झारखंड विधानसभा में बजट सत्र चल रहा है और रोज़ाना की कार्यवाही में विधायकों द्वारा सरकार से अलग-अलग मुद्दों को लेकर जवाब भी मांगे जा रहे हैं| लेकिन बड़ी बात ये है कि उन जवाबों से, प्रश्न रखने वाले विधायक फिर चाहें वो सत्ताधारी पार्टी के ही क्यों न हो, वो संतुष्ट नहीं होते| इसकी बानगी कल सदन में देखने को भी मिली जब झामुमो के विधायक लोबिन हेम्ब्रम ने अपनी ही सरकार के मंत्री को फटकार लगा दी| वो तारांकित प्रश्न पर सरकार की ओर से मिले जवाब से असंतुष्ट थे| उन्होंने मंत्री मिथिलेश ठाकुर को दो टुक कहा कि अधिकारी कुछ भी लिखकर आपको देते हैं और आप पढ़ देते हैं| मैं सरकार के जवाब से जरा भी संतुष्ट नहीं हूं| दरअसल, सदन में मंत्री जो जवाब पेश करते हैं वो उनके विभागीय सचिवों द्वारा तैयार किया जाता है|
गुरूवार को लोबिन हेम्ब्रम द्वारा की गई इस टिप्पणी को कहीं ना कहीं मुख्यमंत्री ने गंभीरता से लिया है| इसके बाद उन्होंने मुख्य सचिव सुखदेव सिंह से कहा है कि जनप्रतिनिधियों के सवालों का जवाब तैयार करने वाले विभागीय सचिवों को इसमें विशेष सावधानी बरतने का निर्देश दें| मुख्यमंत्री ने कहा कि सवालों का जवाब ऐसा होना चाहिए कि उस पर पूरक प्रश्न पूछने की नौबत ही न आए|
मुख्यमंत्री ने हालांकि कहा कि ऐसा नहीं है कि सभी विभागों का जवाब टालने वाला होता है| लेकिन ज्यादातर विभागों की ओर से जो जवाब दिया जाता है वो संतोषप्रद नहीं होता और जवाबों में विसंगतियां होने के कारण सदन में अक्सर मंत्री सवालों के जवाब में उलझे नजर आते हैं| इससे सदन में सरकार की किरकिरी होती है|
दरअसल सदन में कई बार हुआ है जब जनप्रतिनिधियों ने मंत्रियों के जवाब पर टिप्पणी करते हुए सदन में कहा कि सरकार की मंशा जवाब देने की कम और टालने की अधिक दिखती है| हालांकि अनुभवी मंत्री तो अपने राजनीतिक कौशल के बदौलत किसी तरह सवालों का जवाब देने में सफल हो जाते हैं और वो बच जाते हैं| लेकिन कई मंत्रियों के लिए ऐसा संभव नहीं हो पाता है| नतीजा, अमूमन नेता सदन या संसदीय कार्य मंत्री को उठकर स्थितियों को संभालना पड़ जाता है| ऐसे में सरकार स्पष्ट और सटीक जवाब दे, तो सरकार के सामने ऐसी असहज स्थिति उत्पन्न ही नहीं होगी|