रांची: इंजीनियरिंग के छात्रों के लिए एक अच्छी खबर है। इंजीनियरिंग के छात्रों अब डीप सी माइनिंग (गहरे समुद्र में खनन) और एस्ट्रॉयड माइनिंग (ग्रह में खनन) की पढ़ाई कर सकेंगे। इसकी तैयारी आईआईटी आईएसएम धनबाद ने शुरू कर दी है। दरअसल ओपन कास्ट खत्म होने के बाद खनन के लिए एक 2 किलोमीटर गहराई में जाने की जरूरत महसूस होगी। ऐसे में ओपन कास्ट माइनिंग का भविष्य बहुत लंबा नहीं दिख रहा है। दूसरी और भूगर्भ खनन भी अब कम ही हो रही है। इसलिए अब समुद्र तल के नीचे अन्वेषण की तैयारी शुरू कर दी गई है।
बता दें कि चार-पांच मीटर से नीचे जाकर खनन को लेकर पड़ताल किया जाएगा। इस पर अंतरराष्ट्रीय समुद्र तल प्राधिकरण ने भी अपनी मंजूरी दी है। पहले अन्वेषण और फिर खनन की प्रक्रिया अपनाई जाएगी। ऐसे में भविष्य के खनन प्रक्रिया क्या और कैसी होगी यह सब कुछ छात्रों जान पाएंगे। खनन के पाठ्यक्रम में अब इसके भी सामग्री पर ध्यान दिया जाएगा। हालांकि इस कोर्स का स्वरूप कैसा होगा इस पर निर्णय नहीं लिया गया है। वही संस्थान निदेशक प्रो. राजीव शेखर ने कहा कि भविष्य में समुद्र के नीचे खनन होगा। समुद्र तल के नीचे बहुत खनिज मिलने की संभावना है। गहरे समुद्र में बेशकीमती खनिज मिलने की उम्मीद जताई जा रही है।
वही इस संबंध में प्रो.धीरज कुमार ने बताया कि गहरे समुद्र में निकेल, केडियम, कॉपर मिलने की उम्मीद है। मैंगनीज पहले ही देखा जा चुका है। ऐसे में गहरे समुद्र में खनन भविष्य की खनन होगी। इसी तरह दूसरे ग्रहों पर खनन पूरी तरह रोबोटिक हो सकती है। हालांकि इस पर विचार विमर्श किया जा रहा है। इसके साथ ही उन्होंने बताया कि पारंपरिक खनन प्रक्रिया के साथ-साथ डिजिटल खनन प्रक्रिया पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है। अब खनन के पाठ्यक्रम में स्मार्ट, सतत और सुरक्षित खनन पर ध्यान दिया जाएगा। इन तीनों को पाने के लिए खानों का ऑटोमोशन और सेमी ऑटोमोशन जरूरी है। भारत में बुनियादी खनन को भी बेहतर बनाए जाने की जरूरत है। देश में केवल हिंदुस्तान जिंक की खानों का ऑटोमोशन हो चुका है। सतह में अभी भी मैकेनाइजेशन ही हुआ है, ऑटोमोशन नहीं हुआ है।