किसान नेता राकेश टिकैत सोमवार को रांची पहुंचे। रांची पहुंचने पर नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज जन संघर्ष समिति के सचिव जेराम जेराल्ड कुजूर और टीएसी पूर्व सदस्य रतन तिर्की ने उनका स्वागत किया। एयरपोर्ट से राकेश टिकैत डॉ. कामिल बुल्के पथ स्थित सोशल डेवलपमेंट सेंटर गये, जहां आदिवासी परंपरानुसार जनसंघर्ष समिति की महिलाओं ने हाथ धोकर उनका स्वागत किया। टिकैत नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज के विरोध में जन संघर्ष समिति लातेहार गुमला के 28 सालों से चल रहे आंदोलन की बरसी में शामिल होंगे और लोगों को संबोधित करेंगे।
एयरपोर्ट पर उन्होंने कहा कि यह झारखंड की उनकी पहली यात्रा है और यहां का मौसम भी अच्छा है। टिकैत ने कहा कि झारखंड में खनिज होते हुए भी कैसे यहां के आदिवासी गरीब हैं। उन्होंने कहा कि किसानों के हितों की रक्षा सबसे अहम मुद्दा है। इसके बाद नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज के खिलाफ चल रहे आंदोलन के आंदोलनकारियों के सचिव जेरोम जेराल्ड कुजूर ने आंदोलन की पृष्ठभूमि और इतिहास के बारे टिकैत को अवगत कराया। एसडीसी में हुई छोटी बैठक में टिकैत खान -खनिज से हो रहे विस्थापन पर गहरी चिंता व्यक्त की और कहा कि झारखंड में किसानों के अधिकारों और गरीब दलित पिछड़ों के संवैधानिक अधिकारों की रक्षा करना केंद्र व राज्य सरकार की जिम्मेवारी है। इस मौके पर जेरोम जेराल्ड कुजूर, पाला टोप्पो, कुलदीप मिंज एवं अन्य मौजूद थे।राकेश टिकैत 22 व 23 मार्च को लोहरदगा में रहेंगे। रात्रि विश्राम नेतरहाट में करेंगे।
आइए समझें इस प्रोजेक्ट का क्यों हो रहा विरोध..
नेतरहाट फील्ड फायरिंग से लगभग 90% आदिवासी लोगों को विस्थापित होना पड़ेगा, जिन्हें अपने घर बार, खेत खलिहान, जल, जंगल, धर्म, संस्कृति से भी दूर होना पड़ेगा जो कि आदिवासी जीवन का एक अभिन्न अंग है। प्रोजेक्ट के अनुसार 1471 वर्ग किलोमीटर अधिसूचित क्षेत्र होगा। इसके अंतर्गत 188 वर्ग किमी का संघात क्षेत्र होगा। नेतरहाट के 9 वर्ग किमी और अंदर के 9 वर्ग किमी क्षेत्र में सैनिक शिविर बनेंगे। इस पायलेट प्रोजेक्ट से वर्तमान लातेहार व गुमला के कई गांव प्रभावित होंगे, जिसमें महुआडांड़ के कुल 52 गांव, गुमला जिले के विशुनपुर से 70 गांव, चैनपुर से 46 गांव, डुमरी से 30 गांव घाघरा से 42 गांव हैं।