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हाई कोर्ट ने रांची सिविल सर्जन को कहा इस्तीफा देकर घर क्यों नहीं जाते, जांच में देरी से नाराज..

झारखंड में कोरोना की बिगड़ती स्थिति को देखते हुए हाई कोर्ट ने राज्य सरकार पर तीखी टिप्पणी की है। झारखंड हाई कोर्ट ने कहा कि राज्य में कोरोना का बढ़ते संक्रमण ने युद्ध जैसे हालात उत्पन्न कर दिए हैं। इससे निपटने के लिए सरकार को बहुत तेजी दिखानी होगी, लेकिन ऐसा नहीं किया जाना दुर्भाग्यपूर्ण है।कोर्ट ने कोरोना के पहले चरण में ही जब इस मामले में संज्ञान लेकर सरकार की तैयारी के बारे में पूछा था, तो हर बार सरकार ने तैयारी पूरी होने की बात कही। लेकिन वर्तमान स्थिति बहुत ही चिंताजनक है। इस दौरान चीफ जस्टिस डॉ रवि रंजन व जस्टिस एसएन प्रसाद की खंडपीठ ने रांची सिविल सर्जन की कार्यप्रणाली पर गंभीर टिप्पणी की है।

अदालत ने कहा कि रांची सिविल सर्जन की मानवीय संवेदना समाप्त हो गई है। उनमें अब कोई शर्म नहीं बची है। अदालत ने कहा कि ऐसे अधिकारियों को जब काम नहीं करना है, तो वे अपना इस्तीफा देकर घर क्यों नहीं चले जाते हैं। अदालत की नाराजगी का कारण था कोरोना सैंपल लेने के बाद उसे जांच के लिए भेजा जाना । सैंपल कई दिनों तक रखे रह जा रहे हैं। इसके साथ ही अदालत ने स्वास्थ्य सचिव और रिम्स के निदेशक से कहा कि रिम्स में आवश्यक मशीनों की खरीदारी के लिए रिम्स गवर्निंग बॉडी की जल्द बैठक बुलाई जाए और निर्णय लेकर जल्द से जल्द मशीनों की खरीदारी की जाए।

सुनवाई के दौरान रिम्स निदेशक ने अदालत को बताया कि रिम्स में आवश्यक मशीनों की खरीददारी का प्रस्ताव राज्य सरकार को भेज दिया गया है। स्वास्थ्य सचिव ने बताया कि प्रस्ताव को मंजूर करके इसे वित्त विभाग भेज दिया गया है, जहां से सहमति के बाद इसे कैबिनेट में भेजा जाएगा। इसके बाद अदालत ने रांची सिविल सर्जन को ऑनलाइन जुड़कर रोजाना होने वाली कोरोना जांच की जानकारी देने को कहा। सिविल सर्जन ने डाटा देने के लिए समय की मांग की तो कोर्ट ने एक घंटे तक सुनवाई स्थगित कर दी।

अदालत ने एक घंटे बाद फिर से मामले की सुनवाई की। इस दौरान सिविल सर्जन ने बताया कि पांच अप्रैल को 1907 सैंपल, छह को 1926, सात को 1677 और आठ को 1960 सैंपल लिए गए थे। इस पर अदालत ने पूछा कि इन्हें जांच के लिए कहां भेजा गया। सिविल सर्जन ने बताया कि पांच को रिम्स को सैंपल नहीं भेजा गया, जबकि थायरो केयर को 1943 सैंपल भेजे गए। इसी तरह छह को रिम्स को 170 और थायरो केयर को कुछ भी नहीं। सात को 294 रिम्स को और थायरो केयर को कुछ भी नहीं। आठ को रिम्स को 12 और थायरो केयर 1244 सैंपल भेजे गए। अदालत ने कड़ी नाराजगी जताते हुए कहा कि सैंपल बचाकर क्या कर रहे हैं, उसे सड़ा रहे हैं। जांच रिपोर्ट आने तक तो लोग मर जाएंगे और कितनों लोगों को संक्रमित भी कर देंगे। हाई कोर्ट से जुड़े लोगों का पांच अप्रैल को सैंपल लिया गया है, लेकिन अभी तक रिपोर्ट नहीं दी गई है। जब कोर्ट के लोगों को साथ ऐसा किया जा रहा है, तो आम आदमी के साथ कैसा व्यवहार होता होगा। इससे भली भांति समझा जा सकता है।

इसपर सिविल सर्जन ने अदालत को बताया कि रिम्स ने कोरोना जांच का सैंपल लेने से मना कर दिया है। इस पर अदालत ने रिम्स के माइक्रोबायोलॉजी विभाग के अधिकारी को कोर्ट में हाजिर होने का आदेश दिया। माइक्रोबायलाजी के अधिकारी ने बताया कि रिम्स ने कभी भी सैंपल लेने से मना नहीं किया है। बल्कि हम लोग सैंपल मांग रहे हैं। भले ही उसके यहां पांच हजार सैंपल जांच के लिए लंबित है। बताया कि तीन आरटीपीसीआर मशीन से रोजाना 1200 से ज्यादा लोगों का सैंपल लिया जाता है। अदालत ने पूछा कि कितनी मशीनें लंबित जांच को पूरा करने के लिए चाहिए। इस पर रिम्स की ओर से बताया गया कि दो आरटीपीसीआर मशीन और मैन पावर की जरूरत है, ताकि लंबित सैंपल की जांच की जा सके।

अदालत ने स्वास्थ्य सचिव और रिम्स निदेशक से कहा कि आप स्वयं देख लें कि हालात कितने खराब हैं। अगर कोर्ट नहीं पूछती, तो पता भी नहीं चलता कि क्या हो रहा है। जब जांच ही नहीं करनी है, तो सैंपल क्यों लिया जाता है। इतने दिनों में तो सैंपल सड़ गए होंगे। अदालत ने महाधिवक्ता को बुलाकर सारी स्थिति से अवगत कराया। महाधिवक्ता ने स्वास्थ्य सचिव, रिम्स निदेशक सहित अन्य पदाधिकारियों के साथ बैठक कर स्थिति से कोर्ट को अवगत कराने का आश्वासन दिया। इस दौरान अदालत ने सिविल सर्जन और माइक्रोबायोलॉजी की ओर से कोर्ट में दिए गए बयान को शपथ पत्र के माध्यम से दाखिल करने का निर्देश दिया।