देवाशीष विश्वास, आयकर विभाग धनबाद के संयुक्त सचिव, ने अपने पर्वतारोहण के शौक को गहराई से अपनाते हुए दुनिया की 42 ऊंची चोटियों को सफलतापूर्वक फतह किया है. 1997 में उन्होंने पहली बार गढ़वाल के माउंट कामेट की ऊंचाई नापी और तब से उनकी यात्रा ने कई नए कीर्तिमान स्थापित किए हैं. उनका सपना माउंट एवरेस्ट की चोटी पर तिरंगा फहराने का था, जिसे उन्होंने 57 दिनों के कठिन अभियान के बाद पूरा किया.
कंचनजंगा पर भी फहराया विजय पताका
देवाशीष ने हाल ही में दुर्गम मानी जाने वाली पर्वत चोटी कंचनजंगा पर भी विजय पताका फहराई. इसके अलावा, उन्होंने इस माह सेंट्रल एशिया की 5000 मीटर ऊंची काकेशस पर्वत की चोटी को भी मात दी. यह पर्वत चोटी जॉर्जिया और अजरबैजान में स्थित है. उनके साथ चार अन्य भारतीय पर्वतारोही थे. उन्होंने 20 जुलाई को यात्रा शुरू की और 19 अगस्त को वापस लौटे. देवाशीष का कहना है कि पर्वतों पर फतह का उनका सफर आगे भी जारी रहेगा.
कई अन्य चोटियों पर भी प्राप्त की सफलता
देवाशीष ने एवरेस्ट और कंचनजंगा के साथ-साथ अन्नपूर्णा, मकालु, मानसलु, ल्होत्से, धौलागिरि, कामेट, शिवलिंग, पनवालीदार, इंद्रासन, आमा देवलाम, और पामीर जैसी दुरूह चोटियों पर भी सफलता प्राप्त की है. उनके हौसले और कठिन मेहनत ने उन्हें इन ऊंचाइयों पर विजय दिलाई है.
सौरभ गांगुली के प्रसिद्ध शो “दादागीरी” के विजेता भी रहे हैं देवाशीष
देवाशीष भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान सौरभ गांगुली के प्रसिद्ध टेलीविजन शो “दादागीरी” के विजेता भी रहे हैं और उन्हें तेंजिंग नागें नेशनल एडवेंचर अवार्ड, इंडियन माउंटेनियरिंग फाउंडेशन गोल्ड मेडल, और मदर टेरेसा इंटरनेशनल अवार्ड जैसे कई सम्मान प्राप्त हो चुके हैं. उन्होंने पर्वतारोहण पर 11 पुस्तकें लिखी हैं और पर्वतारोहण पर आधारित 11 फिल्में भी बनाई हैं, जो कोलकाता फिल्म फेस्टिवल और एडवेंचर फिल्म फेस्टिवल में सराही गई हैं. उनके काम ने ब्लाइंड पर्सन एसोसिएशन और कोलकाता ट्रम जैसे संगठनों में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया है. माउंट एवरेस्ट पर पहुंचने के दौरान, देवाशीष और उनकी टीम ने 1 अप्रैल 2010 को यात्रा शुरू की. तिब्बत के रास्ते अनुमति न मिलने के कारण, उन्होंने नेपाल के रास्ते माउंट एवरेस्ट पर चढ़ाई की. काठमांडू से लुकला के लिए प्लेन से यात्रा की और वहां से ट्रैकिंग शुरू की. उन्होंने 14 अप्रैल को 5400 मीटर ऊंचे बेस कैंप तक पहुंचने के बाद, क्रमशः 6100 मीटर पर कैंप 1, 6400 मीटर पर कैंप 2, 7300 मीटर पर कैंप 3, और 7955 मीटर पर कैंप 4 स्थापित किया. अंततः, कैंप-4 से माउंट एवरेस्ट की चोटी पर विजय पताका लहराते हुए 27 मई को वापस लौटे.