चाईबासा: सरना धर्म कोड को लेकर सिंहभूम सांसद गीता कोड़ा ने लोकसभा में सत्र के दौरान केन्द्र सरकार से इसे लागू करने की मांग की है. सांसद गीता कोड़ा ने कहा, कि बड़े दुख के साथ आज संसद से कहना पड़ रहा है कि आदिवासी जो भारत के मूल निवासी है, आज उनका अस्तित्व खतरे में है। इनकी पहचान, इनकी संस्कृति, इनकी भाषा ख़त्म होने के कागर पर है। सरकारइस ओर गंभीर नहीं है, केवल योजना बना लेने से उनका भला नहीं होने वाला। उन्होंने कहा की झारखंड सरकार ने बीते वर्ष विधानसभा से सर्वसम्मति से सरना धर्म कोड के लिए केंद्र सरकार को प्रस्ताव भेज दिया है। आज सदन से केंद्र सरकार को याद दिलाना चाहती हूं कि सरकार अपने आप को आदिवासी का हितैशी कहती है, तो उनके हित में काम भी करना होगा। आदिवासी खतरे में है। इनकी भाषा की रक्षा करने के लिए आने वाले जनगणना में सरना धर्म कोड को मान्यता दी जाए, तब जाकर हम आदिवासियों की संस्कृति को बचा पाएंगे।
वहीं सरना धर्म कोड की मांग को लेकर आज रांची में भी विभिन्न आदिवासी संगठन राजभवन के समक्ष धरना दिया। इस दौरान केंद्रीय सरना समिति, अखिल भारतीय आदिवासी विकास परिषद एवं अन्य संगठन शामिल रहे। धरना को संबोधित करते हुए केंद्रीय सरना समिति अध्यक्ष फूलचंद तिर्की ने कहा कि अगर आदिवासियों का धर्म कोड नहीं मिलता है तो झारखंड सहित पूरे देश में उलगुलान किया जाएगा। उन्होंने कहा कि प्राकृतिक पूजा का आदिवासी अब आर-पार की लड़ाई लड़ने को तैयार हैं। आदिवासी विकास परिषद के अध्यक्ष सतनारायण लकड़ा ने कहा कि यह देश में निवास करने वाले 15 करोड़ आदिवासियों के जीवन मरण का सवाल है। देश में निवास करने वाले 35 लाख की आबादी वाले समुदाय जैन धर्म को अलग से धर्मकोड जनगणना प्रपत्र में है तो फिर देश में निवास करने वाले 12 करोड़ आदिवासियों को अपना अलग धर्म कोड क्यों नहीं मिल सकता है। केंद्र सरकार आदिवासियों के धैर्य की परीक्षा ना लें।