झारखंड की उप राजधानी दुमका कई मायनों में खास मानी जाती है| यहां भगवान शिव का बासुकीनाथधाम और सोलहवीं शताब्दी में टेराकोटा आर्ट से बने 108 मंदिरों के गांव के बदौलत इसकी पहचान विश्वभर में है|इसके अलावा यहां मयूराक्षी मसानजोर डैम है, जिसे 1952 में कनाडा सरकार की मदद से बनाया गया था| हालांकि इस डैम का पूर्ण स्वामित्व पश्चिम बंगाल को दे दिया गया, जिसे लेकर आज भी विवाद जारी है|
वहीं, अगर राजनीतिक नजरिए से देखें तो दुमका संताल परगना की सबसे अहम विधानसभा सीट मानी जाती है| अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित ये सीट, झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) की परंपरागत सीट मानी जाती है|इस सीट से जेएमएम की टिकट पर स्टीफन मरांडी 5 बार जीत हासिल कर चुके हैं|जबिक साल 2009 में पहली बार यहां जेएमएम के ही हेमंत सोरेन ने जीत दर्ज की और राज्य के उपमुख्यमंत्री और फिर मुख्यमंत्री बने|लेकिन, अगले विधानसभा चुनाव यानी कि 2014 में हेमंत सोरेन का मुकाबला बीजेपी की डॉ लुईस मरांडी से हुआ| लुईस ने हेमंत लगभग 5 हजार वोटों से मात दी और पहली बार यहां बीजेपी का परचम लहराया|जेएमएम ने इस बार का बदला 2019 के विधानसभा चुनाव में लिया|इस चुनाव में हेमंत सोरेन ने बीजेपी की लुईस मरांडी को 13,188 वोटों से हरा दिया| अब आगामी 3 नवंबर को एक बार फिर दुमका विधानसभा सीट पर उपचुनाव होने जा रहे हैं|
उपचुनाव की वजह..
दरअसल, 2019 के विधानसभा चुनाव में राज्य के वर्तमान सीएम हेमंत सोरेन ने दुमका और बरहेट दो सीटों पर चुनाव लड़ा था| हेमंत सोरेन को दोनों ही सीटों पर जीत मिली| लेकिन संवैधानिक नियमों का अनुपालन करते हुए एक सीट का त्याग करने के क्रम में उन्होंने दुमका सीट छोड़ दी|ऐसे में सीट खाली होने पर अब उपचुनाव हो रहे हैं|
सीधी टक्कर..
दुमका के चुनावी अखाड़े में कुल 12 उम्मीदवार हैं, इनमें से 8 निर्दलीय हैं|बीजेपी की ओर से लुईस मरांडी एक बार फिर अपनी किस्मत आजमा रही हैं| लुईस ने पीएचडी तक पढ़ाई की है| वो झारखंड महिला आयोग की सदस्य रह चुकी हैं तथा बीजेपी की महिला विंग की कमान भी संभाली है| साल 2014 में इस सीट पर जीतने के साथ ही उन्होंने रघुवर सरकार में कैबिनेट मंत्री का दर्जा हासिल किया था|इस बार लुईस मरांडी का सीधा मुकाबला जेएमएम के बसंत सोरेन से हैं| बसंत, दिशोम गुरु शिबू सोरेन के छोटे बेटे और राज्य के सीएम हेमंत सोरेन के छोटे भाई हैं| दसवीं पास बसंत सोरेन पहली बार चुनावी मैदान में आये हैं| इससे पहले वो पार्टी की राजनीति संभालते आए हैं|इस उपचुनाव में बसंत पर अपने सोरेन परिवार की राजनैतिक शाख को आगे बढ़ाने और विरासत को बचाने की चुनौती है|
मतदाताओं का समीकरण..
एक नज़र डालते हैं दुमका के मतदाता समीकरण पर|साल 2011 की जनगणना के अनुसार जिले की आबादी तेरह लाख 21 हजार छयानवे है| इनमें सबसे ज्यादा संख्या हिंदुओं की है, जो कि 79.06% है| वहीं,मुस्लिम आबादी 8.09% , ईसाई 6.54% और अन्य 6.31 हैं|इस आदिवासी बहुल जिले में 43.22% आबादी अनुसूचित जनजाति की है और अनुसूचित जाति के 6.02% लोग है|इस सीट के हार-जीत का फैसला, आदिवासी वोटों से होता है| यहां वोटरों की संख्या 2 लाख 50 हजार 720 है, जिसमें 1 लाख 26 हजार 210पुरुष वोटरऔर1 लाख 24 हजार 510महिला वोटरहैं|18 से 19 साल के 8093 मतदाता इस बार अपने मत का प्रयोग करेंगे|
किन मुद्दों पर हो रहा उपचुनाव..
साल 2019 चुनाव के बाद झारखंड में सरकार बनने के तुरंत बाद ही कोरोना वायरस का संक्रमण फैल गया| महामारी की वजह से राज्य सरकार विकास के कई बड़े फैसले नहीं ले पाई|उधर, नई-नई हेमंत सरकार राजकीय खजाना खाली होने और आर्थिक मोर्चे पर केंद्र की दोहरी नीति का रोना रोती रही|ऐसे में जेएमएम केंद्र के सौतेले व्यवहार को मुद्दा बना रही है| दूसरी तरफ,बीजेपी मोदी सरकार की उपलब्धियां गिनवा रही है| इन सब के बीच जल, जंगल और जमीन के स्थाई नारे के साथ स्थानीय सड़क, बिजली, पानी जैसे मुद्दे भी हावी हैं| लुईस मरांडी ने बाहरी बनाम स्थानीय के मुद्दे पर मोर्चा खोला है| वो खुद को दुमका की बेटी और बसंत सोरेन को बाहरी करार दे रही हैं|उधऱ, बसंत सोरेन आदिवासियों के हित में काम करने वाली सरकार का हवाला देकर जीत के प्रति आश्वसत हैं|
किन मायनों में खास है झारखंड विधानसभा उपचुनाव 2020
झारखंड विधानसभा की दो सीटों पर तीन नवंबर को मतदान होगा| ये दोनों सीटें सत्ताधारी जेएमएम,कांग्रेस और राजद के लिए प्रतिष्ठा का सवाल बन गई है|इस गठबंधन में दुमका की सीट जेएमएम के खाते में थी, इसी को देखते हुए हेमंत सोरेन के सीट छोड़ने के बाद उनके छोटे भाई बसंत सोरेन को उम्मीदवार बनाया गया है| वहीं बेरमो सीट कांग्रेस के खाते में थी|यहां महागठबंधन की ओर से दिवंगत विधायक राजेंद्र प्रसाद सिंह के बड़े बेटे जय मंगल सिंह अनूप सिंह को उम्मीदवार बनाया गया है| हालांकि देखा जाए तो, इन दोनों सीटों पर होने वाले चुनाव में जीत-हार से सत्ता के जादुई समीकरण पर कोई असर नहीं पड़ेगा| लेकिन सत्ता में रहते हुए अगर सीट हारे तो इसका मतलब होगा कि सरकार के प्रति जनता का भरोसा नहीं है|