डिमना स्थित एमजीएम मेडिकल कॉलेज परिसर में हाल ही में 632 बेड का नया अस्पताल तैयार हो गया है, और स्वास्थ्य मंत्री ने घोषणा की है कि अक्टूबर से इस अस्पताल के ओपीडी में मरीजों का इलाज शुरू हो जाएगा. हालांकि, अस्पताल में डॉक्टरों और स्टाफ की कमी पहले से ही चिंता का विषय है, जिससे यह सवाल उठ रहा है कि कैसे मौजूदा डॉक्टरों और स्टाफ के साथ नए अस्पताल का संचालन सुचारू रूप से किया जाएगा.
डॉक्टरों और स्टाफ की भारी कमी
वर्तमान में, 520 बेड वाले एमजीएम अस्पताल में स्वीकृत डॉक्टरों की संख्या 139 होनी चाहिए, जबकि केवल 56 डॉक्टर ही कार्यरत हैं. इसी तरह, अस्पताल में 270 स्टाफ नर्सों की जरूरत है, लेकिन केवल 11 नर्सें ही कार्यरत हैं. मौजूदा डॉक्टरों और स्टाफ की संख्या पहले से ही पर्याप्त नहीं है, और अब 632 बेड के नए अस्पताल का संचालन भी इन्हीं पर निर्भर होगा.
डॉक्टरों का अभाव
नए अस्पताल के ओपीडी और अन्य सेवाओं के लिए कम से कम 30 डॉक्टरों की आवश्यकता होगी. हर ओपीडी के लिए 3 डॉक्टर और एक पारा मेडिकल स्टाफ चाहिए, जिसमें एक सीनियर डॉक्टर, एक जूनियर डॉक्टर, और एक पीजी स्टूडेंट शामिल होते हैं. नए अस्पताल में 10 विभागों के ओपीडी चलाने के लिए कम से कम 30 डॉक्टर और 10 पारा मेडिकल स्टाफ की तुरंत आवश्यकता है. लेकिन वर्तमान स्थिति को देखते हुए, यह चुनौतीपूर्ण लग रहा है कि इतनी बड़ी संख्या में डॉक्टर और स्टाफ कहां से लाए जाएंगे.
अस्पताल में व्यवस्थाओं का अभाव
न केवल डॉक्टरों की कमी एक समस्या है, बल्कि नए अस्पताल में अन्य बुनियादी सुविधाओं की भी कमी है. फिलहाल, नए अस्पताल में पानी की व्यवस्था तक पूरी नहीं हुई है. इसके बावजूद, चुनाव के मद्देनजर मंत्रीजी का आदेश है कि अस्पताल का संचालन किसी भी हाल में शुरू किया जाए, इसलिए कोई भी अधिकारी सार्वजनिक रूप से कुछ कहने को तैयार नहीं है. एमजीएम मेडिकल कॉलेज के नए प्रिंसिपल, डॉ. दिवाकर हांसदा, ने इस संबंध में कुछ भी कहने से इंकार कर दिया. वहीं, डॉ. शिखा रानी ने कहा कि वे सरकार के निर्देशों के तहत काम करती हैं, और जो भी योजना सरकार द्वारा बनाई जाएगी, वे उसे लागू करेंगी.
नए अस्पताल में ओपीडी संचालन की चुनौतियाँ
नए अस्पताल का ओपीडी सेवा शुरू होने से मौजूदा डॉक्टरों को दोनों अस्पतालों के ओपीडी, इंडोर और इमरजेंसी सेवाओं को संभालना होगा. फिलहाल, एमजीएम अस्पताल में प्रत्येक विभाग में 2-3 यूनिट बनाई गई हैं, जो बारी-बारी से ओपीडी और इंडोर सेवाओं का संचालन करती हैं. नए अस्पताल के शुरू होने से डॉक्टरों की यूनिटों पर अतिरिक्त भार पड़ेगा, और उन्हें दोनों अस्पतालों में सेवाएं देने के लिए विभाजित किया जाएगा.
आउटसोर्सिंग पर निर्भर स्टाफ
अस्पताल में डॉक्टरों के अलावा अन्य मेडिकल स्टाफ की कमी भी एक बड़ी समस्या है. मेडिकल स्टाफ के नाम पर 281 कर्मचारी आउटसोर्सिंग के माध्यम से काम कर रहे हैं. चार साल से अस्पताल में कोई ड्रेसर नहीं है, और स्टाफ नर्सों की संख्या भी केवल 11 है. ऐसे में, नए अस्पताल का संचालन इन्हीं कर्मचारियों के सहारे किया जाएगा.
इलाज में गुणवत्ता की चिंता
मरीजों की बढ़ती संख्या और सुविधाओं की कमी को देखते हुए सवाल यह उठता है कि इलाज की गुणवत्ता कैसे सुनिश्चित की जाएगी. नया अस्पताल बनने के बावजूद, जब डॉक्टरों और स्टाफ की इतनी कमी है, तो अस्पताल की सेवाएं कितनी प्रभावी होंगी, यह एक गंभीर सवाल है.
अस्पताल की नई शुरुआत, लेकिन कई सवाल
अक्टूबर में अस्पताल के ओपीडी सेवाओं की शुरुआत के बावजूद, डॉक्टरों और स्टाफ की भारी कमी ने अस्पताल के सफल संचालन पर सवाल खड़े कर दिए हैं. स्वास्थ्य मंत्री की घोषणा के अनुसार, चुनाव से पहले अस्पताल का संचालन शुरू किया जाना है, लेकिन बिना पर्याप्त डॉक्टरों और स्टाफ के यह एक बड़ी चुनौती होगी.