डॉ. बीपी कश्यप, एक जाने-माने नेत्र रोग विशेषज्ञ और समाजसेवी, रांची विधानसभा सीट से चुनाव लड़ने जा रहे हैं. वे भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के दिग्गज नेता सीपी सिंह और झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) की राज्यसभा सांसद महुआ माजी के खिलाफ मैदान में उतरे हैं. 67 साल की उम्र में डॉ. कश्यप ने चिकित्सा के क्षेत्र में चार दशक बिताए हैं और अब समाजसेवा के लिए राजनीति में उतरने का निर्णय लिया है. उनका कहना है कि उन्होंने अपने जीवन में समाज से बहुत कुछ पाया है और अब इसे लौटाने का समय आ गया है. उनका उद्देश्य रांची में स्वास्थ्य सेवाओं और बुनियादी ढांचे में सुधार करना है.
डॉ. बीपी कश्यप का मेडिकल करियर
डॉ. बीपी कश्यप नेत्र चिकित्सा के क्षेत्र में एक प्रतिष्ठित नाम हैं. अपने 40 साल के करियर में उन्होंने लगभग 1.86 लाख मरीजों का इलाज किया है. नेत्र रोग के क्षेत्र में उनका योगदान झारखंड ही नहीं, बल्कि पूरे देश में जाना जाता है. उनके पिता, डॉ. भरत प्रसाद कश्यप, झारखंड में आई ट्रांसप्लांटेशन के क्षेत्र में अग्रणी थे. उन्होंने 1979 में रांची के रिम्स (पूर्व आरएमसीएच) में बिहार का पहला आई ट्रांसप्लांट किया था. उनकी देखरेख में यह ऑपरेशन श्रीलंका से मंगाए गए नेत्रों से हुआ, जिसमें ऑस्ट्रेलिया के डॉ. पीटर एंडरसन ने भी सहयोग किया.
झारखंड का पहला सुपर स्पेशियलिटी आई हॉस्पिटल
डॉ. बीपी कश्यप ने राजधानी रांची में झारखंड का सबसे बड़ा सुपर स्पेशियलिटी आई हॉस्पिटल स्थापित किया. यह अस्पताल NABH (National Accreditation Board for Hospitals & Healthcare Providers) के मानकों के अनुसार है और यहां के सभी डॉक्टर एम्स से प्रशिक्षित हैं. यह अस्पताल कॉर्निया, रेटिना, ग्लूकोमा, आई ट्यूमर, और अन्य गंभीर नेत्र रोगों के इलाज के लिए विशेष सेवाएं प्रदान करता है. उनके अस्पताल में हर साल 100 से अधिक नेत्र प्रत्यारोपण किए जाते हैं, जिससे राज्य के लोगों को दिल्ली या वेल्लोर जाने की आवश्यकता कम होती है. डॉ. कश्यप का उद्देश्य है कि झारखंड में उच्चस्तरीय स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराई जाएं ताकि लोगों को बाहर जाने की जरूरत न हो.
सामाजिक कार्यों में योगदान
डॉ. कश्यप ने अपने करियर में समाजसेवा को प्राथमिकता दी है. 1996 में उन्होंने अपनी पत्नी डॉ. भारती कश्यप के साथ मिलकर टायरलेस आई डोनेशन अवेयरनेस कैंपेन की शुरुआत की. इसके बाद, झारखंड में पहला नेत्रदान और आई ट्रांसप्लांटेशन संभव हुआ. इसके बाद उन्होंने वर्ष 2002 में कश्यप मेमोरियल आई बैंक की स्थापना की. आई बैंक एसोसिएशन ऑफ इंडिया के 150 नेत्र प्रत्यारोपण के लक्ष्य में से 100 से अधिक प्रत्यारोपण उनके अस्पताल में होते हैं. डॉ. कश्यप और उनकी पत्नी ने मिलकर 20 लाख से अधिक सरकारी स्कूलों के बच्चों की आंखों की जांच की और हजारों बच्चों को मुफ्त में चश्मे वितरित किए. इस पहल से कई बच्चों की दृष्टि सुधारने में मदद मिली है. इसके अलावा, डॉ. कश्यप कोल्हान, संताल परगना, पलामू, सारंडा और रांची के सुदूर इलाकों में भी मेडिकल कैंप लगाकर लोगों का इलाज करते हैं.
रांची विधानसभा में चुनावी एजेंडा
राजनीति में उतरने के साथ ही डॉ. कश्यप का मकसद रांची में बुनियादी ढांचे का विकास करना है. वे विशेष रूप से स्वास्थ्य सेवाओं, सड़क व्यवस्था, और स्वच्छ पेयजल को लेकर प्रतिबद्ध हैं. वे स्थानीय युवाओं के लिए रोजगार के अवसर पैदा करना चाहते हैं और उनका मानना है कि औद्योगिक घरानों के साथ मिलकर इस दिशा में प्रयास किए जा सकते हैं. उन्होंने विधानसभा की समस्याओं को भी करीब से देखा है और इन्हें हल करने का संकल्प लिया है.
परिवार की उपलब्धियां और सम्मान
डॉ. बीपी कश्यप का पूरा परिवार चिकित्सा क्षेत्र में कार्यरत है और समाजसेवा में सक्रिय है. उनकी पत्नी डॉ. भारती कश्यप भी नेत्र चिकित्सा में एक प्रसिद्ध नाम हैं और उन्होंने अपने करियर में कई महत्वपूर्ण उपलब्धियां हासिल की हैं. डॉ. कश्यप को गोल्ड मेडल और फाइको की मानद उपाधि से सम्मानित किया जा चुका है. इसके अलावा, 3 अगस्त को उन्हें नई दिल्ली में ISCKRS Excellence Award से सम्मानित किया गया. उनके बेटे, डॉ. विभूति कश्यप, जो एम्स नई दिल्ली से विट्रियो रेटिना स्पेशलिस्ट हैं, ने वर्ष 2019 में ऑल इंडिया आई सोसाइटी को झारखंड से सबसे ज्यादा डायबिटिक रेटिनोपैथी के रिसर्च डेटा भेजा था. डॉ. कश्यप के बेटे को इस काम के लिए आई सोसाइटी ऑफ इंडिया द्वारा सम्मानित किया गया. उनकी पत्नी डॉ. भारती कश्यप को भी कई पुरस्कारों से नवाजा गया है, जिसमें 2017 का ‘नारी शक्ति पुरस्कार’ प्रमुख है. उनके अस्पताल को पूर्वोत्तर और पूर्वी भारत के श्रेष्ठ अस्पताल के रूप में मान्यता मिली है और यह डीएनबी एंड फेलोशिप फॉर ऑप्थाल्मोलॉजी का बड़ा केंद्र बन चुका है.
चिकित्सा क्षेत्र में डॉ. बीपी कश्यप के अन्य योगदान
डॉ. कश्यप ने 1984 में रांची में रेटिना ट्रीटमेंट की शुरुआत की थी और 1984 से 2004 तक वे झारखंड और बिहार के इकलौते रेटिना सर्जन रहे. वर्ष 2003 में उन्होंने प्रीमैच्योर बच्चों की आंखों की रेटिना का इलाज शुरू किया और 2006 में रेटिना के इलाज के लिए इंट्राविट्रियल इंजेक्शन की शुरुआत की. वर्ष 2009 में रेटिना सर्जरी के लिए आधुनिकतम कॉन्स्टेलशन मशीन को झारखंड में लाया और 2018 में इलेक्ट्रोफिजियोलॉजी मशीन भी स्थापित की. उनके अस्पताल में रेटिना के इलाज की नवीनतम तकनीकें उपलब्ध हैं, जो पूरे राज्य के मरीजों के लिए एक महत्वपूर्ण संसाधन हैं.