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बांधवगढ़ से बढ़े आपसी संघर्ष के कारण झारखंड के जंगलों में पहुंचे बाघ, बना रहे नया ठिकाना

झारखंड: झारखंड के जंगलों में इन दिनों बाघों की चहलकदमी बढ़ गई है। राज्य के पलामू टाइगर रिजर्व (पीटीआर) से लेकर दलमा तक अब छह से आठ नर बाघ विचरण कर रहे हैं। यह जानकारी वन्य प्राणी जनगणना संस्थान, देहरादून ने हाल ही में पुष्टि की है। इन बाघों का आगमन झारखंड के लिए एक नई पर्यावरणीय चुनौती और अवसर दोनों लेकर आया है।

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बाघों के बढ़ते आगमन के पीछे मुख्य कारण मध्यप्रदेश के बांधवगढ़ नेशनल पार्क में बढ़ता आपसी संघर्ष है। वहां बाघों की संख्या 200 के करीब पहुंच चुकी है, जबकि जंगल की क्षमता केवल 100 बाघों के लिए ही उपयुक्त मानी जाती है। ऐसे में नर बाघों के बीच शिकार और क्षेत्र को लेकर संघर्ष तेज हो गया है। नर बाघ आमतौर पर अपने शिकार क्षेत्र को लेकर बेहद सजग रहते हैं और किसी अन्य नर के प्रवेश पर आक्रामक हो जाते हैं।

इस संघर्ष से बचने के लिए कई बाघ बांधवगढ़ से पलायन कर झारखंड के जंगलों की ओर रुख कर रहे हैं। पीटीआर के डिप्टी डायरेक्टर कुमार आशीष ने बताया कि झारखंड के जंगल इन बाघों को शिकार के लिए चीतल, हिरण और बाइसन जैसे पर्याप्त वन्यजीव उपलब्ध करा रहे हैं, जिससे उन्हें यहां अनुकूल वातावरण मिल रहा है।

हालांकि, एक बड़ी समस्या यह है कि जो बाघ झारखंड पहुंचे हैं, वे सभी नर हैं। मादा बाघिन की अनुपस्थिति में उनके लंबे समय तक टिकने की संभावना कम हो जाती है। विशेषज्ञों के अनुसार, एक नर बाघ के सफल निवास के लिए उसके क्षेत्र में कम से कम तीन से चार मादा बाघिनों की उपस्थिति आवश्यक होती है।

पीटीआर प्रबंधन इस चुनौती से निपटने के लिए प्रयासरत है। वन विभाग मादा बाघिनों को अन्य क्षेत्रों से लाकर यहां बसाने की योजना पर काम कर रहा है। हालांकि, अधिकारी यह भी मानते हैं कि अगर मादा बाघिनें प्राकृतिक रूप से इस क्षेत्र में विचरण करते हुए पहुंचती हैं, तो उनके यहां टिकने की संभावना अधिक होगी।

झारखंड के जंगलों में बाघों की बढ़ती उपस्थिति राज्य के वन्यजीव संरक्षण प्रयासों की सफलता को दर्शाती है, लेकिन इसके साथ ही यह नई योजनाओं और सतर्क निगरानी की भी मांग करता है, ताकि इन गर्वीले जानवरों को एक सुरक्षित और स्थायी आवास प्रदान किया जा सके।

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