झारखंड की सरायकेला विधानसभा सीट पर इस बार चुनावी मुकाबला बहुत ही रोचक और दिलचस्प होने वाला है. यहां दो पुराने प्रतिद्वंद्वी, जो कभी अपने-अपने दलों में मजबूत माने जाते थे, इस बार बागी बनकर आमने-सामने खड़े हैं. एक ओर झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) छोड़कर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) में शामिल हुए पूर्व मुख्यमंत्री चंपई सोरेन हैं, तो दूसरी ओर भाजपा से टिकट नहीं मिलने पर झामुमो में गए गणेश महाली हैं. दोनों ही नेता अपने-अपने समर्थकों के साथ चुनावी मैदान में उतर चुके हैं, और इस बार का चुनाव एक व्यक्तिगत प्रतिद्वंद्विता की तरह बन गया है.
नामांकन के दिन का माहौल: जोश और उमंग का प्रदर्शन
नामांकन के दिन झामुमो और भाजपा के कार्यकर्ताओं में जोश और उत्साह देखते ही बनता था. दोनों दलों के कार्यकर्ता अपने-अपने नेताओं के समर्थन में पूरी ताकत झोंकते नजर आए. यह माहौल केवल नामांकन तक सीमित नहीं रहा; इसके बाद से ही दोनों दल एक-दूसरे को मात देने की कोशिश में जुट गए हैं. चंपई और गणेश के बीच यह मुकाबला कोई नया नहीं है. वर्ष 2014 और 2019 में भी दोनों के बीच चुनावी संघर्ष हो चुका है, जिसमें हर बार चंपई सोरेन ही विजयी रहे हैं.
2014 और 2019 का चुनावी मुकाबला: चंपई की जीत का सफर
वर्ष 2014 के विधानसभा चुनाव में चंपई सोरेन और गणेश महाली के बीच कांटे की टक्कर हुई थी. उस चुनाव में चंपई सोरेन को 94,746 वोट मिले थे, जबकि गणेश महाली को 93,631 वोट मिले थे. महज 1,115 वोटों के अंतर से चंपई सोरेन ने उस चुनाव में जीत हासिल की थी. इस कम अंतर को देखते हुए, चंपई सोरेन ने अगले चुनाव में बूथ मैनेजमेंट और मजबूत कर दिया था. 2019 के चुनाव में चंपई सोरेन को 1,11,556 वोट मिले, जबकि गणेश महाली को 95,887 वोटों के साथ संतोष करना पड़ा. इस बार चंपई ने 15,669 वोटों के बड़े अंतर से जीत दर्ज की.
बदलती वफादारी और भीतरघात का खतरा
इस बार की सबसे बड़ी दिलचस्पी इस बात में है कि चंपई सोरेन भाजपा में चले गए हैं, जबकि गणेश महाली झामुमो का हिस्सा बन गए हैं. ऐसे में, दोनों दलों में कार्यकर्ताओं की वफादारी बदल गई है. जो झामुमो कार्यकर्ता पहले चंपई को जीत दिलाने में मदद करते थे, अब वे गणेश महाली के साथ हैं. वहीं, जो भाजपा कार्यकर्ता गणेश महाली का समर्थन करते थे, अब वे चंपई सोरेन के साथ हैं. इस बदलते समीकरण के कारण सरायकेला सीट पर भीतरघात (Cross-voting) की संभावनाएं भी बनी हुई हैं. जानकारों का मानना है कि इस बार झामुमो और भाजपा के कार्यकर्ताओं के बीच आंतरिक संघर्ष और भीतरघात का असर चुनावी नतीजों पर पड़ सकता है.
सरायकेला सीट का ऐतिहासिक परिदृश्य
सरायकेला विधानसभा सीट का अपना ऐतिहासिक महत्व है. 1967 में इस सीट से जनसंघ के रुद्र प्रताप षाडंगी ने पहली बार जीत हासिल की थी. इसके बाद, 1977 में जनता पार्टी के कांटे माझी ने इस सीट पर कब्जा किया. 1980 में भाजपा ने इस सीट को फिर से जीत लिया. 1985 और 1990 में झामुमो के कृष्णा मार्डी ने इस सीट पर जीत हासिल की. 1991 में चंपई सोरेन ने सरायकेला सीट पर जीत दर्ज की और इसके बाद से वे इस सीट के मजबूत नेता बने रहे. 2000 में भाजपा के अनंत राम टुडू ने इस सीट को जीतने में कामयाबी पाई. लेकिन 2005 से 2019 तक चंपई सोरेन ने झामुमो से लगातार चार बार इस सीट को जीता और यहां अपनी पकड़ मजबूत बनाई.
चुनाव 2024: चंपई बनाम गणेश का आखिरी मुकाबला?
2024 का विधानसभा चुनाव सरायकेला सीट पर चंपई सोरेन और गणेश महाली के बीच एक और बड़े मुकाबले का गवाह बनने जा रहा है. दोनों नेताओं के लिए यह चुनाव केवल सत्ता की लड़ाई नहीं बल्कि एक व्यक्तिगत प्रतिष्ठा की लड़ाई बन गया है. चंपई सोरेन, जो इस बार भाजपा के टिकट पर मैदान में हैं, का मानना है कि वे अपने पुराने वोटबैंक के समर्थन से जीत हासिल कर सकते हैं. वहीं, गणेश महाली भी झामुमो के सहयोग से इस सीट पर अपना प्रभाव बढ़ाने की पूरी कोशिश कर रहे हैं. चंपई और गणेश के बीच हो रहा यह मुकाबला इस बार इसलिए भी खास है क्योंकि दोनों दलों के कार्यकर्ताओं की वफादारी बदल चुकी है. दोनों नेताओं के बीच यह चुनावी जंग न केवल उनकी पार्टी के भविष्य को तय करेगी, बल्कि सरायकेला की राजनीति में भी एक नया मोड़ ला सकती है.
चुनावी रणनीति और मतदाताओं का रुझान
चंपई सोरेन और गणेश महाली दोनों ही इस बार अपनी-अपनी चुनावी रणनीति में बदलाव कर रहे हैं. जहां चंपई सोरेन भाजपा के समर्थन से अपने प्रभाव को और बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं, वहीं गणेश महाली भी झामुमो के कार्यकर्ताओं का समर्थन पाने में जुटे हुए हैं. मतदाताओं के बीच भी इस बार असमंजस की स्थिति है क्योंकि दोनों ही नेता अपने-अपने कार्यकाल में प्रभावी रहे हैं. इस बार का चुनाव सरायकेला के मतदाताओं के लिए भी एक कठिन निर्णय साबित हो सकता है क्योंकि दोनों ही उम्मीदवार अपने-अपने दलों के प्रमुख चेहरे हैं. जनता का रुझान किस ओर झुकेगा, यह कहना अभी मुश्किल है, लेकिन यह तय है कि इस बार का चुनाव सरायकेला में काफी दिलचस्प होगा.