झारखंड: झारखंड विधानसभा का मानसून सत्र चल रहा है। इस बार झारखंड विधानसभा का मानसून सत्र काफी हंगामेदार चल रहा है। विपक्ष राज्य सरकार को कई मुद्दो को लेकर घेर रही है। वहीं, सत्तापक्ष भी पलटवार कर रही है। ऐसे में इस वर्ष मानसून सत्र में आधा दर्जन से अधिक विधेयक पारित होने हैं। लेकिन, विधानसभा और राजभवन के बीच हिंदी और अंग्रेजी में विधेयक पारित करने को लेकर विवाद यथावत है। स्पीकर रबींद्र नाथ महतो ने कहा कि विधानसभा में मूल विधेयक हिंदी में रखा जाता है और इसी रूप में पारित होता है। ऐसे में विधेयक को हिंदी में ही राजभवन भेजा जाएगा।
अंग्रेजी में कुछ गलतियां से विधेयक हो जा रहा वापस….
राजभवन चाहे तो अंग्रेजी में अनुवाद करा ले। क्योंकि हिंदी से अंग्रेजी में कुछ गलतियां हो रही हैं, जिसके कारण विधेयक वापस किया जाता है। उन्होंने अधिकारियों को भी विधेयक को हिंदी में विधेयक भेजने को कहा है। जानकारों का कहना है कि स्पीकर अपने स्टैंड पर अड़े रहे तो एक बड़ा संवैधानिक गतिरोध उत्पन्न हो सकता है। विशेषज्ञों के अनुसार, विधानसभा से हिंदी में पारित विधेयक को अंग्रेजी प्रति के साथ भेजने की अनिवार्यता है।
संवैधानिक रूप से भी अंग्रेजी में विधेयक भेजने का प्रावधान….
मूल विधेयक अंग्रेजी में ही तैयार कराने की परंपरा रही है। बिहार से अलग होने पर झारखंड विधानसभा में अंग्रेजी में विधेयक तैयार होता था। उसका हिंदी अनुवाद प्रारूप विधानसभा में पारित होता था। ऐसा इसलिए कि संवैधानिक रूप से अंग्रेजी के साथ विधेयक र ऐप खोलें ने का प्रावधान है।
गजट करान के लिए विधयक का अग्रजा में हाना जरूरी…..
विधेयक का गजट अंग्रेजी में प्रकाशित करने की अनिवार्यता है। इसलिए राज्यपाल को अधिनियमों पर स्वीकृति देते समय हिंदी में पारित विधेयक के साथ अंग्रेजी प्रति की जरूरत होती है। संविधान के अनुच्छेद 348 में किसी भी नियम उप नियम को अंग्रेजी भाषा में होना संवैधानिक अनिवार्यता है।
न्यायिक कार्यों में भी अंग्रेजी में कानून का विश्लेषण होता है…..
न्यायिक कार्यों में भी किसी कानून या विधेयक की अंग्रेजी में ही विवेचना होती है और उसका विश्लेषण भी। सुप्रीम कोर्ट, हाईकोर्ट या न्यायिक पदाधिकारियों के समक्ष आधिकारिक भाषा को लेकर अंग्रेजी को विधि मान्य है। संविधान के अनुच्छेद 348 में इसका स्पष्ट उल्लेख किया गया है।
हिंदी विधेयक को राज्यपाल नहीं करेंगे स्वीकार ….
सभी विधेयकों, अधिनियमों और नियमों की आधिकारिक भाषा अंग्रेजी ही है। विधेयक को राज्यपाल के पास हिंदी और अंग्रेजी में भेजना जरूरी है। राज्यपाल अंग्रेजी अनुवाद को ही प्रमाणिक मानेंगे। सिर्फ हिंदी विधेयक को राज्यपाल स्वीकार नहीं करेंगे। कोई भी विधेयक विधानसभा में जिस भाषा में पारित होता है, उस भाषा में राजभवन को भेजा जाना असंवैधानिक नहीं है। राजभवन विधेयक को स्वीकृत करने को मजबूर है, भले उससे संतुष्ट हो न हो। वह अपनी आपत्ति दर्ज करा सकते हैं, पर बार-बार लौटा नहीं सकते है
विधि विभाग भेजती है विधेयक…
विधेयक विधानसभा सचिवालय को भेजने का काम राज्य सरकार के विधि विभाग का है। संविधान में है कि हिंदी विधेयक के साथ अंग्रेजी अनुवाद राज्यपाल की स्वीकृति के लिए जाएगा। इसकी जिम्मेदारी सरकार की है और इसको विधि विभाग देखता है। सरकार अनुवाद कराए। सरकार अपनी जिम्मेदारी से बच नहीं सकती है। जो मामले सामने आए हैं, उससे लगता है कि स्पीकर के मन में कहीं ना कहीं कोई गांठ है। जब परंपरा रही है और यही सिस्टम है तो हिंदी के साथ अंग्रेजी की प्रति भेजना चाहिए। लेकिन, वह कह रहे हैं कि केवल हिंदी में भेजेंगे तो कोई बात होगी। हो सकता है कि पहले कहीं कोई गलती हुई होगी। नुक्स निकाले गए होंगे तो ऐसा हो रहा है। यह कोई सैद्धांतिक मामला नहीं है।
भाषा में त्रुटियों के कारण आधा दर्जन से अधिक विधेयक नही हुए पारित ….
पिछले 3 साल में हिंदी और अंग्रेजी विधेयक में विसंगति और अन्य त्रुटियों के कारण आधा दर्जन से अधिक पारित विधेयकों को राजभवन ने राज्य सरकार को लौटाए हैं। इस तरह से पहले विधेयक नहीं लौटते थे। अलग झारखंड राज्य बनने के बाद से अब तक विधानसभा से कुल 371 विधेयक पारित हुए हैं। इसमें से 353 अधिनियम का रूप ले चुके हैं। मौजूदा विधानसभा में अब तक 61 विधेयक पारित हुए और 48 अधिनियम ही बने हैं। 13 विधेयक राजभवन और सरकार के बीच लंबित हैं।