सिंघभूम की नवनिर्वाचित सासंद जोबा मांझी, सरलता और शालीनता की हैं मिसाल..

लोकसभा चुनाव 2024 जीतकर जोबा मांझी सिंहभूम की दूसरी महिला सांसद बनी हैं. पर, राजनीति के इस शिखर तक पहुंचने के लिए जोबा मांझी ने जो संघर्ष किया वह सियासत में महिलाओं की सशक्त भागीदारी की बेहतरीन मिसाल है. जोबा मांझी बहुत ही सादगी पसंद महिला हैं, पति देवेंद्र मांझी के विधायक रहते हुए वह चक्रधरपुर के इतवारी बाजार में सब्जी बेचा करती थीं और इस बात से उनकी सादगी का अंदाजा बेहद आराम से लगाया जा सकता है. इतनी मेहनत और संलगनता के बाद आखिरकार झारखंड की सिंहभूम लोकसभा सीट से डेढ़ लाख से अधिक मतों के रिकॉर्ड अंतर से जीत दर्ज कर जोबा मांझी सिंहभूम की नई सांसद चुनी गई. असल में जोबा मांझी ने भारतीय जनता पार्टी की गीता कोड़ा को एक लाख अड़सठ हजार से भी अधिक मतों से पीछे छोड़ दिया और विजयी साबित हुईं. जोबा मांझी के राजनीतिक सफर की बात की जाए पति के देहांत के बाद जोबा मांझी ने कड़ी मेहनत कर अपने घर को संभालते हुए राजनीति में भी अपने अस्तित्व की नीव रखने की तदांतर कोशिश करती रहीं. दरअसल, 14 अक्टूबर 1994 को गोईलकेरा हाट में जब चक्रधरपुर और मनोहरपुर के विधायक रह चुके जल, जंगल व जमीन आंदोलन के प्रणेता देवेंद्र मांझी की हत्या हो गई थी. ऐसे मैं उस वक्त किसी ने भी नहीं सोचा था कि उनकी पत्नी जोबा मांझी न केवल अपने घर और पति के सपनों को साकार करने में सफल होंगी, बल्कि राजनीति में स्वयं को स्थापित करते हुए एक दिन पुरे सिंहभूम की आयरन लेडी बन जाएंगी. इससे पहले जोबा मांझी मनोहरपुर विधानसभा क्षेत्र से पांच टर्म विधायक और छह बार कैबिनेट मंत्री पद का कार्यभार संभाला करती थीं जिसके बाद अब जोबा मांझी सिंहभूम की दूसरी महिला सांसद भी बन गई हैं. साल 1995 में जब बिहार और झारखंड एक थे. तब बिहार में जोबा मांझी पहली बार मनोहरपुर विधानसभा क्षेत्र से विधायक चुनीं गई थीं. वह बिहार में राबड़ी देवी सरकार के कार्यकाल में मंत्री बनाई गई थीं. झारखंड गठन के बाद बाबूलाल मरांडी, अर्जुन मुंडा, मधु कोड़ा, शिबू सोरेन और हेमंत सोरेन सरकार के कार्यकाल में भी उन्हें मंत्री पदानियुक्त किया गया था. अब तक उनकी पहचान निर्विवाद और बेदाग छवि के नेता के रूप में रही है. राजनीति के इस ऊंचाई तक पहुंचने के लिए उन्होंने न केवल राजनीति में संलग्न रहीं बल्कि घरों का काम करती थी, अपने खेतों में भी एक आम किसान की तरह खेती-बारी किया करती थी. आम जीवन में सादगी और लोगों के साथ मुलाकात के दौरान शालीनता से पेश आती थीं.

जीत में था बड़े बेटे का खास योगदान..
वैसे ये लोकसभा चुनाव तो जोबा मांझी के राजनीतिक जीवन का सातवां चुनाव था, लेकिन पहली बार लोकसभा चुनाव का सामना कर रही जोबा मांझी का उनके बड़े बेटे जगत मांझी ने बेहद साथ दिया. जोबा मांझी के चुनाव प्रचार में व्यस्त होने के कारण पुत्र जगत मांझी ने पूरे इलेक्शन मैनेजमेंट की कमान अपने हाथों में ले रखी थी और इसमें वह सफल भी रहे. बूथ मैनेजमेंट से लेकर सभी प्रखंडों में कार्यालय खोलने, स्टार प्रचारकों के कार्यक्रम को सफल बनाने, नामांकन और रैलियों में भीड़ जुटाने से लेकर कार्यकर्ता और समर्थकों की जरूरतों को पूरा करने में अपनी परिपक्वता साबित कर उन्होंने अच्छे बेटे होने की दावेदारी बखुबी प्रस्तुत कर दी है. ऐसे में जगत से छोटे उदय मांझी और बबलू मांझी ने भी लगातार क्षेत्रों में प्रचार कर अपनी मां के कैम्पेनिंग को और सफल बनाने में अहम भूमिका निभाई.

 

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