झारखंड में ट्रॉमा सेंटर की व्यवस्था की स्थिति बेहद चिंताजनक है. राज्य में गंभीर मरीजों के इलाज के लिए केवल एकमात्र ट्रॉमा सेंटर है, जो रांची स्थित राजेंद्र इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (रिम्स) में है. यहां प्रतिदिन 35-40 गंभीर मरीज पहुंचते हैं, जबकि साप्ताहिक आंकड़ा 250 से 300 के बीच रहता है. मरीजों की बढ़ती संख्या के मुकाबले रिम्स के पास संसाधन और विशेषज्ञ डॉक्टरों की संख्या बेहद कम है.
ट्रॉमा सेंटर की मौजूदा स्थिति
रिम्स के ट्रॉमा सेंटर में केवल 7 क्रिटिकल केयर डॉक्टर हैं. पूरे राज्य के सभी निजी और सरकारी अस्पतालों को मिलाकर यह संख्या केवल 20 है. ऐसे में गंभीर मरीजों को इलाज में काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है. अस्पताल में बेड की संख्या मरीजों की तुलना में तीन गुना कम है, जिससे अव्यवस्था की स्थिति बनी रहती है. रिम्स के ट्रॉमा सेंटर इंचार्ज डॉ. प्रदीप भट्टाचार्य के अनुसार, कई बार मरीजों को बिना प्राथमिक उपचार के ही रेफर कर दिया जाता है, जिससे उनकी स्थिति और गंभीर हो जाती है.
हर जिले में ट्रॉमा सेंटर खोलने की योजना अधूरी
झारखंड सरकार ने जिला स्तर पर ट्रॉमा सेंटर खोलने की योजना बनाई थी, लेकिन यह कभी जमीन पर उतर नहीं सकी. राज्य के विभिन्न जिलों से गंभीर मरीजों को रिम्स रेफर कर दिया जाता है. ऐसे में मरीजों और उनके स्वजनों को लंबी दूरी तय करनी पड़ती है, जिससे इलाज में महत्वपूर्ण समय (गोल्डन आवर) बर्बाद हो जाता है.
निजी अस्पतालों में इलाज की स्थिति
झारखंड के बड़े निजी अस्पतालों में क्रिटिकल केयर डॉक्टर काम कर रहे हैं, लेकिन उनकी संख्या काफी कम है. कई बार मरीजों को भ्रमित किया जाता है और उनका इलाज सही तरीके से नहीं हो पाता है. धनबाद के टीके द्विवेदी, जमशेदपुर की तमन्ना बानो और गिरिडीह के दानिश अंसारी के मामलों में यह स्थिति साफ नजर आई. इन मरीजों को निजी अस्पतालों में इलाज के दौरान हालत बिगड़ने पर रिम्स रेफर किया गया, जहां उनकी जान बचाई जा सकी.
रिम्स में भी संसाधनों की कमी
रिम्स के क्रिटिकल केयर डॉक्टर जयप्रकाश के अनुसार, दुर्घटना के बाद अगर मरीज को छह घंटे के अंदर इलाज नहीं मिलता है, तो उसकी जान बचाना मुश्किल हो जाता है. लेकिन राज्य में ट्रॉमा सेंटर की कमी के कारण मरीजों को अस्पताल पहुंचने में ही कई घंटे लग जाते हैं. रिम्स में वेंटिलेटर बेड और अन्य जरूरी संसाधनों की भी कमी है, लेकिन यहां पहुंचने वाले किसी भी मरीज को इलाज से वंचित नहीं रखा जाता.
केस स्टडी-1: धनबाद के टीके द्विवेदी
टीके द्विवेदी सड़क हादसे में घायल हो गए थे. उन्हें पहले धनबाद के असफ अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां हालत बिगड़ने पर रांची के मेडिका अस्पताल रेफर किया गया. जब स्थिति और खराब हुई, तो उन्हें रिम्स लाया गया. यहां क्रिटिकल केयर टीम के इलाज के बाद उनकी जान बचाई गई.
केस स्टडी-2: जमशेदपुर की तमन्ना बानो
तमन्ना बानो को सिर में गंभीर चोट लगने पर ब्रह्मानंद अस्पताल में भर्ती कराया गया. यहां क्रिटिकल केयर डॉक्टरों की अनुपस्थिति के कारण उनकी स्थिति बिगड़ती गई. लाखों रुपये खर्च होने के बावजूद हालत में सुधार नहीं हुआ. बाद में उन्हें रिम्स लाया गया, जहां उनकी स्थिति नियंत्रित की गई.
केस स्टडी-3: गिरिडीह के दानिश अंसारी
दानिश अंसारी सड़क दुर्घटना में घायल हो गए थे. उन्हें गिरिडीह के एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया, लेकिन वहां क्रिटिकल केयर डॉक्टर नहीं थे. जब स्थिति बिगड़ी, तो उन्हें रिम्स रेफर किया गया. रिम्स में इलाज के बाद उनकी जान बचाई जा सकी.
क्या है ट्रॉमा सेंटर?
ट्रॉमा सेंटर में गंभीर चोटों वाले मरीजों का इलाज किया जाता है. इनमें मोटर वाहन की टक्कर, बंदूक की गोली लगने या गंभीर बीमारियां शामिल होती हैं. यहां क्रिटिकल केयर यूनिट और वेंटिलेटर बेड की सुविधा रहती है. रिम्स का ट्रॉमा सेंटर मरीजों के लिए आखिरी सहारा बन गया है, जहां उन्हें लौटाया नहीं जाता.