झारखंड विधानसभा चुनाव 2024 में एक बार फिर से कोल्हान प्रमंडल में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के बीच कड़ा मुकाबला होने की संभावना है. पिछले चुनाव में इंडी गठबंधन, जिसमें झामुमो और कांग्रेस शामिल थे, ने भाजपा को करारी शिकस्त दी थी. खासकर कोल्हान प्रमंडल में भाजपा का प्रदर्शन बेहद निराशाजनक रहा, जहाँ भाजपा एक भी सीट नहीं जीत पाई थी. यह पराजय तब और भी गहरी हो गई थी जब तत्कालीन मुख्यमंत्री रघुवर दास अपने गढ़ जमशेदपुर पूर्वी से निर्दलीय प्रत्याशी सरयू राय से हार गए थे.
2019 का चुनाव और भाजपा की हार
2019 के विधानसभा चुनाव में रघुवर दास के खिलाफ जबरदस्त असंतोष देखने को मिला था, जिसके कारण भाजपा को भारी नुकसान उठाना पड़ा. कोल्हान की 13 सीटों में से 9 सीटों पर झामुमो और 2 सीटों पर कांग्रेस ने जीत हासिल की थी. वहीं, जमशेदपुर पूर्वी सीट पर सरयू राय ने निर्दलीय रूप से जीत दर्ज की थी. रघुवर दास, जिन्होंने जमशेदपुर पूर्वी से 25 सालों तक लगातार जीत दर्ज की थी और मुख्यमंत्री बने थे, इस बार एंटी-इनकंबेंसी और टिकट वितरण में गड़बड़ी के कारण हार गए थे. सरयू राय ने उन्हें 15,000 से अधिक मतों से पराजित किया था. इस हार के बाद भाजपा के लिए कोल्हान में वापसी की चुनौती और भी कठिन हो गई थी.
भाजपा की नई रणनीति और नेतृत्व
हालांकि, इस बार के चुनाव में भाजपा कोल्हान में वापसी के लिए पूरी ताकत लगा रही है. भाजपा ने झामुमो के मजबूत नेता चंपाई सोरेन को अपने पाले में लाकर आदिवासी क्षेत्रों में सेंधमारी की है. चंपाई सोरेन सरायकेला क्षेत्र में आदिवासी समुदाय के बीच एक मजबूत पैठ रखते हैं, और उनके भाजपा में शामिल होने से झामुमो को चिंता जरूर हो रही है. इसके अलावा, मधु कोड़ा और उनकी पत्नी गीता कोड़ा भी इस बार भाजपा के साथ हैं. कोड़ा दंपती की आदिवासी और अन्य समुदायों में पकड़ काफी मजबूत मानी जाती है. साथ ही, भाजपा के पास अर्जुन मुंडा जैसे अनुभवी नेता भी हैं, जो कोल्हान के आदिवासी क्षेत्रों में लोकप्रिय हैं. इन तीनों नेताओं के सहारे भाजपा कोल्हान में अपनी स्थिति सुधारने की कोशिश कर रही है. भाजपा की यह रणनीति पिछले चुनाव के खराब प्रदर्शन से उबरने का प्रयास है, जहाँ उसे एक भी सीट पर जीत नहीं मिली थी.
झामुमो की स्थिति मजबूत, हेमंत सोरेन हैं चेहरा
दूसरी ओर, झामुमो अपनी मजबूत स्थिति में बना हुआ है. मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन, जिन्होंने पिछले चुनाव में भाजपा को शिकस्त दी थी, आदिवासी समुदायों के बीच एक मजबूत चेहरा बन चुके हैं. पहले उनके पिता शिबू सोरेन आदिवासी राजनीति के प्रमुख चेहरा थे, लेकिन अब हेमंत सोरेन ने उस भूमिका को बखूबी निभाया है. झामुमो के पास हेमंत सोरेन के साथ उनकी पत्नी कल्पना सोरेन भी आदिवासी समुदायों में एक जाना-पहचाना चेहरा बन गई हैं. हेमंत सोरेन ने चुनाव से पहले अपनी योजनाओं के जरिए जनता को लुभाने की कोशिश की है. विशेष रूप से ‘मंईयां सम्मान योजना’ के तहत उन्होंने एक-एक हजार रुपये देने का एलान किया था, और आचार संहिता लागू होने से कुछ घंटे पहले कैबिनेट मीटिंग में 2500 रुपये की पांचवीं किस्त की घोषणा की, जिससे भाजपा की मुश्किलें और बढ़ गई हैं.
भाजपा की वापसी की उम्मीदें
भाजपा को उम्मीद है कि चंपाई सोरेन, अर्जुन मुंडा और कोड़ा दंपती के साथ होने से वह इस बार कोल्हान में अपनी स्थिति मजबूत कर सकती है. पिछली बार जहां भाजपा को आदिवासी समुदायों से दूर रखा गया था, वहीं इस बार पार्टी का मानना है कि इन नेताओं की मौजूदगी से आदिवासी मतदाताओं का झुकाव भाजपा की ओर हो सकता है. वहीं, झामुमो की ओर से हेमंत सोरेन के नेतृत्व में पार्टी एक मजबूत स्थिति में है और भाजपा को चुनौती देने के लिए पूरी तरह तैयार है. कोल्हान की राजनीति में आदिवासी समुदाय का महत्वपूर्ण योगदान होता है, और इस बार के चुनाव में भाजपा और झामुमो के बीच इस समुदाय के वोटों के लिए जबरदस्त मुकाबला होने की संभावना है.