रविवार, 15 दिसंबर 2024 को बिहार सरकार में पूर्व मंत्री और शिक्षाविद कृष्णानंद झा का देवघर में निधन हो गया. वे 77 वर्ष के थे और लंबे समय से बीमार चल रहे थे. उनकी मृत्यु की खबर सुनकर बिहार और झारखंड के राजनीतिक और सामाजिक जगत में शोक की लहर दौड़ गई. मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन सहित कई गणमान्य नेताओं ने उनके निधन पर शोक व्यक्त किया.
एक अनुशासित और आदर्श नेता
कृष्णानंद झा का जन्म एक प्रतिष्ठित राजनीतिक परिवार में हुआ था. उनके पिता स्वर्गीय पंडित विनोदानंद झा बिहार के मुख्यमंत्री रह चुके थे. वर्ष 1961 में, जब उनके पिता मुख्यमंत्री थे, पंडित जवाहरलाल नेहरू पटना स्थित उनके आवास पर आए थे. पिता के आदर्शों को अपनाते हुए, कृष्णानंद झा ने भी अपने जीवन और राजनीति में कभी अनुशासन से समझौता नहीं किया. उन्हें एक ईमानदार, सौम्य और कर्मठ नेता के रूप में जाना जाता था.
राजनीतिक सफर
कृष्णानंद झा ने तीन बार मधुपुर विधानसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया. 1983 में वे पहली बार चंद्रशेखर प्रसाद सिंह की कैबिनेट में सिंचाई और राजभाषा मंत्री बने. इसके बाद सत्येंद्र नारायण सिंह सरकार के दौरान भी उन्होंने सिंचाई और राजभाषा विभाग की जिम्मेदारी संभाली. उनके कार्यकाल में राजभाषा हिंदी के विकास के लिए उन्होंने कई महत्वपूर्ण कदम उठाए. विधानसभा प्रश्नोत्तर समन्वय का जिम्मा भी उन्हें सौंपा गया था, जिसे उन्होंने सफलतापूर्वक निभाया.
हिंदी के उत्थान में योगदान
कृष्णानंद झा ने हिंदी के प्रचार-प्रसार के लिए अद्वितीय योगदान दिया. वे हिंदी विद्यापीठ, देवघर के व्यवस्थापक बने और अंतिम समय तक संस्था को मजबूती प्रदान करते रहे. बता दें कि हिंदी विद्यापीठ के आजीवन कुलाधिपति देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद थे. कृष्णानंद झा को देवघर के लोग “अभिभावक” कहकर संबोधित करते थे. उनकी इस भूमिका ने उन्हें समाज में विशेष स्थान दिलाया.
मृत्यु पर शोक संदेश
उनके निधन पर झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने शोक प्रकट करते हुए लिखा, “बिहार सरकार में पूर्व मंत्री और मधुपुर के पूर्व विधायक, आदरणीय कृष्णानंद झा जी के निधन की दुखद खबर मिली. वे सौम्य व्यक्तित्व के धनी थे. परमात्मा दिवंगत आत्मा को शांति प्रदान करें और परिवार को इस दुख को सहन करने की शक्ति दे.“ गोड्डा के सांसद डॉ. निशिकांत दुबे ने भी शोक व्यक्त करते हुए कहा, “कृष्णानंद झा जी का निधन मेरे लिए व्यक्तिगत क्षति है. उनके मार्गदर्शन के कारण ही मैं गोड्डा लोकसभा का विकास कर पाया. देवघर ने एक स्तंभ खो दिया.”
आदर्शों के प्रति प्रतिबद्ध
कृष्णानंद झा के करीबियों का कहना है कि वे कभी भी अनुशासन और अपने आदर्शों से समझौता नहीं करते थे. राजनीति में रहते हुए उन्होंने हमेशा जनहित को प्राथमिकता दी. वे अपने फैसलों में सख्त लेकिन व्यवहार में सरल थे.
अंतिम संस्कार और श्रद्धांजलि
कृष्णानंद झा के निधन की खबर सुनते ही उनके देवघर स्थित आवास पर शोक व्यक्त करने वालों का तांता लग गया. श्रम मंत्री संजय प्रसाद यादव, जल संसाधन मंत्री हफीजुल हसन, पूर्व सांसद फुरकान अंसारी, कांग्रेस नेता डॉ. मुन्नम संजय, मणि शंकर, प्रो. उदय प्रकाश, राजेंद्र दास सहित हजारों लोगों ने उनके अंतिम दर्शन किए. उनका अंतिम संस्कार रविवार शाम को देवघर में किया गया.
राजनीति और समाज में उनकी विरासत
कृष्णानंद झा की राजनीतिक और सामाजिक भूमिका ने उन्हें जनता के बीच अमर बना दिया. वे उन नेताओं में से थे जिन्होंने अपने कार्यों और विचारों से राजनीति को एक नई दिशा दी. हिंदी भाषा के उत्थान में उनका योगदान आज भी प्रेरणादायक है. उनका जीवन और कार्य अगली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बने रहेंगे.