आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को जीवित्पुत्रिका व्रत है। इस बार मंगलवार से शुरू होकर गुरुवार तक चलेगा। इस व्रत को जिउतिया, जितिया, जीवित्पुत्रिका या जीमूतवाहन व्रत भी कहते हैं। माताएं जीवित्पुत्रिका व्रत संतान प्राप्ति और उसकी दीर्घायु के लिए रखती हैं। हिंदू पंचांग के अनुसार, आश्विन की अष्टमी को हर साल जिउतिया व्रत का पहला दिन नहाए खाए होता है। उसके अगले दिन निर्जला व्रत रखा जाता है। राधाकृष्ण मंदिर कृष्ण नगर के पुजारी पंडित ज्ञानदेव मिश्रा और पंडित रामचंद्र उपाध्याय का कहना है कि जिउतिया व्रत के पहले दिन नहाए खाए को सूर्यास्त के बाद कुछ नहीं खाना चाहिए। मान्यता है कि ऐसा करने से व्रत खंडित हो जाता है। माताएं 24 घंटे का निर्जला उपवास रखकर जीवित्पुत्रिका का व्रत करती हैं। अष्टमी का योग मंगलवार को 3 बजकर 5 मिनट से बुधवार को शाम 4.54 बजे तक रहेगा। ऐसे में बुधवार को अष्टमी में सूर्योदय होने के कारण व्रत 29 सितंबर को रखा जाएगा, जबकि व्रत का पारण गुरुवार की सुबह 6.05 बजे के बाद किया जा सकता है।
इस पर्व से जुड़ी एक कथा है कि गन्धर्वराज जीमूतवाहन बड़े धर्मात्मा और त्यागी थे। युवाकाल में ही राजपाट छोड़कर वन में पिता की सेवा करने चले गए थे। एक दिन भ्रमण के दौरान उन्हें एक नाग माता मिली। जब जीमूतवाहन ने उनके विलाप का कारण पूछा तो उन्होंने बताया कि नागवंश गरुड़ से काफी परेशान है। वंश की रक्षा करने के लिए नागवंश ने गरुड़ से समझौता किया है कि वह प्रतिदिन उसे एक नाग खाने के लिए देंगे और इसके बदले वो हमारा सामूहिक शिकार नहीं करेगा। इस प्रक्रिया में आज उसके पुत्र को गरुड़ के सामने जाना है। नाग माता की पूरी बात सुनकर जीमूतवाहन ने उन्हें वचन दिया कि वे उनके पुत्र को कुछ नहीं होने देंगे और उसकी जगह कपड़े में लिपटकर खुद गरुड़ के सामने उस शिला पर लेट जाएंगे। गरुड़ ने जीमूतवाहन को अपने पंजों में दबोचा और पहाड़ की तरफ उड़ चला। जब गरुड़ ने देखा कि हमेशा की तरह नाग चिल्लाने और रोने की जगह शांत है। उसने कपड़ा हटाकर जीमूतवाहन को पाया। जीमूतवाहन ने सारी कहानी गरुड़ को बता दी, जिसके बाद उसने जीमूतवाहन को छोड़ दिया और नागों को न खाने का भी वचन दिया।