झारखंड के गिरिडीह जिले में स्थित पारसनाथ पर्वत को लेकर एक बार फिर विवाद गहराने के आसार हैं. यह पर्वत जैन धर्म के लिए पवित्र तीर्थस्थल है, लेकिन संताल समाज इसे अपना धार्मिक स्थल, जाहेर थान, मानता है. अब संताल समाज ने फाल्गुन शुक्ल पक्ष तृतीया (12 मार्च) को दिशोम बाहा पर्व के अवसर पर पर्वत की चोटी पर बलि देने का प्रस्ताव पारित किया है. हालांकि, इस क्षेत्र में बलि प्रथा पर पूरी तरह से प्रतिबंध है, जिससे यह मामला और विवादास्पद हो गया है. संताल समाज का दावा है कि पारसनाथ पर्वत पर उनका पारंपरिक अधिकार है और इसका प्रमाण ऐतिहासिक दस्तावेजों में मिलता है. बिहार राज्य जिला गजट और 1911 में तैयार सर्वे खतियान भूमि अभिलेख में इस प्रथा का उल्लेख किया गया है. उनका कहना है कि ब्रिटिश शासन के दौरान जैन समुदाय ने पर्वत पर अपने अधिकार को लेकर वाद दायर किया था, लेकिन अदालत ने उनका दावा खारिज कर दिया था. इसके बाद जैन समुदाय ने 1917 में पटना उच्च न्यायालय में अपील की, जो फिर खारिज हो गई. बाद में प्रीवी काउंसिल में अपील की गई, जहां भी संताल समाज के पक्ष में निर्णय आया. अब एक बार फिर संताल समाज पारसनाथ पर्वत को अपनी धार्मिक धरोहर बताते हुए वहां अपनी परंपराओं को जारी रखना चाहता है. संताल समाज के मीडिया प्रभारी सुधारी बास्के का कहना है कि वे अपने धार्मिक स्थल और परंपराओं की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध हैं. उनका आरोप है कि साजिश के तहत पूरे क्षेत्र में अतिक्रमण कर निर्माण कार्य किया गया है, जिसे हटाया जाना चाहिए.
जैन समाज ने उच्च न्यायालय में दायर की याचिका
इस मुद्दे पर जैन समुदाय भी सक्रिय हो गया है. गुजरात की संस्था ज्योत ने झारखंड उच्च न्यायालय में 17 जनवरी को एक जनहित याचिका दायर की है. इसमें केंद्र और राज्य सरकार को पक्षकार बनाते हुए पर्वत क्षेत्र में मांस और मदिरा की बिक्री व उपभोग पर रोक लगाने की मांग की गई है. इसके जवाब में संताल समाज भी अदालत में अपनी दलील पेश करने की तैयारी कर रहा है. गौरतलब है कि केंद्र सरकार ने 2 अगस्त 2019 को पारसनाथ पर्वत को इको-सेंसिटिव जोन घोषित किया था. इसके बाद 21 दिसंबर 2022 को झारखंड सरकार ने गिरिडीह जिला प्रशासन को पर्वत क्षेत्र में मांस और मदिरा की बिक्री पर रोक लगाने का आदेश दिया था.
तनाव बढ़ने की आशंका
पारसनाथ पर्वत को लेकर विवाद नया नहीं है, लेकिन बलि प्रथा के मुद्दे ने इसे और संवेदनशील बना दिया है. जहां जैन समुदाय इसे पूरी तरह से मांस-मदिरा मुक्त क्षेत्र बनाना चाहता है, वहीं संताल समाज अपनी परंपराओं को बनाए रखने पर अड़ा हुआ है. दोनों समुदायों के आस्था से जुड़े इस मामले में टकराव की आशंका बढ़ रही है. अगर समय रहते समाधान नहीं निकला, तो यह विवाद झारखंड में सांप्रदायिक और सामाजिक तनाव को जन्म दे सकता है.