संताल की महिलाओं के प्रयास से रेशम उत्पादन के क्षेत्र में राज्य सरकार झारखंड के दुमका को ‘सिल्क सिटी’ के रूप में स्थापित करने की दिशा में कदम बढ़ा चुकी हैं। दुमका की रूबी कुमारी रेशम के धागों को आकार देने में माहिर है व अन्य महिलाओं के लिएभी प्रेरणास्रोत हैं। शारीरिक रूप से दिव्यांग होने के बाद भी रूबी के मनोबल में कमी नहीं आई संघर्ष के बूते सफलता की कहानी लिख रही है जिससे प्रभावित होकर राज्य सरकार ने भी 27 वर्षीय रूबी का चयन मयूराक्षी सिल्क उत्पादन सह प्रशिक्षण केंद्र, दुमका में धागाकरण और बुनाई के लिए किया। इतना ही नहीं रूबी सोहराय, कोहबर, जादुपटिया जैसी हस्तकला को रेशम के वस्त्रों में सधे हाथों से उकेर अपने हुनर को पहचान दे रही हैं।
रूबी के साथ-साथ संताल की अधितकर आदिवासी युवती व महिलाएं इस कला में निपुण है। सरकार का सहयोग मिला तो देशभर के रेशम उत्पादन में 80 प्रतिशत हिस्सेदारी रखनेवाले झारखंड जिसमें 50 प्रतिशत रेशम उत्पादन करने वाले संताल परगना की महिलाओं के दिन भी संवर जाएंगे जिससे महिलाएं आर्थिक रूप से सशक्त होगी ।
संताल परगना में तसर कोकुन का उत्पादन ज्यादा होने के बावजूद बिहार के भागलपुर जिले को सिल्क सिटी के नाम से जाना जाता है, जबकि दुमका के ही कच्चे माल से भागलपुर को यह उपलब्धि मिली है। इसका मुख्य कारण यह है कि संताल के लोग केवल तसर कोकून उत्पादन से जुड़े थे, जबकि कोकून उत्पादन के अलावा भी इस क्षेत्र में धागाकरण, वस्त्र बुनाई और ड्राइंग तथा प्रिंटिंग कर और अधिक रोजगार तथा आय हासिल की जा सकती थी। जिसे देखते हुए राज्य सरकार ने रणनीति तैयार की ताकि रेशम के क्षेत्र में दुमका को अलग पहचान मिल सके और यहां की गरीब महिलाओं को नियमित आय से जोड़कर आत्मनिर्भर बनाया जा सके।
झारखंड में लगभग एक लाख 65 हजार परिवार रेशम उत्पादन से जुड़े हैं। संताल स्थित मयूराक्षी सिल्क उत्पादन सह प्रशिक्षण केंद्र में लगभग 500 महिलाओं को विभिन्न माध्यमों से धागाकरण, बुनाई, हस्तकला इत्यादि का प्रशिक्षण प्रदान किया जा रहा है। इस केंद्र में युवाओं व महिलाओं का चयन कर रेशम पालन, रेशम बुनाई एवं रेशम-छपाई में एक वर्षीय सर्टिफिकेट कोर्स का प्रशिक्षण दिया जाता है जिससे वह अपने लिए स्वरोजगार के रास्ते तैयार करते हैं ।
हाल ही में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन दुमका प्रवास के दौरान मयूराक्षी सिल्क उत्पाद केंद्र का अवलोकन किया। इस क्रम में उन्होंने जिला प्रशासन को निर्देश दिया कि सिल्क के उत्पादन को प्रोत्साहन देने के लिए सरकार द्वारा हर संभव संसाधन उपलब्ध कराया जाए, जिससे यहां के लोगों को अधिक से अधिक रोजगार के अवसर मिल सके ।