झारखण्ड सरकार के कर्ज की राशि पहुंची 90 हज़ार करोड़ के पार..

झारखंड की हेमंत सरकार पर क़र्ज़ की राशि 90 हजार करोड़ के पार पहुंच गई है।आपको बता दें कि यह राशि इतनी बड़ी है कि झारखंड में जन्म लेने वाले बच्चे के माथे पर भी लगभग 23 हजार का कर्ज होगा।वहीं, प्रदेश के लगभग चार करोड़ नागरिकों के लिए ऐसी स्थिति है। दरअसल , कोरोनाकाल में खस्ताहाल खजाना होने के बाद हेमंत सरकार ने छह हजार करोड़ का कर्ज लिया है। माना जा रहा है कि इस कर्ज़ की वजह से 2021-22 में पेश होने वाले बजट पर काफी असर होगा |

जानकारी के अनुसार ,कर्ज की इस भारी-भरकम राशि का असर झारखण्ड के नागरिकों को 2020-21 के आर्थिक सर्वेक्षण और 2021-22 के लिए पेश होने वाले बजट पर पड़ने वाला है। वहीं ,ये कर्ज झारखंड के बजट पर सबसे बड़ा बोझ साबित होने वाला है। साथ ही ,राज्य की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने में ये एक बड़ी चुनौती है जिसे पार पाना काफी मुश्किल है | हालांकि , झारखंड सरकार के अधिकारी कर्ज को विकास के लिए जरूरी मानते हैं।

ऐसा तर्क दिया जाता है कि झारखण्ड पर वास्तविक कर्ज़ 70 हज़ार करोड़ के आस -पास ही है बाकि की राशि पीएल अकाउंट या दूसरे बुक ट्रांसफर प्रक्रिया के वजह से है | हाल ही में केंद्र सरकार कीओर से सकल घरेलू उत्पाद की तुलना में बढ़ाए गए कर्ज का अनुपात भी बढे हुए क़र्ज़ का एक कारण है | आपको बता दें कि झारखंड की अर्थव्यवस्था के आकार के लगभग साढ़े तीन लाख करोड़ के होने का अनुमान लगाया जा रहा है। ऐसी स्थिति में झारखंड की कर्ज राशि 27 फीसदी के पार है।जानकारी के अनुसार , झारखंड सरकार की ओर से लिए गए कर्ज का ब्याज हर साल छह हजार करोड़ से अधिक चुकाना पड़ता है।वहीं , हर दिन के हिसाब से यह राशि लगभग 19 करोड़ है। ये कर्ज विश्व बैंक, एशियाई विकास बैंक, भारतीय रिजर्व बैंक, नाबार्ड, हुडको और भारत सरकार की दूसरी एजेंसियों के हैं।

इस कर्ज़ के नुकसान कुछ इस प्रकार है –

सालाना 6000 करोड़ से अधिक ब्याज चुकाने में चला जाता है। जबकि इस राशि से इन्फ्रास्ट्रक्चर या जनकल्याण के बड़े काम हो सकते हैं। वहीं ,दूसरी ओर कर्ज के भरोसे अर्थव्यवस्था चलाने से सरकारी तंत्र में फिजूलखर्ची और भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलता है।

कर्ज़ बढ़ने की वजह ये हैं –

– सरकार के राजस्व बढ़ोतरी के स्रोत बहुत कम हैं। इसकी तुलना में हर साल बजट का आकार बढ़ता जा रहा है। इस घाटे को व्यवस्थित करने के लिए लोन लेना पड़ता है।
– प्रदेश में पर्याप्त निवेश नहीं होने के कारण कारोबारी विकास नहीं हो रहा है। इससे कर की कम प्राप्ति होती है।
– कृषि उत्पादन कम होने के कारण प्रदेश में कृषि अर्थव्यवस्था का विकास नहीं हो रहा है।
– बिजली निगम जैसी कंपनियों के घाटे में चलने के कारण उन्हें कर्ज लेना पड़ता है।
– सरकार में कई जगह फिजूलखर्ची दिखती है। कई अनावश्यक निर्माण भी हुए हैं।

इस तरह से हो सकता है समाधान

– सरकार सबसे पहले कर के नए स्रोत विकसित करे। इसकी पूरी योजना तैयार करे।
– प्रवेश में पर्याप्त निवेश लाया जाए। इससे कारोबार बढ़ेगा और कर प्राप्ति बढ़ेगी।
– प्रदेश में कृषि उत्पादन बढ़ाया जाए।
– प्रदेश में कई सार्वजनिक उपक्रमों का विकास किया जाए। इनसे सरकार का राजस्व बढ़ेगा।
– संपत्ति कर और पेशा कर की बढ़ोतरी का व्यवस्थित तंत्र बनाया जाए।
– सरकार में मितव्ययिता को बढ़ावा दिया जाए। फिजूलखर्ची रोकी जाए।
– कई सुविधाओं को निजी कंपनियों के हवाले कर उनसे प्राप्त होने वाले राजस्व को बढ़ाया जाए।