छठी जेपीएससी की मेरिट लिस्ट रद्द करने के मामले पर फैसला सुरक्षित..

छठी JPSC की मेरिट लिस्ट रद्द करने के आदेश को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर बुधवार को सुनवाई पूरी हो गई। पूरे दिन सुनवाई के बाद चीफ जस्टिस डॉ रवि रंजन और जस्टिस सुजीत नारायण प्रसाद की अदालत ने फैसला सुरक्षित रख लिया। झारखंड हाईकोर्ट की एकल पीठ 7 जून को मेरिट लिस्ट रद्द कर दिया था और सरकार को 8 सप्ताह में नई मेरिट लिस्ट जारी करने का आदेश दिया था। इस आदेश के खिलाफ मेरिट लिस्ट के आधार नियुक्त 140 अधिकारियों ने खंडपीठ में चुनौती दी है। एकलपीठ के आदेश को रद्द करने का आग्रह किया है। बुधवार को खंडपीठ ने लंबी सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया। पूर्व में खंडपीठ ने इस मामले में यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया है।

प्रशांत भूषण ने सफल अभ्यर्थियों का रखा पक्ष
सफल अभ्यर्थियों की ओर से सुप्रीम कोर्ट के वरीय अधिवक्ता प्रशांत भूषण, वरीय अधिवक्ता अनिल कुमार सिन्हा और सुमित गाड़ोदिया ने पक्ष रखते हुए कहा कि पेपर वन (हिंदी और अंग्रेजी) का अंक कुल प्राप्तांक में जोड़ा जाना सही है। यह दोनों क्वालीफाइंग पेपर हैं, क्योंकि इसमें निर्धारित न्यूनतम अंक लाने वाले को ही पास माना जाएगा, भले ही वे दूसरे अन्य पेपर में फेल हों। जेपीएससी ने पेपर-वन के अलावा किसी भी अन्य पेपर में न्यूनतम अंक लाने की शर्त नहीं लगाई है।

क्वालीफाइंग अंक नहीं जोड़ा जाता तो 950 अंक ही होते
अदालत को बताया गया कि जेपीएससी ने विज्ञापन में ही 1050 अंक निर्धारित किए हैं। इसमें पेपर-वन को जोड़ने के बाद ही कुल प्राप्तांक 1050 के बराबर होता है। अगर पेपर-वन के अंक को हटा दिया जाए, तो निर्धारित 1050 से कम यानी 950 अंक ही आते हैं, इसलिए जेपीएससी के द्वारा मुख्य परीक्षा के परिणाम में उनके मार्क्स जोड़ा जाना उचित है।

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