झारखंड में विधानसभा चुनाव को लेकर इस बार कुछ विशेष बदलाव किए गए हैं. राज्य में पहली बार विधानसभा चुनाव दो चरणों में कराए जा रहे हैं. अब तक राज्य में हुए चार विधानसभा चुनावों में या तो तीन या फिर पांच चरणों में मतदान हुआ था. इस बार के चुनाव में यह देखना होगा कि दो चरणों में मतदान का क्या असर होता है और क्या यह परिणामों पर प्रभाव डालता है. झारखंड के चुनावी इतिहास को देखें तो कम मतदान होने पर अक्सर त्रिशंकु विधानसभा बनने की संभावना अधिक रहती है. दूसरी ओर, अगर मतदान का प्रतिशत बढ़ा, खासकर लोकसभा चुनाव की तुलना में, तो एक स्पष्ट जनादेश की संभावना बढ़ जाती है.
विधानसभा और लोकसभा चुनावों का इतिहास:
झारखंड के राज्य गठन के बाद से अब तक चार बार विधानसभा चुनाव हुए हैं. इनमें वर्ष 2005 में पहला विधानसभा चुनाव तीन चरणों में हुआ था. इसके बाद 2009, 2014 और 2019 के विधानसभा चुनावों में पांच चरणों में मतदान हुआ. इस बार का चुनाव दो चरणों में हो रहा है, जो राज्य के लिए एक नया अनुभव है. इससे यह देखना दिलचस्प होगा कि इस बदलाव का मतदान पर क्या प्रभाव पड़ता है और क्या इससे मतदाताओं में अधिक उत्साह देखने को मिलता है या नहीं. वर्ष 2005 में तीन चरणों में चुनाव के बाद त्रिशंकु विधानसभा का परिणाम सामने आया था, जिसके बाद झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने मिलकर सरकार बनाई थी. वहीं, 2009 के चुनाव में भी राज्य को त्रिशंकु विधानसभा का सामना करना पड़ा, लेकिन 2014 और 2019 में क्रमशः भाजपा और झामुमो गठबंधन को स्पष्ट बहुमत मिला, जिससे सरकारें स्थिर बनीं. इन दोनों चुनावों में पांच चरणों में मतदान हुआ था और मतदान प्रतिशत भी अधिक रहा था.
मतदान प्रतिशत और चुनावी परिणाम:
झारखंड में विधानसभा चुनावों का मतदान प्रतिशत लोकसभा चुनावों की तुलना में अक्सर अधिक रहा है. वर्ष 2004 में हुए लोकसभा चुनाव में 55.69% मतदान हुआ था, जबकि उसी साल के विधानसभा चुनाव में यह बढ़कर 57.03% हो गया. इसी तरह, 2009 के लोकसभा चुनाव में 50.95% मतदान हुआ, जबकि उसी वर्ष हुए विधानसभा चुनाव में 56.97% मतदान हुआ. 2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों में 63.82% और 66.80% मतदान हुआ था, वहीं विधानसभा चुनावों में क्रमशः 66.47% और 65.38% मतदान हुआ. लोकसभा और विधानसभा चुनावों के मतदान प्रतिशतों की तुलना करें, तो यह साफ है कि जब भी विधानसभा चुनावों में मतदान प्रतिशत बढ़ा है, तो स्पष्ट जनादेश की संभावना भी बढ़ी है. उदाहरण के लिए, 2014 और 2019 में अधिक मतदान के बाद भाजपा और झामुमो गठबंधन को बहुमत मिला और स्थिर सरकार बनी. इसके विपरीत, 2005 और 2009 के चुनावों में मतदान अपेक्षाकृत कम था और त्रिशंकु विधानसभा के परिणाम सामने आए थे.
चुनावी चरणों में बदलाव:
इस बार के विधानसभा चुनावों को दो चरणों में कराने के पीछे राज्य में नक्सली घटनाओं की कमी एक प्रमुख कारण माना जा रहा है. पहले, नक्सली गतिविधियों के चलते राज्य में सुरक्षा एक बड़ा मुद्दा होता था और चुनाव आयोग को अधिक चरणों में चुनाव कराने पड़ते थे, ताकि हर क्षेत्र में पर्याप्त सुरक्षा व्यवस्था की जा सके. लेकिन, नक्सली घटनाओं में कमी आने के बाद अब राज्य में चुनाव दो चरणों में ही कराने का निर्णय लिया गया है. इससे चुनाव आयोग और प्रशासन के लिए सुरक्षा और लॉजिस्टिक्स की जिम्मेदारी भी अपेक्षाकृत आसान हो गई है.
चुनावी स्थिति पर नजर:
इस बार का विधानसभा चुनाव झारखंड की राजनीतिक स्थिति के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हो सकता है. अगर इस बार मतदान का प्रतिशत बढ़ता है, तो यह किसी एक पार्टी या गठबंधन के पक्ष में स्पष्ट जनादेश का संकेत हो सकता है. वहीं, अगर मतदान कम होता है, तो त्रिशंकु विधानसभा की संभावना अधिक बनी रहती है. राज्य के राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि मतदान प्रतिशत बढ़ने पर ही राज्य को स्थिर सरकार मिल सकती है, जबकि कम मतदान से मतदाताओं की स्पष्ट राय सामने नहीं आती और परिणाम स्वरूप विभिन्न दलों के बीच गठबंधन की राजनीति हावी हो जाती है. इस बार के चुनावों में झारखंड में राजनीतिक दलों के सामने न केवल सरकार बनाने की चुनौती होगी, बल्कि जनता के विश्वास को जीतना भी एक बड़ा मुद्दा रहेगा. राज्य में अब तक हुए चुनावों में झामुमो और भाजपा मुख्य राजनीतिक दल रहे हैं, जबकि कांग्रेस और अन्य क्षेत्रीय दल भी अपने प्रभाव को बढ़ाने की कोशिश करेंगे. दो चरणों में चुनाव कराने का निर्णय और राज्य में नक्सली घटनाओं की कमी इस बार के चुनाव को पिछले चुनावों से अलग बनाते हैं.