किसान प्रियरंजन सिंह इस साल पंजाब गये और ब्लू गेहूं का बीज ले आये। इस बीज को उन्होंने दो बीघा खेत में बोया जो फसल एक महीने के अंदर कटेगी। प्रियरंजन का कहना है कि ब्लू गेहूं सेहत का खजाना है।
अक्सर आप ने गेरुआ रंग का ही गेहूं देखा और खाया होगा लेकिन आज हम आपको ब्लू रंग के गेहूं के बारे में बताने जा रहें है। जो सेहत के लिए तो अच्छा है ही साथ ही किसानों की आमदनी के लिए भी बेहतरीन है। दरसल ये घटना पलामू ज़िले के हुसैनाबाद प्रखंड के डुमरी हत्था गांव की है जहां पर किसान ब्लू गेहूं के जरिए अच्छी कमाई कर रहें है।
इस आमदनी का श्रेय प्रियरंजन सिंह को जाता है। असल में किसान प्रियरंजन सिंह ने इस साल पंजाब से ब्लू गेहूं का बीज ला कर उसे दो बीघा खेत में बोया था। ब्लू गेहूं की फसल एक महीने के अंदर कटेगी। किसान प्रियरंजन ने बताया कि ब्लू गेहूं सेहत के लिए काफी लाभदायक है। इसमें भरपूर मात्रा में एंटीऑक्सीडेंट और मिनिरल्स पाये जाते हैं, जो की सेहत के लिए भी काफी लाभकारी हैं।
फ़ायदे का सौदा है ब्लू गेहूं।
किसान प्रियरंजन ने बताया की ब्लू गेहूं की कीमत सामान्य के गेहूं से दो गुना अधिक है।
उन्होंने बताया कि ब्लू गेहूं की पैदावार सामान्य गेहूं के मुकाबले ज्यादा होती है। इतना ही नहीं उन्होंने बताया की दो बीघा में जितना ब्लू गेहूं की पैदावार होगी, उतना सामान्य गेहूं तीन बीघा में होता है। वहीं मार्केट में ब्लू गेहूं की कीमत सामान्य गेहूं से की कीमत से दो गुना से अधिक रहती है। गत दिनों रांची के कृषि प्रदर्शनी में डुमरी हत्था प्रथम आया था।
किसानों ने प्रापंपरिक खेती छोड़ नए खेती की ओर बढ़ाया कदम।
किसान प्रियरंजन ने बताया कि डुमरी हत्था गांव के किसान सहयोग समिति में क्षेत्र के पांच सौ किसान जुड़े हैं।इस क्षेत्र के सभी किसान पारंपरिक खेती छोड़ कर अब काला धान, पिपरमिंट,शुगर फ्री आलू की खेती कर रहे हैं। उन्होंने पलामू के किसानों का आमंत्रण किया है कि वह परंपरागत खेती को छोड़ अधिक मुनाफे वाली खेती करें।
मुनाफे की खेती के लिए सरकार भी करती है मदद।
प्रियरंजन ने बताया की इस नए मुनाफे की खेती के लिए किसानों को प्रशिक्षण और बीज के साथ सभी जानकारी दी जाती है। इतना ही नहीं सरकार भी किसानों को इस खेती के लिए हर संभव मदद कर रही है। उनके गांव के अलावा आसपास के कई गाँवों के किसान भी परंपरागत खेती छोड़ कर अच्छी आमदनी वाली फसलें उगा रहे हैं। सरकार ने उनके गांव में जगह-जगह सोलर सिस्टम पंप की व्यवस्था की है। उन्हे खेती के लिए आसमान पर निर्भर रहने की जरूरत नहीं है।