दुबई फैशन वीक 2024 में भारतीय संस्कृति और परंपराओं का अद्भुत संगम देखने को मिला, जहां झारखंड के पारंपरिक आदिवासी परिधान ‘लुगा’ ने पहली बार अंतरराष्ट्रीय मंच पर कदम रखा. इस अनूठी प्रस्तुति ने न केवल आदिवासी पहनावे की खूबसूरती को सामने लाया, बल्कि भारतीय पारंपरिक वस्त्रों को फैशन की नई ऊंचाइयों पर ले जाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम भी साबित हुआ. ‘फैशन फॉर ऑल सीजन-3’ नामक इस फैशन शो में कांति गाड़ी के फैशन ब्रांड ‘द प्राइड ऑफ ट्राइब’ द्वारा प्रस्तुत उरांव जनजाति के पारंपरिक परिधान की खास चर्चा रही.
फैशन फॉर ऑल सीजन-3 में आदिवासी पहनावे की भव्य प्रस्तुति
‘फैशन फॉर ऑल सीजन-3’ में पहली बार किसी आदिवासी जनजाति के पारंपरिक पहनावे को आधुनिक और स्टाइलिश अंदाज में पेश किया गया. झारखंड के उरांव जनजाति का पारंपरिक परिधान ‘लुगा’ इस शो का मुख्य आकर्षण रहा. इस परिधान को कांति गाड़ी के फैशन ब्रांड ‘द प्राइड ऑफ ट्राइब’ ने पेश किया. झारखंड के स्थानीय हैंडलूम और वस्त्रों से तैयार लुगा को बच्चों ने रैंपवॉक के दौरान पहना, जिससे इस पारंपरिक परिधान का एक नया और आकर्षक रूप उभरकर सामने आया. शो की जूरी कमेटी ने इस पहल की जमकर सराहना की, जिससे भारतीय फैशन के आदिवासी तत्वों को वैश्विक स्तर पर पहचान मिली. फैशन शो के दौरान, इस परिधान को फैशन डिजाइनर निमिता केरकेट्टा ने डिज़ाइन किया और इंडिया लीड मून मुखर्जी ने इस पूरे शो को कोरियोग्राफ किया. यह शो उन सभी लोगों के लिए प्रेरणादायक रहा जो अपने पारंपरिक वस्त्रों को एक आधुनिक और अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाने का सपना देखते हैं.
कांति गाड़ी: एक प्रेरणादायक व्यक्तित्व
कांति गाड़ी, जो पेशे से एक इंटरनेशनल केबिन क्रू हैं और वर्तमान में एयर इंडिया एक्सप्रेस बेंगलुरु में कार्यरत हैं, ने इस फैशन शो में अपने ब्रांड ‘द प्राइड ऑफ ट्राइब’ की आधिकारिक लॉन्चिंग की. उन्होंने न केवल शो में बच्चों के साथ रैंपवॉक किया, बल्कि उन्होंने अपने फैशन ब्रांड के प्रति अपनी गहरी प्रतिबद्धता और जुनून को भी दर्शाया. कांति ने संत जेवियर्स कॉलेज, रांची से बीकॉम की पढ़ाई की है. पढ़ाई के बाद उन्होंने एविएशन का क्षेत्र चुना, लेकिन फैशन में उनकी रुचि ने उन्हें इस क्षेत्र में भी सक्रिय रखा. कांति का फैशन में प्रवेश सिर्फ एक शौक नहीं था, बल्कि यह उनकी संस्कृति और परंपराओं को जीवित रखने का एक प्रयास था. वह 2018 और 2024 में संयुक्त राष्ट्र के जेनेवा सम्मेलन में वक्ता के रूप में भाग ले चुकी हैं और 2022 में राउरकेला में आयोजित ‘ग्लोबल ट्राइबल क्वीन’ इवेंट में बेस्ट पर्सनालिटी का टाइटल भी जीत चुकी हैं. कांति का लक्ष्य है कि झारखंड के आदिवासी परिधान को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई जाए और इसे एक ब्रांड के रूप में विकसित किया जाए.
झारखंडी परिधान को ग्लोबल पहचान दिलाने का सपना
कांति गाड़ी का सपना सिर्फ झारखंड के आदिवासी परिधानों को प्रमोट करना नहीं है, बल्कि उन्हें एक वैश्विक पहचान दिलाना भी है. उन्होंने इस दिशा में अपने सफर की शुरुआत इस्तांबुल में आयोजित तीन दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन से की. इस सम्मेलन में उन्होंने देखा कि विभिन्न देशों के प्रतिनिधि अपने-अपने स्थानीय परिधानों में आए थे. यह देखकर उन्हें अपने आदिवासी पहनावे को भी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ले जाने की प्रेरणा मिली. कांति ने इस अनुभव के बाद ‘द प्राइड ऑफ ट्राइब’ की स्थापना की, जिसका मकसद झारखंड के पारंपरिक वस्त्रों को न सिर्फ भारत बल्कि दुनिया भर में लोकप्रिय बनाना है. उनका मानना है कि झारखंड के आदिवासी परिधान की खूबसूरती और अनोखेपन को यदि सही मंच मिले तो इसे एक मजबूत फैशन ब्रांड के रूप में स्थापित किया जा सकता है.
झारखंड के हैंडलूम और पारंपरिक शिल्प को नया आयाम
कांति गाड़ी और उनकी टीम ने ‘द प्राइड ऑफ ट्राइब’ के माध्यम से न केवल झारखंड के पारंपरिक हैंडलूम को पुनर्जीवित किया है, बल्कि उसे एक आधुनिक और स्टाइलिश अंदाज में पेश किया है. उन्होंने उरांव जनजाति के पारंपरिक परिधान ‘लुगा’ को लेकर यह साबित कर दिया कि आदिवासी परिधान भी फैशन की दुनिया में नए ट्रेंड सेट कर सकते हैं. निमिता केरकेट्टा, जिन्होंने इन परिधानों को डिज़ाइन किया, ने स्थानीय वस्त्रों और शिल्प को ध्यान में रखते हुए इन परिधानों को तैयार किया. उनका उद्देश्य सिर्फ फैशन नहीं, बल्कि झारखंड के पारंपरिक वस्त्रों को एक नई पहचान देना था. इसके साथ ही, इंडिया लीड मून मुखर्जी ने शो को इस तरह से कोरियोग्राफ किया कि झारखंड के परिधान की खूबसूरती पूरी दुनिया के सामने उजागर हो सके.
निष्कर्ष: फैशन की दुनिया में झारखंड का नया अध्याय
दुबई फैशन वीक में झारखंड के आदिवासी परिधान की भव्य प्रस्तुति ने यह साबित कर दिया कि भारतीय पारंपरिक वस्त्रों की वैश्विक पहचान बनने की अपार संभावनाएं हैं. कांति गाड़ी और उनकी टीम ने झारखंड के आदिवासी पहनावे को फैशन के एक नए मुकाम पर पहुंचाया है. उनके इस प्रयास से न केवल झारखंड के वस्त्र उद्योग को बल मिलेगा, बल्कि यह राज्य की सांस्कृतिक धरोहर को भी वैश्विक स्तर पर नई पहचान दिलाने में सहायक होगा.