झारखंड में गुलियन-बैरे सिंड्रोम (GBS) का पहला मामला सामने आया है. रांची के बालपन अस्पताल में भर्ती एक 5 साल की बच्ची में इस गंभीर बीमारी के लक्षण पाए गए हैं. बच्ची को सांस लेने में तकलीफ होने के कारण उसे वेंटिलेटर पर रखा गया है. स्वास्थ्य विभाग ने इस मामले को गंभीरता से लिया है और जांच के लिए पुणे स्थित लैब में बच्ची के सैंपल भेजे गए हैं.
महाराष्ट्र में महामारी का रूप ले चुका है GBS
गुलियन-बैरे सिंड्रोम एक दुर्लभ लेकिन गंभीर न्यूरोलॉजिकल बीमारी है, जो शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को प्रभावित करती है और इसे कमजोर बना देती है. महाराष्ट्र में इस बीमारी के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं और यह महामारी का रूप ले चुकी है. झारखंड में सामने आया यह मामला चिंता का विषय है, क्योंकि इससे पहले राज्य में इस बीमारी का कोई मामला दर्ज नहीं हुआ था. स्वास्थ्य अधिकारियों के मुताबिक, पीड़ित बच्ची हाल ही में मुंबई के कुर्ला इलाके से रांची लौटी थी. उसकी ट्रैवल हिस्ट्री को ध्यान में रखते हुए अधिकारियों को आशंका है कि बच्ची महाराष्ट्र में ही इस संक्रमण का शिकार हुई होगी. इसके बाद, राज्य स्वास्थ्य विभाग ने सतर्कता बढ़ा दी है और रांची में पानी और खाद्य सुरक्षा से जुड़े सैंपल की जांच शुरू कर दी है.
क्या दूषित पानी बन रहा है बीमारी की वजह?
गुलियन-बैरे सिंड्रोम के तेजी से बढ़ते मामलों के पीछे की वजह को लेकर कई कयास लगाए जा रहे हैं. महाराष्ट्र के स्वास्थ्य मंत्री प्रकाश अबितकर का कहना है कि पुणे में GBS के बढ़ते मामलों की मुख्य वजह दूषित पानी हो सकता है. मंत्रिमंडल की हालिया बैठक में इस मुद्दे पर गंभीरता से चर्चा हुई, जिसमें अधिकारियों ने दूषित जल स्रोतों की जांच करने और पानी की गुणवत्ता सुधारने के निर्देश दिए. राज्य सरकार ने इस बीमारी से निपटने के लिए एक टास्क फोर्स का गठन किया है, जो महाराष्ट्र और झारखंड समेत प्रभावित क्षेत्रों में जल स्रोतों की जांच करेगा. यह टीम पानी के सैंपल लेकर लैब में जांच कर रही है, ताकि यह स्पष्ट हो सके कि बीमारी का असली कारण क्या है.
विशेषज्ञों की राय: संक्रमण फैला रहा GBS?
पुणे के एक वरिष्ठ स्वास्थ्य विशेषज्ञ डॉ. एन.आर. निरंजन के अनुसार, GBS के बढ़ते मामलों के पीछे बैक्टीरियल संक्रमण हो सकता है. उन्होंने बताया कि कैम्पिलोबैक्टर जेजुनी नामक बैक्टीरिया को इस बीमारी से जुड़ा पाया गया है, जो दूषित पानी और खाद्य पदार्थों से फैल सकता है. डॉ. निरंजन ने बताया कि यह बैक्टीरिया तंत्रिकाओं पर हमला करता है, जिससे शरीर का इम्यून सिस्टम कमजोर हो जाता है और मरीज को सांस लेने में तकलीफ होती है. यही कारण है कि GBS के गंभीर मामलों में मरीजों को वेंटिलेटर की जरूरत पड़ती है.
क्या नया स्ट्रेन है जिम्मेदार?
GBS के मामलों में अचानक वृद्धि को लेकर विशेषज्ञों ने यह भी आशंका जताई है कि इसका कारण कोई नया बैक्टीरियल स्ट्रेन हो सकता है. कई बार वायरस और बैक्टीरिया समय के साथ म्यूटेट हो जाते हैं, जिससे बीमारी के नए रूप सामने आते हैं. डॉक्टरों का कहना है कि जब कोई नया स्ट्रेन विकसित होता है, तो शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली उसे पहचान नहीं पाती और प्रभावी रूप से मुकाबला नहीं कर पाती. यही वजह है कि मरीजों की स्थिति तेजी से बिगड़ रही है और उन्हें गंभीर जटिलताएं हो रही हैं.
सावधानी और बचाव के उपाय
GBS जैसी बीमारियों से बचाव के लिए सबसे जरूरी है कि लोग स्वच्छता का ध्यान रखें और साफ पानी का ही सेवन करें. खासकर जिन इलाकों में इस बीमारी के मामले सामने आ रहे हैं, वहां पानी की गुणवत्ता की सख्त निगरानी होनी चाहिए.
विशेषज्ञों ने सुझाव दिया है कि –
• केवल उबला हुआ या फिल्टर किया हुआ पानी पिएं.
• खाने से पहले और बाद में हाथ धोने की आदत डालें.
• सड़क किनारे खुले में बिकने वाले खाने और गंदे पानी से बने पेय पदार्थों से बचें.
• अगर किसी को कमजोरी, सांस लेने में तकलीफ या हाथ-पैरों में सुन्नपन महसूस हो, तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें.
झारखंड स्वास्थ्य विभाग की प्रतिक्रिया
झारखंड स्वास्थ्य विभाग ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए सभी अस्पतालों को सतर्क कर दिया है. राज्य के एसीएमओ (अपर मुख्य चिकित्सा अधिकारी) के नेतृत्व में एक विशेष टीम बनाई गई है, जो रांची में बच्ची के संपर्क में आए लोगों की भी जांच कर रही है. स्वास्थ्य विभाग ने यह भी कहा है कि अगर जरूरत पड़ी तो राज्य में सार्वजनिक जल स्रोतों की सफाई और क्लोरीन मिलाने का अभियान चलाया जाएगा. इसके अलावा, महाराष्ट्र से आने वाले यात्रियों की भी स्क्रीनिंग की जाएगी, ताकि किसी भी संदिग्ध मामले की पहचान की जा सके.
GBS से जुड़ी अहम बातें
• यह बीमारी शरीर के इम्यून सिस्टम को कमजोर करती है और तंत्रिका तंत्र को प्रभावित करती है.
• इसका मुख्य कारण बैक्टीरिया या वायरस का संक्रमण हो सकता है.
• लक्षणों में मांसपेशियों की कमजोरी, झुनझुनी, सुन्नपन और सांस लेने में दिक्कत शामिल हैं.
• गंभीर मामलों में मरीज को ICU और वेंटिलेटर की जरूरत पड़ सकती है.
• इसका कोई निश्चित इलाज नहीं है, लेकिन जल्दी पहचान और सही देखभाल से मरीज ठीक हो सकता है.