झारखंड में संताली ओल चिकी लिपि से पढ़ाने की मांग तेज

दुमका: झारखंड के संताल बाहुल्य क्षेत्रों में संताली भाषा को ओल चिकी लिपि में पढ़ाने की मांग जोर पकड़ रही है। रविवार को दुमका जिले के मसलिया और जामा प्रखंड के विभिन्न गांवों में परंपरागत मांझी परगना व्यवस्था के तहत बैठक आयोजित कर इस मांग को उठाया गया।

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इन बैठकों में स्थानीय ग्रामीणों और समुदाय के नेताओं ने सरकार से आग्रह किया कि बंगाल राज्य की तर्ज पर झारखंड में भी सभी शिक्षण संस्थानों में संताली भाषा को ओल चिकी लिपि में पढ़ाया जाए। साथ ही, सरकारी भवनों के नामपट्टों पर भी संताली भाषा में ओल चिकी लिपि का उपयोग किया जाए।

सरकारी निर्देशों की अनदेखी

ग्रामीणों ने आरोप लगाया कि झारखंड राज्य बनने के 25 वर्षों बाद भी संताल आदिवासी समुदाय का सामाजिक, सांस्कृतिक, धार्मिक, शैक्षणिक और आर्थिक विकास अपेक्षित स्तर तक नहीं पहुंच पाया है। 13 फरवरी 2019 को कार्मिक, प्रशासनिक सुधार तथा राजभाषा विभाग द्वारा जारी दिशा-निर्देशों के अनुसार, संताल बाहुल्य क्षेत्रों में सरकारी कार्यालयों के नामपट्टों को संताली भाषा की ओल चिकी लिपि में भी लिखा जाना था। लेकिन अब तक दुमका सहित राज्य के अन्य संताल बाहुल्य क्षेत्रों में इस निर्देश का पालन नहीं किया गया है।

सरकार से शीघ्र कार्रवाई की मांग

स्थानीय लोगों ने चेतावनी दी है कि यदि उनकी मांगों को जल्द पूरा नहीं किया गया तो वे आंदोलन को और तेज करेंगे। ग्रामीणों का कहना है कि यह संताल समुदाय के अस्तित्व और सम्मान की बात है और सरकार को इसे गंभीरता से लेना चाहिए।

बैठक में शामिल प्रमुख लोग

इस मौके पर सुरेंद्र किस्कू, लखन किस्कू, देना किस्कू, सुनील किस्कू, लुखिराम किस्कू, गोपिन किस्कू, चुरू मुर्मू, देवराज हेम्ब्रम, लखिन्दर हेम्ब्रम, मनोज मुर्मू, सूर्यदेव हेम्ब्रम, संजय हांसदा, मार्गेन मरांडी और राजकिशोर मरांडी सहित कई लोग उपस्थित थे।

 

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