रांची: धरती आबा भगवान बिरसा मुंडा की पुण्यतिथि के मौके पर राजधानी रांची के कोकर स्थित समाधि स्थल पर उस समय हंगामे की स्थिति उत्पन्न हो गई, जब पूर्व मंत्री गीताश्री उरांव और आदिवासी समाज से जुड़े कई नेताओं व कार्यकर्ताओं को रांची जिला प्रशासन द्वारा जबरन कार्यक्रम स्थल से हटाया गया।
श्रद्धांजलि सभा शुरू होने से ठीक पहले प्रशासन ने गीताश्री उरांव सहित कई कार्यकर्ताओं को एक बस में बैठाकर समाधि स्थल से दूर भेज दिया। इस कार्रवाई के बाद गीताश्री उरांव और उनके समर्थकों ने सरकार के खिलाफ जमकर नारेबाजी की और प्रशासन पर पक्षपातपूर्ण रवैये का आरोप लगाया।
प्रशासन का बचाव
रांची जिला प्रशासन का कहना है कि यह कदम सुरक्षा की दृष्टि से एहतियातन उठाया गया। समाधि स्थल पर राज्यपाल संतोष कुमार गंगवार, मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन सहित कई प्रमुख नेताओं का आगमन निर्धारित था। ऐसे में किसी प्रकार की अव्यवस्था या विरोध प्रदर्शन की आशंका को देखते हुए यह फैसला लिया गया।
गीताश्री उरांव का तीखा प्रहार
इस कार्रवाई के बाद गीताश्री उरांव ने सरकार पर तीखा हमला बोलते हुए कहा, “यह आदिवासी विरोधी मानसिकता का परिचायक है। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन सत्ता में आने के बाद आदिवासियों को भूल चुके हैं। आज जब हम अपने श्रद्धेय धरती आबा को नमन करने पहुंचे, तो हमें वहां से जबरन हटाया गया। क्या यही लोकतंत्र है?”
उन्होंने आगे कहा, “हमने हेमंत सोरेन को इस उम्मीद से सत्ता में बैठाया था कि वह आदिवासी समाज की आवाज बनेंगे, लेकिन आज वही सरकार हमें चुप कराने पर तुली हुई है। यह तानाशाही है और इसे अब बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।”
15 जून को ‘काला दिवस’ और पुतला दहन का ऐलान
गीताश्री उरांव ने ऐलान किया कि 15 जून को वे ‘काला दिवस’ के रूप में मनाएंगी। उन्होंने कहा, “मेरे पिता के नाम पर बनाए जा रहे सिरम टोली रैंप को लेकर सरकार की चुप्पी अब असहनीय है। यह रैंप हमारे सम्मान का प्रतीक है, लेकिन इसे विवादों में घसीटा जा रहा है। अब हर साल 15 जून को हम हेमंत सोरेन का पुतला दहन करेंगे, जैसे सनातन परंपरा में रावण दहन होता है।”
समर्थकों में आक्रोश
प्रशासन की इस कार्रवाई से गीताश्री उरांव के समर्थकों में भारी नाराजगी देखी गई। बस में बैठाए गए कार्यकर्ताओं ने “आदिवासी विरोधी सरकार नहीं चलेगी” जैसे नारों के साथ विरोध दर्ज कराया। मौके पर भारी पुलिस बल तैनात था ताकि किसी प्रकार की अप्रिय स्थिति उत्पन्न न हो।
इस घटना ने एक बार फिर राज्य की सियासत में आदिवासी अधिकारों को लेकर बहस तेज कर दी है। आगामी दिनों में यह मामला और तूल पकड़ सकता है।