल परगना में पहाड़िया जनजाति का सर्वे करना होगा कि इनकी कितने लड़के-लड़कियां देश के विभिन्न हिस्सों में गये हुए है। चिह्नित करते हुए मानव तस्करों को सख्त से सख्त सजा देनी होगी। इसके लिए पुलिस और प्रशासन को संपूर्ण इमानदारी के साथ कार्य करना होगा। तभी इनका पलायन रुक पायेगा। पहाड़िया जनजाति के पास संसाधनों की कमी नहीं है। उनके पास पहाड़ों पर बरबट्टी, बांस व मौसमी फलों का उत्पादन होता है, लेकिन उन्हें बाजार नहीं मिलता है। बरबट्टी एक ऐसी सब्जी है, जिसको इन भोले-भाले पहाड़ियों समुदाय से खरीद कर बिचौलिया लाखों कमा रहे है। सरकार यदि पहल करे तो बांस से बनने वाले सामानों सेउनका जीवन स्तर सुधर सकता है। वर्तमान समय में बांस से बनने वाले सामान का मार्केट बहुत अच्छा है। इनको स्किल डेवलपमेंट का प्रशिक्षण दिया जाये, युवक-युवतियों को स्वरोजगार से जोड़ा जाये तथा खेल से जोड़ कर इनकी सही मॉनिटरिंग हो तो इनका जीवनस्तर तेजी से बदल सकता है।
राजमहल पहाड़ियों का संरक्षण है अत्यंत जरूरी….
वर्तमान समय में इस जनजाति के संरक्षण के लिए सबसे अधिक जरूरी है राजमहल की पहाड़ियों का संरक्षण। पहाड़िया समुदाय पहाड़ों से निकलकर मैदानी क्षेत्रों में कभी निवास नहीं करेंगे। इनको इनके स्थानों पर ही स्किल्ड करना होगा। जेठ पंचायत के मुखिया देवेंद्र मालतो बताते हैं कि हमारी जनजाति बहुत ही भोले-भाले होती है और हमारे महिलाओं से शादी कर कई असामाजिक तत्व भूमि पर कब्जा कर रहे है। सरकार की योजनाओं का लाभ ले रहे हैं, सरकार ऐसा कानून बनाये जो हमारी लड़कियों से शादी करेगा उन्हें कोई अधिकार प्राप्त नहीं होगा। पहाड़ों का दोहन हो रहा है, उसको रोकने के लिए भी कठोर कानून बने। जनजातीय क्षेत्र में अच्छी कृषि किस प्रकार से हो इसके लिए सरकार चाहे तो बड़े-बड़े प्राकृतिक रूप से बहने वाले पानी को एक स्थान पर एकत्रित कर कई योजनाओं का संचालन कर सकती है।