पलामू (झारखंड): जंगल और वन्यजीवों की सुरक्षा अब पारंपरिक तरीकों से नहीं, बल्कि आधुनिक तकनीक के सहारे की जाएगी। झारखंड के पलामू टाइगर रिजर्व (PTR) में अब जंगल की निगरानी और वन्यजीव संरक्षण के लिए ड्रोन और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) आधारित कैमरों का इस्तेमाल शुरू हो गया है। यह व्यवस्था न केवल देश में बल्कि राज्य में भी वन संरक्षण के क्षेत्र में एक नई क्रांति का संकेत देती है।
ड्रोन और AI कैमरे से मिलेगी 24×7 निगरानी
अब तक जंगल की सुरक्षा के लिए केवल गश्ती दल और सीसीटीवी कैमरों पर निर्भर रहा जाता था, लेकिन अब इन कैमरों को AI टेक्नोलॉजी से जोड़ दिया गया है। इन कैमरों की खासियत यह है कि ये रियल टाइम में जंगल की हर गतिविधि की निगरानी करते हैं और खतरों की तुरंत पहचान कर अधिकारियों को अलर्ट भेजते हैं।
AI कैमरे लाखों तस्वीरों को स्कैन कर सकते हैं और किसी भी असामान्य हरकत – जैसे शिकार, आग लगना, पेड़ काटना या जंगली जानवरों का गांवों की ओर बढ़ना – की पहचान कर सकते हैं। ये अलर्ट संबंधित अधिकारी को उनके मोबाइल पर तुरंत भेज दिए जाते हैं।
ड्रोन से दुर्गम इलाकों की भी निगरानी संभव
पीटीआर में लगाए गए हाई-रेजोल्यूशन ड्रोन अब पहाड़ों, नदियों, घने जंगलों और दूरस्थ इलाकों का हवाई सर्वेक्षण कर सकते हैं, जहां इंसानी पहुंच मुश्किल होती है। ड्रोन की मदद से अब जंगली जानवरों का रेस्क्यू, गश्ती और निगरानी पहले से कहीं अधिक आसान और तेज़ हो गई है।
शिकारी और आग पर भी लगेगा अंकुश
AI कैमरों में थर्मल सेंसर की मदद से जंगल में उठते धुएं की पहचान तुरंत हो जाती है, जिससे आग लगने से पहले ही प्रशासन सचेत हो सकता है। इसके अलावा शिकार की गतिविधियों पर भी नजर रखना अब पहले की तुलना में ज्यादा प्रभावी हो गया है।
जमीनी गश्त को मिला तकनीकी सहयोग
डिप्टी डायरेक्टर प्रजेश कांत जेना ने बताया कि आधुनिक तकनीक का उपयोग समय की मांग है। उन्होंने कहा, “जंगल और जानवरों को बचाने के लिए टेक्नोलॉजी का सहारा लेना अब ज़रूरी हो गया है। ड्रोन और AI कैमरे हमारे स्टाफ की सीमित संख्या के बावजूद बड़ी मदद कर रहे हैं।”
50 साल बाद तकनीक की नई शुरुआत
स्थापना के 50 वर्षों के बाद पीटीआर में पहली बार इस स्तर की हाईटेक निगरानी प्रणाली लागू की गई है। पहले जहां कैमरा ट्रैप से फोटो लिए जाते थे, अब AI कैमरे की मदद से डेटा इकट्ठा कर उसका विश्लेषण भी तुरंत संभव हो पा रहा है।
पलामू टाइगर रिजर्व में यह तकनीकी परिवर्तन वन्यजीव संरक्षण के लिए एक ऐतिहासिक कदम है। इससे न केवल जानवरों की सुरक्षा मजबूत होगी, बल्कि जंगल की पारिस्थितिकी तंत्र को भी संरक्षित रखने में मदद मिलेगी। उम्मीद की जा रही है कि आने वाले दिनों में झारखंड के अन्य वन क्षेत्रों में भी इस प्रकार की तकनीक को अपनाया जाएगा।