झारखंड के पाकुड़ जिले में संचालित आठ पत्थर खदानों के मालिकों द्वारा किए गए बड़े फर्जीवाड़े का खुलासा हुआ है. इन खदान संचालकों ने स्टेट इनवायरमेंट इंपैक्ट असेसमेंट अथॉरिटी (SEIAA) के नियमों से बचने के लिए अपने माइनिंग लीज क्षेत्र को कम दिखाकर जालसाजी की. इस गड़बड़ी को महालेखाकार (CAG) ने अपनी ऑडिट रिपोर्ट में उजागर किया है. रिपोर्ट के आधार पर खान विभाग ने इन खदानों के संचालन पर रोक लगा दी है और SEIAA ने इनका स्वच्छता प्रमाण पत्र (Environmental Clearance) रद्द कर दिया है. हालांकि, चौंकाने वाली बात यह है कि इतने बड़े फर्जीवाड़े के बावजूद दोषी खदान संचालकों पर कोई ठोस कानूनी कार्रवाई नहीं की गई. उल्टा, उन्हें फिर से संशोधित आवेदन देने की अनुमति दे दी गई है. इस मामले को लेकर डालटेनगंज निवासी पंकज कुमार यादव ने एंटी करप्शन ब्यूरो (ACB) से शिकायत की है और मामले की गहराई से जांच की मांग की है.
कैसे हुआ फर्जीवाड़ा?
महालेखाकार की ऑडिट रिपोर्ट के अनुसार, दिसंबर 2018 से लागू नियमों के तहत, 5 हेक्टेयर से अधिक की खदानों के लिए पर्यावरणीय स्वीकृति (Environmental Clearance) लेने और जनसुनवाई (Public Hearing) कराना अनिवार्य है. लेकिन पाकुड़ में संचालित आठ खदानों के मालिकों ने जानबूझकर अपने लीज क्षेत्र को 5 हेक्टेयर से कम दिखाया, ताकि वे इन प्रक्रियाओं से बच सकें. जांच में पाया गया कि अगस्त 2020 से अगस्त 2021 के बीच 5 से 7 हेक्टेयर के क्लस्टर में खदानों के लीज दिए गए थे. लेकिन खदान संचालकों ने दस्तावेजों में हेरफेर कर इन्हें 5 हेक्टेयर से कम दिखाया, जिससे वे B-2 कैटेगरी में आ सकें और पर्यावरण स्वीकृति नियमों से बच सकें.
किन खदानों ने किया फर्जीवाड़ा?
ऑडिट रिपोर्ट में उन आठ खदानों का नाम भी उजागर हुआ है, जिन्होंने माइनिंग लीज क्षेत्र में गड़बड़ी की:
• अरविंद कुमार भगत – 6.41 हेक्टेयर को 4.65 हेक्टेयर कर दिया
• CB स्टोन वर्क्स – 5.27 हेक्टेयर को 2.73 हेक्टेयर किया
• मो. नजीमुद्दीन – 5.54 हेक्टेयर को 4.32 हेक्टेयर किया
• Four Star स्टोन वर्क्स – 5 हेक्टेयर को 4.94 हेक्टेयर किया
• मनोज स्टोन वर्क्स – 5.36 हेक्टेयर को 4.94 हेक्टेयर किया
• राजीव रंजन पांडेय – 6.75 हेक्टेयर को 4.02 हेक्टेयर किया
• श्री गोनू स्टोन वर्क्स – 7.06 हेक्टेयर को 3.29 हेक्टेयर किया
• जिशान स्टोन वर्क्स – 5.40 हेक्टेयर को 2.75 हेक्टेयर किया
इन खदान संचालकों की मंशा साफ थी – वे पर्यावरणीय स्वीकृति और पब्लिक हियरिंग से बचकर अवैध रूप से खनन जारी रखना चाहते थे.
रिपोर्ट के बाद भी कार्रवाई नहीं, दोषियों को मिली नई राहत
ऑडिट रिपोर्ट के उजागर होने के बाद खान विभाग ने इन खदानों के पत्थर डिस्पैच (transportation) पर रोक लगा दी और SEIAA ने इनके पर्यावरणीय स्वीकृति प्रमाण पत्र (Environmental Clearance) को रद्द कर दिया. लेकिन सबसे हैरान करने वाली बात यह है कि पाकुड़ के डीसी और SEIAA के सदस्य सचिव ने कोई एफआईआर दर्ज नहीं कराई. इसके विपरीत, SEIAA ने इन आठों खदान संचालकों को नए सिरे से आवेदन करने की छूट दे दी. इससे यह सवाल उठता है कि क्या यह भ्रष्टाचार की ओर इशारा करता है? क्या इस मामले में प्रशासनिक अधिकारियों की मिलीभगत है?
क्या कहते हैं विशेषज्ञ?
महालेखाकार ने अपनी रिपोर्ट में स्पष्ट किया है कि पांच हेक्टेयर से अधिक की खदानें B-1 कैटेगरी में आती हैं, जिनके लिए EIA (Environmental Impact Assessment) और EMP (Environmental Management Plan) अनिवार्य होते हैं. लेकिन खदान संचालकों ने अपने लीज क्षेत्र को जानबूझकर कम करके B-2 कैटेगरी में दिखाया, ताकि उन्हें इन प्रक्रियाओं से छूट मिल जाए. इस खुलासे के बाद अब यह देखना होगा कि राज्य सरकार और खान विभाग दोषी खदान संचालकों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करती है या नहीं. वहीं, शिकायतकर्ता पंकज यादव ने इस मामले को लेकर एंटी करप्शन ब्यूरो (ACB) में शिकायत दर्ज कराई है, जिससे अब इस घोटाले की जांच होने की संभावना बढ़ गई है.
अब आगे क्या?
• ACB जांच शुरू होने पर दोषियों के खिलाफ FIR दर्ज हो सकती है.
• अगर प्रशासनिक मिलीभगत साबित होती है, तो संबंधित अधिकारियों पर भी कार्रवाई हो सकती है.
• SEIAA के फैसले की समीक्षा की जा सकती है, जिससे इन खदानों के मालिकों को दी गई राहत वापस ली जा सकती है.
• खनन माफिया और पर्यावरणीय नियमों के उल्लंघन को लेकर सरकार के ऊपर भी दबाव बढ़ेगा.