रांची: झारखंड के सबसे बड़े चिकित्सा संस्थान, राजेंद्र इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (रिम्स) में एमबीबीएस सीटें बढ़ाने की योजना को लेकर संसाधनों की कमी एक बड़ी बाधा बनी हुई है। भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (सीएजी) की ताजा रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि 2019 से 2021 के बीच केंद्र और राज्य सरकार से मिले 90.95 करोड़ रुपये में से 51 करोड़ रुपये बिना खर्च के रिम्स के खाते में पड़े रहे।
Follow the Jharkhand Updates channel on WhatsApp: https://whatsapp.com/channel/0029VafHItD1SWsuSX7xQA3P
एमबीबीएस सीटें बढ़ाने में आ रही बाधा
2016 में मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (अब नेशनल मेडिकल कमिशन) ने रिम्स का निरीक्षण किया था। रिम्स प्रशासन ने एमबीबीएस की सीटें 150 से बढ़ाकर 250 करने की अनुमति मांगी थी, लेकिन एनएमसी ने आवश्यक इंफ्रास्ट्रक्चर और मैनपावर की कमी के कारण आपत्ति जताई थी। 2019 में एनएमसी ने सीमित संसाधनों के बावजूद 30 सीटें बढ़ाने की अनुमति दी, जिससे कुल सीटें 180 हो गईं। लेकिन अभी तक 250 सीटों की मंजूरी नहीं मिल पाई है।
संसाधन बढ़ाने के लिए मिले थे 90.95 करोड़ रुपये
सीएजी रिपोर्ट के अनुसार, 2019 से 2021 के बीच रिम्स को केंद्र और राज्य सरकार से 90.95 करोड़ रुपये मिले थे। इसमें से 40 करोड़ रुपये अकादमिक ब्लॉक बनाने में खर्च किए गए, जबकि शेष 51 करोड़ रुपये बिना खर्च के पड़े रहे। इन पैसों का उपयोग मैनपावर की नियुक्ति के लिए किया जाना था, लेकिन प्रशासनिक अड़चनों के कारण यह संभव नहीं हो पाया।
मैनपावर की भारी कमी
सीएजी की रिपोर्ट के अनुसार, 250 सीटों के लिए आवश्यक मैनपावर में बड़ी कमी है। मौजूदा समय में रिम्स को अतिरिक्त 31 फैकल्टी, 79 तकनीशियन, 309 नर्सिंग स्टाफ, 19 प्रशासनिक कर्मचारी और 23 चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों की जरूरत है। लेकिन अब तक केवल 220 नर्सिंग स्टाफ की नियुक्ति हो पाई है। जब तक यह कमी पूरी नहीं होगी, एमबीबीएस सीटों की संख्या नहीं बढ़ाई जा सकेगी।
नियुक्तियों में देरी की वजह
सीएजी रिपोर्ट के अनुसार, नए पदों के सृजन का प्रस्ताव जनवरी 2021 में रिम्स गवर्निंग बॉडी (जीबी) ने मंजूर किया था। मार्च 2021 में इसे विभागीय अनुमोदन के लिए भेजा गया, लेकिन मार्च 2022 तक इसे मंजूरी नहीं मिली। मार्च 2023 तक भी इस पर कोई ठोस निर्णय नहीं लिया गया। इसी कारण से नियुक्तियों में देरी हुई।
रूरल और अर्बन हेल्थ ट्रेनिंग सेंटर में भी मैनपावर की कमी
रिम्स द्वारा संचालित रूरल हेल्थ ट्रेनिंग सेंटर (आरएचटीसी) और अर्बन हेल्थ ट्रेनिंग सेंटर (यूएचटीसी) में भी मैनपावर की भारी कमी है। इन केंद्रों का संचालन मेडिकल कॉलेज की मान्यता के लिए अनिवार्य होता है। रिपोर्ट के अनुसार, आरएचटीसी में 46% और यूएचटीसी में 62% मैनपावर की कमी दर्ज की गई है।
रिम्स में एमबीबीएस सीटों की संख्या बढ़ाने की योजना संसाधनों की कमी के कारण अधर में लटकी हुई है। केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा दिए गए करोड़ों रुपये खर्च नहीं हो पाए, जिससे नियुक्तियां नहीं हो सकीं। अगर जल्द ही मैनपावर और इंफ्रास्ट्रक्चर की समस्या का समाधान नहीं किया गया, तो भविष्य में मेडिकल शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं पर इसका नकारात्मक असर पड़ सकता है।