पेसा कानून पर कांग्रेस की सियासी सक्रियता से जेएमएम में बेचैनी, आदिवासी वोट बैंक की राजनीति तेज

रांची: झारखंड की सियासत में इन दिनों पेसा कानून (PESA Act) को लेकर घमासान तेज हो गया है। प्रदेश कांग्रेस पार्टी द्वारा कानून को लेकर जिला स्तर से लेकर प्रदेश स्तर तक कार्यक्रमों की श्रृंखला शुरू करने के बाद सत्तारूढ़ गठबंधन के प्रमुख घटक दल झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) में चिंता की लकीरें उभरने लगी हैं।

कांग्रेस इस कानून के जरिए जनजातीय समाज में अपनी पकड़ मजबूत करने की रणनीति पर काम कर रही है। वहीं जेएमएम इसे राजनीतिक लाभ लेने की कोशिश मान रहा है।

कांग्रेस की कार्यशाला से बढ़ी हलचल

11 जून को रांची में कांग्रेस द्वारा आयोजित की जा रही प्रदेश स्तरीय कार्यशाला को लेकर राजनीतिक गलियारों में चर्चा तेज है। इस कार्यशाला में विभिन्न आदिवासी संगठनों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और विशेषज्ञों को आमंत्रित किया गया है, जिससे पेसा कानून को लेकर आम सहमति बन सके और कांग्रेस की छवि जनजातीय हितैषी पार्टी के रूप में उभरे।

कांग्रेस प्रवक्ता जगदीश साहू ने कहा कि, “पेसा कांग्रेस की देन है, और झारखंड में इसे प्रभावी रूप से लागू करना हमारी प्राथमिकता है। हम इसे महज कानून नहीं, बल्कि आदिवासियों को अधिकार संपन्न बनाने का औजार मानते हैं।”

जेएमएम का पलटवार: कांग्रेस उठा रही पुराना मुद्दा

कांग्रेस की बढ़ती सक्रियता से जेएमएम असहज हो गया है। पार्टी प्रवक्ता मनोज पांडे ने कहा कि, “पेसा जेएमएम के एजेंडे में शुरू से रहा है और मुख्यमंत्री खुद इस विषय को लेकर गंभीर हैं। कांग्रेस महज दिखावे के लिए इस मुद्दे को उठा रही है।” उन्होंने यह भी जोड़ा कि गठबंधन सरकार में समन्वय समिति है, जहां इस तरह के विषयों पर चर्चा होती है।

पेसा कानून: आदिवासी क्षेत्र में प्रभावी हथियार

पेसा कानून, यानी Panchayats (Extension to Scheduled Areas) Act, 1996 देश के अनुसूचित जनजातीय बहुल क्षेत्रों में ग्राम पंचायतों को विशेष अधिकार देता है। यह कानून पांचवीं अनुसूची के तहत आता है और इसका उद्देश्य आदिवासियों को स्वशासन, भूमि अधिकार और संसाधनों पर नियंत्रण देना है।

झारखंड में अब तक अधिसूचित नहीं हुए नियम

झारखंड और ओडिशा दो ऐसे राज्य हैं जहां अभी तक पेसा कानून के तहत राज्य सरकार ने अपनी नियमावली अधिसूचित नहीं की है। जबकि मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, तेलंगाना, राजस्थान, आंध्रप्रदेश, गुजरात और हिमाचल प्रदेश जैसे राज्यों ने अपनी-अपनी नियमावली बना ली है।

राजनीतिक समीकरणों पर असर

कांग्रेस की यह पहल न सिर्फ जेएमएम को असहज कर रही है, बल्कि आगामी विधानसभा चुनावों के लिहाज से आदिवासी वोट बैंक पर पकड़ मजबूत करने की रणनीति के रूप में भी देखी जा रही है। झारखंड की राजनीति में आदिवासी जनसंख्या एक बड़ा वोट बैंक है, और पेसा जैसे मुद्दे पर पकड़ बनाने से दलों को सीधा फायदा मिल सकता है।

पेसा कानून झारखंड में महज एक कानूनी विषय नहीं, बल्कि राजनीतिक हथियार बनता जा रहा है। कांग्रेस और जेएमएम के बीच इसे लेकर पैदा हुई खींचतान आने वाले दिनों में सत्तारूढ़ गठबंधन के समन्वय और राज्य की जनजातीय राजनीति की दिशा तय करेगी।

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