जमशेदपुर : केंद्रीय मुख्य संयोजक सह ऑल झारखंड छात्र संघ के संस्थापक और पूर्व विधायक सूर्य सिंह बेसरा ने बुधवार को प्रेस विज्ञप्ति जारी कर झारखंड सरकार को अंतिम चेतावनी दिया है कि उनकी मांगों पर विचार नहीं किया गया तो 8 अगस्त से उलगुलान होगा। साथ ही कहा कि वर्तमान झारखंड सरकार में झारखंड मुक्ति मोर्चा सत्तारूढ़ है। यह सर्वविदित है कि झारखंड राज्य निर्माण में उनकी अहम भूमिका रही है। पार्टी के सुप्रीमो दिसोम गुरु शिबू सोरेन के नेतृत्व में अनगिनत आंदोलनकारी शहीद हुए हैं। हजारों आंदोलनकारी ने त्याग और बलिदान दिया है। शिबू सोरेन झारखंड के तीन बार मुख्यमंत्री बने और उनके सुपुत्र हेमंत सोरेन दो बार मुख्यमंत्री बने। लेकिन अभी तक करीब 50,000 आंदोलनकारियों की पहचान, सम्मान और पेंशन का मामला लंबित पड़ा हुआ है। 2012 में झारखंड आंदोलनकारी चिन्हितकरण आयोग का गठन हुआ था और आयोग को खत्म कर दिया गया है। बार-बार सरकार को ज्ञापन देने के बावजूद सरकार की उदासीनता के कारण आंदोलनकारी आज भी सड़क पर संघर्ष कर रहे हैं।
बता दे कि झारखंड अलग राज्य मुद्दे पर एकमात्र आजसू के विधायक सूर्य सिंह बेसरा ने विधायक पद त्याग कर एक इतिहास रचा था। उन्होंने फिर आंदोलनकारियों को संगठित करने और उनको हक, अधिकार दिलाने के लिए अपील की है। उन्होंने मांग की है कि झारखंड सरकार 8 अगस्त तक झारखंड आंदोलनकारी चिन्हितकरण आयोग का पुनर्गठन करें। 1932 के खतियान के आधार पर स्थानीयता नीति निर्धारित करें। पूर्व विधायक बेसरा ने मांग रखी है कि “पेसा कानून 96” को पांचवे अनुसूचित क्षेत्र में लागू किया जाए ताकि ग्राम सभा को अधिकार मिले। इसके साथ ही “वन अधिकार अधिनियम 2006” को सख्ती से लागू करें अन्यथा 8 अगस्त के बाद झारखंड में फिर से उलगुलान होगा।इसके लिए आंदोलनकर्मी भी तैयार हैं।
इसके साथ ही उन्होंने मांग रखी है कि 22 दिसंबर 2003 में संविधान की आठवीं अनुसूची के तहत संताली भाषा को मान्यता दी गई है, उसे लागू करें। 2012 में झारखंडी भाषा संताली, मुंडारी, हो, कुरुख, खड़िया, नागपुरी, कुरमाली, पंचपरगनिया और खोरठा के अतिरिक्त बांग्ला, उड़िया एवं उर्दू को झारखंड के द्वितीय राजभाषा के रूप में अधिसूचित की गई है, उसे अविलंब लागू करें। “पेसा कानून 1996” के तहत ग्राम सभा को अधिकार देते हुए हमारे गांव में हमारा राज कायम करें। “समता जजमेंट 1997” को पांचवीं अनुसूची अंतर्गत सख्ती से लागू करें। “वन अधिकार अधिनियम 2006” के तहत जल जंगल जमीन का अधिकार लागू करें।