रांची: झारखंड की स्थानीय भाषा नागपुरी में बनी फिल्मों को लेकर जहां 2024 में उम्मीदें जगी थीं, वहीं 2025 की शुरुआत में यह उत्साह ठंडा पड़ता नजर आ रहा है। चार महीने के लंबे इंतजार के बाद नागपुरी फिल्म ‘नायका: रिवेंज ऑफ लव’ इस शुक्रवार को रिलीज हो रही है, लेकिन यह फिल्म झारखंड में सिर्फ एक सिनेमाघर – पीवीआर में केवल एक शो में ही दिखाई जाएगी।
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इसके उलट, बंगाल के पांच शहरों – सिलीगुड़ी, जलपाईगुड़ी, हैमिल्टनगंज, फलकता और मालबाजार में फिल्म को कुल 13 शो में जगह मिली है। इस असमान वितरण से एक बार फिर नागपुरी फिल्म इंडस्ट्री की स्थिति और राज्य सरकार की उदासीनता पर सवाल खड़े हो गए हैं।
झारखंड में सिंगल स्क्रीन हॉल बंद, मल्टीप्लेक्स में रेंट और शेयर का संकट
झारखंड में सिंगल स्क्रीन सिनेमाघरों की संख्या न के बराबर रह गई है। वहीं, मल्टीप्लेक्स संचालक पहले फिल्म के लिए मोटी रकम रेंट के रूप में मांगते हैं और फिर टिकट बिक्री का 70 प्रतिशत हिस्सा भी रखते हैं। इसके विपरीत, बंगाल, असम और ओडिशा में नागपुरी फिल्मों को 50-50 के लाभ में चलाने की नीति अपनाई जाती है। असम में तो स्थानीय फिल्मों को चलाना अनिवार्य कर दिया गया है, जिससे वहां की भाषा-संस्कृति को बढ़ावा मिल रहा है।
फिल्म का निर्माण खुद के प्रयास से, सब्सिडी नहीं मिलने का मलाल
फिल्म के निर्माता, निर्देशक और मुख्य अभिनेता बिनोद महली ने बताया कि उन्होंने 2017-18 में ‘तोर प्यार में’ के लिए सब्सिडी के लिए आवेदन दिया था, लेकिन उन्हें कोई सहायता नहीं मिली। उन्होंने बताया कि इस फिल्म के लिए भी उन्हें कोई सरकारी मदद नहीं मिली, जिसके बाद उन्होंने निजी प्रयासों से फिल्म बनाई। बिनोद ने कहा, “जब निर्देशक का काम संतोषजनक नहीं लगा, तो खुद निर्देशन की जिम्मेदारी उठाई और ‘नायका: रिवेंज ऑफ लव’ बनाई।”
फिल्म में लव ट्रायंगल, एक्शन और सस्पेंस का मेल
‘नायका’ में बिनोद महली, तृष्णा तांती, चंदा मेहरा, इसक लकड़ा, नितेश कच्छप और अमन मुख्य भूमिकाओं में नजर आएंगे। फिल्म में झारखंडी जीवनशैली, पारिवारिक मूल्य और सामाजिक मुद्दों को दर्शाने की कोशिश की गई है। बिनोद ने बताया कि फिल्म में लव ट्रायंगल के साथ भरपूर एक्शन और सस्पेंस है जो दर्शकों को अंत तक बांधे रखेगा।
फिल्म नीति पर सवाल, बंद पड़े हॉल और निष्क्रिय सरकार
नागपुरी फिल्म निर्देशक-लेखक रंजू मिंज ने कहा कि रांची समेत लोहरदगा, गुमला, खूंटी, सिमडेगा और लातेहार जिलों में नागपुरी बोली जाती है, लेकिन वहां एक भी सिनेमा हॉल सक्रिय नहीं है। सरकार द्वारा बनाई गई फिल्म नीति में पुराने सिनेमाघरों को पुनर्जीवित करने की योजना है, पर कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए हैं। रंजू मिंज का सुझाव है कि हर प्रखंड मुख्यालय में एक 200 सीटों वाला कला भवन बनाया जाए, जहां स्थानीय फिल्मों को दिखाया जाए। इससे न केवल स्थानीय संस्कृति को संबल मिलेगा, बल्कि आर्थिक गतिविधियों को भी बढ़ावा मिलेगा।
नागपुरी फिल्मों को लेकर झारखंड में एक बड़ी संभावनाएं हैं, परंतु सरकारी सहयोग के अभाव में ये संभावनाएं सिमटती जा रही हैं। ‘नायका: रिवेंज ऑफ लव’ जैसी फिल्में न केवल मनोरंजन देती हैं, बल्कि एक भाषा और संस्कृति को जीवित रखने का माध्यम भी बनती हैं। अब देखना है कि राज्य सरकार कब तक इस उपेक्षा की नीति को जारी रखेगी या वाकई में ‘अबुआ झारखंड’ की बात को हकीकत बनाएगी।