झारखंड में कुड़मी समुदाय का विधानसभा चुनाव में बेहद अहम रोल होने वाला है, खासकर 2024 के विधानसभा चुनाव में. राजनीतिक दलों ने अपनी तैयारियों को जोर-शोर से शुरू कर दिया है. कुड़मी समाज झारखंड में लगभग 22 विधानसभा सीटों पर निर्णायक भूमिका निभाता है, जिसके कारण हर राजनीतिक दल इस समुदाय को अपने पक्ष में करने के लिए कोशिश कर रहा है.
कुड़मी समाज का बढ़ता राजनीतिक महत्व
झारखंड में विधानसभा चुनाव की तारीखों का एलान भले ही अभी तक नहीं हुआ है, लेकिन सभी प्रमुख राजनीतिक दलों ने अपनी चुनावी रणनीतियों पर काम करना शुरू कर दिया है. एनडीए और इंडिया (INDIA) गठबंधन, दोनों की नजर ओबीसी समुदाय, खासकर कुड़मी समाज पर है. कुड़मी समाज का प्रभावी नेतृत्व कौन करेगा, यह चुनावी चर्चाओं का एक महत्वपूर्ण सवाल बन गया है. कुड़मी समाज से आने वाले नेताओं में से एक जयराम महतो ने अपनी पार्टी झारखंड क्रांतिकारी लोकतांत्रिक मोर्चा (JKLM) बनाई है, जो मुख्य रूप से कुड़मी समाज के समर्थन पर निर्भर है. साथ ही, कांग्रेस ने कुड़मी समुदाय को साधने के लिए प्रदेश अध्यक्ष के पद पर केशव महतो कमलेश की नियुक्ति की है. इस नियुक्ति को महागठबंधन की ओर से कुड़मी समुदाय का विश्वास जीतने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है.
कुड़मी समुदाय का नेता कौन?
झारखंड के राजनीतिक पंडितों का मानना है कि इस बार के चुनाव में यह स्पष्ट हो जाएगा कि कुड़मी समुदाय का निर्विवाद नेता कौन होगा. वरिष्ठ पत्रकार सतेंद्र सिंह का कहना है कि राज्य की राजनीति में विनोद बिहारी महतो से लेकर जयराम महतो तक कई बड़े कुड़मी नेता हुए हैं, लेकिन वर्तमान समय में सुदेश महतो ही सबसे प्रभावशाली नेता माने जाते हैं. सुदेश महतो, जो झारखंड की आजसू पार्टी (ऑल झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन) के सुप्रीमो हैं, पूर्व उपमुख्यमंत्री भी रह चुके हैं. उनका प्रभाव कुड़मी समाज के साथ-साथ पूरे झारखंड में है. एनडीए में शामिल होने के बाद सुदेश महतो को कुड़मी वोटरों को साधने की कोशिशों के केंद्र में रखा जा रहा है. लेकिन महागठबंधन ने कांग्रेस में केशव महतो कमलेश को प्रदेश अध्यक्ष बनाकर एक चाल चली है. कांग्रेस ने भूमिहार जाति से आने वाले राजेश ठाकुर को हटाकर कुड़मी समुदाय से केशव महतो को जिम्मेदारी दी, ताकि इस वर्ग के वोटरों को साधा जा सके.
कुड़मी समुदाय के नेताओं की कमी
हालांकि राज्य की राजनीति में कुड़मी समाज के बड़े नेताओं की कमी महसूस की जा रही है. भाजपा और कांग्रेस, दोनों के पास प्रभावशाली कुड़मी नेता नहीं हैं, जिनकी पहचान पूरे झारखंड में हो. हालांकि, कई दिग्गज कुड़मी नेताओं ने समय-समय पर राज्य की राजनीति में अपना योगदान दिया है. विनोद बिहारी महतो, जयराम महतो, सुधीर महतो, सुनील महतो, शैलेंद्र महतो, जगरनाथ महतो, टेकलाल महतो जैसे कई कुड़मी नेता झारखंड की राजनीति में अपनी छाप छोड़ चुके हैं, लेकिन आज के समय में सुदेश महतो के अलावा किसी का भी पैन-झारखंड पहचान उतनी व्यापक नहीं है.
भाजपा का पक्ष
भाजपा के प्रवक्ता बिजय चौरसिया का कहना है कि उनकी पार्टी जातिवादी राजनीति नहीं करती. उनका जोर राष्ट्रवाद पर है, न कि जाति या वर्ग विशेष की राजनीति पर. हालांकि, वह मानते हैं कि नवोदित नेता जयराम महतो का कुछ क्षेत्रों में प्रभाव हो सकता है, लेकिन इसका असर महागठबंधन पर अधिक पड़ेगा. भाजपा का मानना है कि कुड़मी वोटरों को साधने के लिए पार्टी को ज्यादा जोर लगाने की जरूरत नहीं है, क्योंकि वे राष्ट्रवाद और विकास की राजनीति पर विश्वास करते हैं. पार्टी के मुताबिक, सुदेश महतो के नेतृत्व में कुड़मी समुदाय का एक बड़ा हिस्सा उनके साथ आ सकता है.
महागठबंधन का दावा
महागठबंधन, खासकर कांग्रेस का मानना है कि उनके पास कुड़मी समाज का सबसे अनुभवी और भरोसेमंद नेता केशव महतो कमलेश हैं. पूर्व शिक्षा मंत्री और कांग्रेस नेता बंधु तिर्की का कहना है कि सुदेश महतो कभी कुड़मी या ओबीसी समाज के असली नेता नहीं हो सकते. उन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान ओबीसी समुदाय के हितों की उपेक्षा की है. बंधु तिर्की के अनुसार, सुदेश महतो ने ओबीसी के लिए कुछ ठोस नहीं किया, बल्कि भाजपा के समर्थन से सत्ता में बने रहने की कोशिश की. वहीं, कांग्रेस हमेशा से पिछड़े वर्ग के अधिकारों के लिए लड़ती आई है, और इस बार भी वह कुड़मी समाज का समर्थन हासिल करेगी.
झामुमो की रणनीति
झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) भी कुड़मी वोटरों को लुभाने की कोशिश कर रहा है. हालांकि झामुमो के पास कुड़मी समाज से बड़े नेता नहीं हैं, लेकिन पार्टी का मानना है कि हेमंत सोरेन सरकार के पांच साल के कामों के आधार पर उन्हें समर्थन मिलेगा. झामुमो के प्रवक्ता मनोज पांडेय का कहना है कि भले ही सुधीर महतो, निर्मल महतो, और जगरनाथ महतो अब नहीं रहे, लेकिन मथुरा महतो, सविता महतो और योगेंद्र महतो जैसे नेता अभी भी पार्टी में हैं. पार्टी के अनुसार, उनके द्वारा किए गए विकास कार्य ही कुड़मी समाज का समर्थन पाने में मदद करेंगे.
कुड़मी वोटरों का प्रभाव
झारखंड की 81 विधानसभा सीटों में से 20-22 सीटें ऐसी हैं, जहां कुड़मी वोटर निर्णायक भूमिका निभाते हैं. पूर्वी सिंहभूम, रांची, हजारीबाग, धनबाद, बोकारो, और गिरिडीह जैसे जिलों में कुड़मी वोटरों का प्रभाव अधिक है. ये वो इलाके हैं, जहां कुड़मी वोटर चुनाव परिणाम को सीधे प्रभावित कर सकते हैं. जमशेदपुर, रामगढ़, हटिया, बड़कागांव, मांडू, टुंडी, बाघमारा, सिंदरी, बोकारो, और गिरिडीह जैसी सीटों पर कुड़मी वोटरों की संख्या काफी महत्वपूर्ण है. इन इलाकों में उम्मीदवारों की हार-जीत का फैसला कुड़मी वोटर ही करते हैं.