राष्ट्रीय शिक्षा नीति पर मुख्यमंत्री श्री सोरेन ने उठाए सवाल, नीति निर्माण में पारदर्शिता और परामर्श का अभाव..

झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति पर सवाल उठाए हैं|राज्यों के राज्यपाल एवं उप-राज्यपाल तथा राज्यों के शिक्षा मंत्रियों के साथ उच्चतर शिक्षा के रूपांतरण में राष्ट्रीय शिक्षा नीति -2020 की भूमिका पर आयोजित वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग में उन्होंने नयी शिक्षा नीति पर अपनी बातें रखी|

मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने शिक्षा नीति पर अपनी बात रखते हुए कहा कि आजादी के बाद ये सिर्फ तीसरा मौका है, जब शिक्षा नीति पर चर्चा हो रही है। उन्होंने कहा कि भारत विविधता से भरा देश है, यहां हर राज्य की अलग-अलग जरूरतें हैं। शिक्षा समवर्ती सूची का विषय है इसलिए इससे जुड़ी नीति बनाने हेतु सभी राज्यों के साथ खुले मन से चर्चा होनी चाहिए थी|इससे कोई राज्य इसे अपने ऊपर थोपा हुआ नहीं मानता। श्री सोरेन ने शिक्षा नीति को बनाने की प्रक्रिया में पारदर्शिता और परामर्श के अभाव की बात कही। उन्होंने कहा कि आज जब नीति बनकर तैयार हो चुकी है, तब केंद्र सरकार राज्यों के साथ इस पर चर्चा कर रही है। बेहतर ये होता कि इस पर पहले बात होती तथा सभी राज्य सक्रिय रूप से इसे बनाने में अपनी भागीदारी निभाते।

मुख्यमंत्री ने कहा कि शिक्षा नीति का प्रभाव हम अगले दशक में देख पाएंगे। यूं तो कागज पर ये स्क्रिप्ट लुभावना दिखता है, लेकिन इसमें बहुत सारे विषयों पर स्पष्टता नहीं है।

मुख्यमंत्री ने नई शिक्षा नीति पर सवाल उठाते हुए कहा कि इसमें निजीऔर विदेशी संस्थानों को आमंत्रित किया जा रहा है, परन्तु इस दस्तावेज में आदिवासी, दलित, पिछड़े, किसान-मजदूर वर्ग के बच्चों के हितों की रक्षा के बारे में कोई ठोस बाते नहीं की गई। क्या 70-80% के बीच की जनसंख्या वाले इस बड़े वर्ग के बच्चे लाखों-करोड़ों की फीस दे पाएंगे ?

निजी विश्वविद्यालय लाखों-करोड़ों की फीस वसूलते हैं| ऐसे में जब ये हमारे आज के प्रतिष्ठित संस्थानों के प्रोफेसरों के सामने बड़े-बड़े सैलरी पैकेज का ऑफर रखेंगे तब हम अपने पुराने सरकारी संस्थानों के बेहतरीन प्रोफेसरों को कैसे रोक पाएंगे? और इसका नुकसान किस वर्ग के बच्चे-बच्चियों को होगा?
वर्ष 2010-11 मेंभाजपा ने निजी संस्थानों को बढ़ावा देने संबंधी निर्णय का कड़ा विरोध किया था|इसे झारखंड मुक्ति मोर्चा जैसे अन्य दलों का समर्थन भी मिला था। अब किन परिस्थितियों में आज नई शिक्षा नीति में विदेशी निजी शिक्षण केंद्रों को बढ़ावा देने का मन बना लिया गया ?

मुख्यमंत्री श्री सोरेन ने कहा कि इसमेंशिक्षा नीति के साथ-साथ रोजगार संबंधित नीति पर भी चर्चा होनी चाहिए थी।अगर बच्चे को स्कूल में ज्यादा वर्ष गुजारने से रोजगार संबंधित फायदा नहीं दिखेगा तो हम चाहें कितनी भी अच्छी शिक्षा नीति बना लें वो सफल नहीं होगी।

अपने अगले सवाल में उन्होंने पूछा कि नई नीति को लागू करने में खर्च होने वाली धन राशि कहां से आएगी?वर्ष 2020-21 के राज्य के कुल बजट का 15.6% झारखण्ड में शिक्षा की उन्नति को लेकर समर्पित किया है, जो कि पिछले वर्ष से 2% ज्यादा है। नई नीति में जीडीपी का 6% शिक्षा पर खर्च करने की बात कही गई है। परंतु, इसके क्रियान्वयन को लेकर राज्यों के कंधों पर पड़ने वाले अतिरिक्त बोझ को लेकरकोई बात नहीं की गयी है।

नई शिक्षा नीति में क्षेत्रीय भाषाओं को शिक्षा के माध्यम के रूप में बढ़ावा देने की बात कही गयी है। श्री सोरेन ने कहा कि खेद है कि ऐसा करते वक़्त सिर्फ आठवीं अनुसूची में शामिल भाषाओं का ही जिक्र किया जा रहा है। ऐसा करने से अन्य बहुत सी भाषाएं, जो आठवीं अनुसूची का हिस्सा नहीं बन पाई है, उसके साथ अन्याय होगा। झारखंड में हो, मुंडारी, उरांव (कुडुख) जैसी कम-से-कम 5 अन्य भाषाएं हैं, जिन्हें आठवीं अनुसूची में जगह तो नहीं मिल पाई है, लेकिनइस भाषा को बोलने वालों की संख्या 10-20 लाख है।

श्री सोरेन ने कहा कि देश में उच्च शिक्षा हमेशा से ओवर-रेगुलेटेडऔर अंडर-फंडेडरही है। विश्वविद्यालयों को समेकित तरीक़े से आगे बढ़ने के लिए, उन्हें रेगुलेटकरने के बजाय स्वायत्तता देना ज़्यादा जरूरी है।

नई शिक्षा नीति में महाविद्यालयों को बहु-विषयक (Multidisciplinary) बनाने पर जोर दिया गया है। स्वाभाविक तौर पर ऐसे संस्थानों का निर्माण वहीं होगा जो पहले से विकसित हों, जहां जनसंख्या ज्यादा हो, आदि। झारखंड एवं इसके जैसे भौगौलिक बनावट वाले अन्य राज्यों में इसे लेकर दिक्कत आएगी। खासतौर पर उत्तर-पूर्व के राज्य इससे ज्यादा प्रभावित होंगे। ऐसे में देश के सबसे पिछड़े/ उपेक्षित इलाकों में नए संस्थान नहीं के बराबर खुलेंगे।

मुख्यमंत्री ने कहा कि नई शिक्षा नीति निर्माण के तहत हमें अवसर की समानता का जो मौलिक अधिकार है, उसे ध्यान में रखना होगा। निजीकरण एवं व्यापारीकरण को बढ़ावा देने से एक बड़े वर्ग के साथ अन्याय होगा। आदिवासी/दलित/ पिछड़े/ गरीब/किसान-मजदूर वर्ग से कुछ लोग बड़ी हिम्मत करके सफलता की सीढ़ी चढ़ आगे बढ़ने का प्रयास कर रहे हैं। यह उनसे सीढ़ी छीनने जैसा काम होगा।

वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के दौरान मुख्य सचिव सुखदेव सिंह, मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव राजीव अरुण एक्का और शिक्षा सचिव राहुल शर्मा उपस्थित थे।

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