निजी कोयला खदानों में काम करने वाले मजदूरों का बीमा जरूरी नहीं- प्रह्लाद जोशी..

केंद्रीय कोयला मंत्री प्रह्लाद जोशी के बयान से ट्रेड यूनियन भड़क उठे है। केंद्रीय कोयला मंत्री ने निजी कोयला खदानों में काम करने वाले मजदूरों के बीमा के सवाल पर बयान दिया कि कोयला खदानों में काम करने वाले कर्मचारियों के लिए अब बीमा कराना आवश्यक नहीं है। उन्होंने कर्मचारी मुआवजा अधिनियम 1923 के इसे जरूरी भी बाताया है। कहा कि इस अधिनियम को लागू करवाना केंद्रीय मुख्य श्रम आयुक्त का काम है। उनके इस बयान के बाद मजदूर संगठनों के द्वारा विरोध शुरू हो गया है।

सांसद केजे अल्फोस ने उनसे सवाल करते हुए पूछा कि इस साल हादसे में कितने लोगों की मौत हुई और उन्हें मुआवजे के तौर पर क्या दिया गया। क्या इस दिशा सरकार के पास कोई नीति है। इस पर जवाब देते हुए कोयला मंत्री प्रह्लाद जोशी कहा कि खदान दुर्घटना में अगर कोल इंडिया एवं उससे संबंधित कंपनियों के कर्मचारियों की मृत्यु हो जाती है तो इस एवज में उनके आश्रितों को मुआवजे के रूप में 1,25,000 रुपये दी जाती है साथ ही कोल माइंस प्रोविडेंट फंड की ओर से भविष्य निधि, कोयला खान पेंशन योजना 1998 के तहत अंशदाई पेंशन, छुट्टी नकदीकरण व अन्य राशियों का भुगतान करने का प्रावधान है। वहीं आश्रितों को रोजगार या रोजगार के बदले मुआवजा राशि देने का भी प्रावधान है।

कोयला मंत्री के निजी खदानों में बीमा अनिवार्य नहीं होने के बयान पर श्रमिक संगठनों ने नाराजगी जताई है। बिहार कोलियरी कामगार यूनियन के केंद्रीय सचिव हरिप्रसाद पप्पू का कहना है कि खदानों में काम कर रहे लोगों को बंधुआ मजदूर नहीं बनने दिया जाएगा। उनका कहना है कि लग रहा है सरकार 1967 का समय वापस लाना चाहती है। जब कोयला मजदूरों का शोषण हुआ करता था। ये निर्णय मजदूरों के खिलाफ है। कोयला कर्मचारी अपनी जान जोखिम में डालकर खनन का कार्य करते हैं। बड़ी-बड़ी मशीन चलाते है,खदान के नीचे उतरते हैं उसके बाद भी उन्हें बीमा नहीं दिया जाना उनके साथ अन्याय है। उनका कहना है कि इस फैसले का सुधार नहीं किया गया तो युनियन इसका विरोध करने के लिए तैयार है।

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