राजेंद्र इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (रिम्स), रांची के खाते में दो साल तक 691 करोड़ रुपये की राशि पड़ी रही, लेकिन इसका उपयोग नहीं किया गया. जब सरकार ने इस राशि के उपयोगिता प्रमाण पत्र (यूटिलाइजेशन सर्टिफिकेट) की मांग की, तो रिम्स प्रबंधन ने यह पूरी राशि राजकीय कोष में वापस कर दी. इस राशि का उपयोग रिम्स में संसाधनों की मरम्मत, भवन के रखरखाव, आउटसोर्सिंग स्टाफ के वेतन भुगतान, नई मशीनों की खरीदारी और अस्पताल की व्यवस्था को दुरुस्त करने के लिए किया जाना था, लेकिन वित्तीय वर्ष 2022-23 और 2023-24 में कुल आवंटित राशि का मात्र 20% ही खर्च किया जा सका.
खस्ताहाल स्थिति के बावजूद पड़ा रहा फंड
रिम्स में संसाधनों की भारी कमी है. कई वार्डों की हालत जर्जर हो चुकी है, दीवारों में सीलन आ गई है, और बेड की स्थिति बेहद खराब है. ऑर्थोपेडिक, मेडिसिन और सर्जरी विभागों में कई बेड ऐसे हैं जिनके पाए टूटे हुए हैं और मैट्रेस पूरी तरह फट चुके हैं. इसके बावजूद मरीजों का इलाज इन्हीं खस्ताहाल बेड पर किया जा रहा है. अस्पताल के पुराने भवनों की स्थिति इतनी खराब हो गई है कि वार्डों की टाइल्स टूट चुकी हैं और फर्श में 2 से 3 इंच तक के गड्ढे बन गए हैं. मरीजों को ट्रॉली से वार्ड तक ले जाना जोखिम भरा हो चुका है, लेकिन बावजूद इसके इस दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया.
किन कार्यों में खर्च हो सकती थी राशि
रिम्स को मिलने वाला फंड भवन की मरम्मत, उपकरणों की खरीद, आउटसोर्सिंग स्टाफ की सैलरी और अन्य जरूरी कार्यों के लिए दिया जाता है. लेकिन पिछले दो वित्तीय वर्षों में इस दिशा में कोई ठोस कार्य नहीं हुआ. अस्पताल की दयनीय स्थिति को देखते हुए यह फंड उपयोग में लाया जा सकता था, लेकिन प्रबंधन की निष्क्रियता के चलते ऐसा नहीं हो सका.
1. वार्डों की मरम्मत
• कई वार्डों की टाइल्स टूटी हुई हैं और फर्श में गड्ढे हो गए हैं.
• दीवारों में पानी सीपेज की समस्या है, जिससे दीवारें कमजोर हो रही हैं.
• मरीजों को इन्हीं जर्जर वार्डों में इलाज के लिए रखा जाता है.
2. मेडिकल उपकरणों की खरीद
• रिम्स में कई आधुनिक उपकरणों की जरूरत थी, लेकिन समय पर खरीद नहीं हो पाई.
• एमआरआई, अल्ट्रासाउंड, एक्स-रे जैसी मशीनें काफी पुरानी हो चुकी हैं.
• सेंट्रल लैब के कई उपकरण भी खराब हो चुके हैं.
3. आउटसोर्सिंग स्टाफ का वेतन भुगतान
• रिम्स में कई विभागों में आउटसोर्सिंग स्टाफ की जरूरत होती है, लेकिन बजट न होने की बात कहकर भुगतान में देरी की जाती रही.
• यदि फंड का सही उपयोग होता, तो स्टाफ को समय पर वेतन मिल सकता था.
निदेशक ने दी सफाई
रिम्स के निदेशक डॉ. राजकुमार का कहना है कि उनके कार्यभार संभालने से पहले दो वित्तीय वर्षों तक इस फंड का उपयोग नहीं किया गया. उन्होंने कहा कि वित्तीय वर्ष 2023-24 में उन्होंने करीब 51 करोड़ की खरीद की है और 161 करोड़ की खरीद की प्रक्रिया चल रही है. इसमें एमआरआई, अल्ट्रासाउंड, एक्स-रे मशीन सहित अन्य जरूरी उपकरण शामिल हैं. उन्होंने बताया कि आवंटित राशि में जब पैसे बच जाते थे, तो सरकार को वापस करना पड़ता था. इसलिए इस बार संतुलित बजट की मांग की गई है. उन्होंने बताया कि वेतन मद के लिए पूर्व में 275 करोड़ रुपये आवंटित किए गए थे, जिसे बढ़ाकर 300 करोड़ किया गया है. अन्य खर्चों के लिए 150 करोड़ रुपये की मांग की गई है ताकि भविष्य में ऐसी स्थिति दोबारा न आए.
प्रशासनिक लापरवाही बनी वजह
इस पूरे मामले में प्रशासनिक लापरवाही भी एक बड़ा कारण रही. पूर्व के कार्यकाल में संसाधनों और व्यवस्थाओं को सुधारने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए. यदि समय पर इन कार्यों पर ध्यान दिया जाता, तो यह फंड मरीजों की सुविधाओं में सुधार के लिए खर्च किया जा सकता था.