नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) की बालू खनन पर रोक 15 अक्टूबर को हट जाएगी, लेकिन इसके बावजूद बालू खनन शुरू होना मुश्किल है. इसकी वजह यह है कि राज्य के घाटों को पर्यावरण स्वीकृति (ईसी) नहीं मिली है. बिना पर्यावरण स्वीकृति के किसी भी घाट से बालू खनन संभव नहीं है. इसी कारण एनजीटी की रोक हटने के बाद भी बालू की कमी बनी रहेगी, जिससे लोगों को दोगुने-तिगुने दाम पर ही बालू खरीदना पड़ेगा. झारखंड में सबसे खराब स्थिति रांची की है, जहां पिछले साल 19 घाटों का टेंडर हुआ था, लेकिन इनमें से केवल एक घाट, सुंडील, को ही पर्यावरण स्वीकृति मिली है. खनन विभाग के अधिकारियों के अनुसार, ग्राम सभा न होने की वजह से पर्यावरण स्वीकृति नहीं मिल पाई है. रांची सहित राज्य के अधिकतर जिलों में छह साल बाद 2023 में बालू घाटों का टेंडर हुआ था, लेकिन माइनिंग डेवलपमेंट प्लान तैयार करने में देरी के कारण इनवायरमेंट इंपैक्ट असेस्मेंट कमेटी (सिया) से पर्यावरण स्वीकृति नहीं मिली. इस कारण घर बनाने वाले आम लोग, बिल्डर्स और निर्माण क्षेत्र से जुड़े कामगारों को बालू की किल्लत का सामना करना पड़ रहा है.
चोरी-छिपे बिक रहा बालू, दोगुनी कीमत वसूली जा रही:
रांची जिले के जिन घाटों का टेंडर हुआ है, वहां से अब चोरी-छिपे बालू बेचा जा रहा है. ठेकेदार के लोग बालू की दोगुनी कीमत वसूल रहे हैं और पुलिस-प्रशासन की मिलीभगत से रात में अवैध खनन किया जा रहा है. पहले 130 सीएफटी (एक ट्रक) बालू के लिए 2500 रुपये देने पड़ते थे, लेकिन अब 100 सीएफटी बालू के लिए 6,000 से 7,000 रुपये तक वसूले जा रहे हैं. इसके बावजूद लोगों को सही क्वालिटी का बालू नहीं मिल रहा है.
ऑनलाइन बुकिंग पर भी दलालों का कब्जा:
झारखंड स्टेट मिनरल डेवलपमेंट कॉरपोरेशन (जेएसएमडीसी) ने बालू की ऑनलाइन बुकिंग की सुविधा शुरू की है. आयकर न भरने वालों को मुफ्त में बालू देने की घोषणा की गई है, लेकिन आम लोग ऑनलाइन बुकिंग ही नहीं करा पा रहे हैं. अगर बुकिंग हो भी गई तो बालू लाना मुश्किल है, क्योंकि अपने स्तर पर गाड़ी लेकर घाटों से बालू लाना संभव नहीं है. इस पर भी दलालों का कब्जा है. सरकार ने 100 सीएफटी बालू के लिए 750 रुपये की दर तय की है, लेकिन बालू लाने के लिए लोडिंग-अनलोडिंग और परिवहन शुल्क आवेदकों को खुद देना होता है. इस कारण आम लोगों के लिए बालू खरीदना बहुत महंगा और मुश्किल हो गया है.
हाईकोर्ट की कड़ी टिप्पणी, पुलिस-प्रशासन की मिलीभगत का आरोप:
रांची के विभिन्न घाटों से रात में बालू निकालने और बुढ़मू के छापर सहित अन्य घाटों पर उग्रवादियों और अपराधियों के वर्चस्व के कारण मारपीट और आगजनी की घटनाएं हो रही हैं. यह मामला हाईकोर्ट तक पहुंच गया है. एडवोकेट सरफराज ने इस संबंध में याचिका दायर की है. शनिवार को सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट के एक्टिंग चीफ जस्टिस सुजीत नारायण प्रसाद और जस्टिस एके राय की कोर्ट ने रांची एसएसपी द्वारा दाखिल शपथ पत्र पर नाराजगी जताई. शपथ पत्र में कहा गया था कि बालू की अवैध ढुलाई के मामले में चार थानों के दारोगा को शोकॉज किया गया है. इस पर याचिकाकर्ता के वकील राजीव कुमार ने कहा कि पुलिस की मिलीभगत से बालू का अवैध खनन और काला बाजार चल रहा है. थानों में एफआईआर दर्ज करने की बजाय सनहा दर्ज हो रहा है. कोर्ट ने पूछा कि एफआईआर की बजाय सनहा क्यों दर्ज किया जा रहा है. ऐसा लगता है कि पुलिस-प्रशासन की मिलीभगत से अवैध खनन चल रहा है. कोर्ट ने एसएसपी को नया शपथ पत्र दाखिल करने का निर्देश दिया है. अगली सुनवाई अब 20 सितंबर को होगी.
क्या है एनजीटी की रोक का असर:
एनजीटी की बालू खनन पर रोक हटने के बाद भी राज्य में बालू की किल्लत बनी रहेगी. पर्यावरण स्वीकृति के बिना बालू खनन संभव नहीं है और रांची के अधिकांश घाटों को अभी तक स्वीकृति नहीं मिली है. इससे आम लोग, बिल्डर्स और निर्माण कार्यों में लगे कामगारों को भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है. चोरी-छिपे बालू बेचा जा रहा है, जिससे लोग मजबूरन ऊंचे दाम पर बालू खरीदने को विवश हैं.