झारखंड के जनजातीय भाषाओं को विलुप्त होने से बचने के लिए सेंट्रल यूनिवर्सिटी आफ झारखंड की शोध टीम लगातार कार्य कर रही है। सहायक प्राध्यापक रजनीकांत पांडेय ने कहा कि वह इस दिशा में पिछले सात वर्षों से कार्य कर रहे हैं। उनकी टीम ने झारखंड के अलावे उत्तराखंड के दूरदराज इलाकों में जाकर अध्ययन कर रही है। जिससे यह पता चल सके कि किन किन जनजातीय भाषाओं के लोगों की कितनी संख्या शेष बची है और वह अपनी भाषा का कितना प्रयोग कर रहे हैं।
यह भाषाएं हो रही विलुप्त..
दरअसल झारखंड में बिरिजिया, तुरी, असुर, बिरहोर और मालतो भाषा गायब होने के कगार पर आ गयी है। साथ ही इन भाषाओं के लोगों की संख्या भी लगातार कमी देखी जा रही है। समय रहते ही इनके संरक्षण का प्रयास नहीं किया गया तो जल्द ही इनका अस्तित्व मिट जाएगा। वहीं रजनीकांत पांडेय ने बताया कि बिरिजिया के 6700, बिरहोर के 6000, तुरी के 400-500, असुर के 20 हजार और मालतो भाषा बोलने वाली जनजाति करीब 20 हजार लोग ही बचे है। जिसके बारे में हमारे शोधार्थी लगातार जानकारी जमा कर रहे हैं। हालांकि इन भाषाओं की जनजाति अधिकांश तौर पर गुमला, लातेहार और चैनपुर के दूरवर्ती इलाकों में रहते हैं।
बनाए जा रहे शब्दकोष..
वहीं रजनीकांत पांडेय ने विलुप्त हो रही जनजातीय भाषाओं के बारे में बात करते हुए कहा कि जनजातीय भाषाओं को समृद्ध व जन जन तक पहुंचाने के लिए हमारे ओर से लगातार प्रयास किए जा रहे हैं। इन भाषाओं के विकास के लिए शब्दकोष भी तैयार किए जा रहे हैं। वहीं प्रो चामू कृष्णा शास्त्री के अध्यक्षता में कमेटी का भी गठन किया गया है। जो इन भाषाओं के शब्दों को हिन्दी में बदलकर जन सामान्य बनाने का प्रयास कर रही है। हालांकि इसे पांच विभिन्न हिस्सों में बांटकर तैयार किया जा रहा है। जिससे यह जनजातियों की भाषा को समृद्ध और स्पष्ट रुप दिया जा सके।
जनजातीय गौरव दिवस पर पेश होगी रिपोर्ट..
बता दें कि सीयूजे में नवंबर महीने में जनजातीय गौरव दिवस पर विलुप्त हो रही जनजातीय भाषाओं से संबंधित एक रिपोर्ट भी पेश की जाएगी। जिसमें पांच भाषाओं यानी इंडो आर्यन लैंग्वेज, एस्ट्रो एशियाटिक लैंग्वेज, द्रविड़ियन तेलगू लैंग्वेज, सिनो-तिब्बतन लैंग्वेज और अंडमानिज ग्रुप के लैंग्वेज को शामिल किया गया है। साथ ही असुर भाषा के लिए शब्दकोष के अलावे चार विभिन्न सीरिज भी तैयार किए जा रहे हैं।